मुख्य मेनू खोलें  खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखेंकिसी अन्य भाषा में पढ़ें नटराज  [ चोल शासकों के काल की शिव प्रतिमा नटराजरूप में जिसे मेट्रोपॉलिटिन कला संग्रहालय, न्यूयॉर्क सिटी में रखा गया है नटराज शिवजी का एक नाम है उस रूप में जिस में वह सबसे उत्तम नर्तक हैं। नटराज शिव का स्वरूप न सिर्फ उनके संपुर्ण काल एवं स्थान को ही दर्शाता है; अपितु यह भी बिना किसी संशय स्थापित करता है कि ब्रह्माण में स्थित सारा जिवन, उनकी गति कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शुन्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहत है। नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात कला) और राज। इस स्वरूप में शिव कालाओं के आधार हैं। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है। शिव के दो स्वरूप संपादित करें shiv loves tandav शिव के तांडव के दो स्वरूप हैं। पहला उनके क्रोध का परिचायक, प्रलंयकारी रौद्र तांडव तथा दुसरा आनंदप्रदान करने वाला आनंद तांडव। पर ज्यदातर लोग तांडव शब्द को शिव के क्रोध का पर्याय ही मानते हैं। रौद्र तांडव करने वाले शिव रुद्र कहे जाते हैं, आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज। प्राचीन आचार्यों के मतानुसार शिव के आनन्द तांडव से ही सृष्टी अस्तित्व में आती है तथा उनके रौद्र तांडव में सृष्टी का विलय हो जाता है। शिव कानटराज स्वरूप भी उनके अन्य स्वरूपों की ही भातिं मनमोहक तथा उसकी अनेक व्याख्यायँ हैं। इस संदूक को: देखें • संवाद • संपादन हिन्दू धर्म पर एक श्रेणी का भाग  इतिहास · देवता सम्प्रदाय · आगम विश्वास और दर्शनशास्त्र पुनर्जन्म · मोक्ष कर्म · पूजा · माया दर्शन · धर्म वेदान्त ·योग शाकाहार · आयुर्वेद युग · संस्कार भक्ति {{हिन्दू दर्शन}} ग्रन्थ वेदसंहिता · वेदांग ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता रामायण · महाभारत सूत्र · पुराण शिक्षापत्री · वचनामृत सम्बन्धित विषय दैवी धर्म · विश्व में हिन्दू धर्म गुरु · मन्दिर देवस्थान यज्ञ · मन्त्र शब्दकोष · हिन्दू पर्व विग्रह प्रवेशद्वार: हिन्दू धर्म  हिन्दू मापन प्रणाली नटराज शिव की प्रसिद्ध प्राचीन मुर्ति के चार भुजाएं हैं, उनके चारो ओरअग्नि के घेरें हैं। उनका एक पावं से उन्होंने एक बौने को दबा रखा है, एवं दुसरा पावं नृत मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है। उन्होंने अपने पहले दाहिने हांथ में (जो कि ऊपर की ओर उठा हुआ है) डमरु पकड़ा हुआ है। डमरू की आवाज सृजन का प्रतीक है। इस प्रकार यहाँ शिव की सृजनात्मक शक्ति का द्योतक है। ऊपर की ओर उठे हुए उनके दुसरे हांथ में अग्नि है। यहाँ अग्नी विनाश की प्रतीक है। इसका अर्थ यह है कि शिव ही एक हाँथ से सृजन करतें हैं तथा दुसरे हाँथ से विलय। उनका दुसरा दाहिना हाँथ अभय (या आशिस) मुद्रा में उठा हुआ है जो कि हमें बुराईयों से रक्षा करता है। उठा हुआ पांव मोक्ष का द्योतक है। उनका दुसरा बांया हांथ उनके उठे हुए पांव की ओर इंगित करता है। इसका अर्थ यह है कि शिव मोक्ष के मार्ग का सुझाव करते हैं। इसका अर्थ यह भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है। उनके पांव के नीचे कुचला हुआ बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है जो कि शिव द्वारा नष्ट किया जाता है। शिव अज्ञान का विनाश करते हैं। चारों ओर उठ रही आग की लपटें इस ब्रह्माण्ड की प्रतीक हैं। उनके शरीर पर से लहराते सर्प कुण्डलिनि शक्ति के द्योतक हैं। उनकी संपुर्ण आकृति ॐ कार स्वरूप जैसी दीखती है। यह इस बाद को इंगित करता है कि ॐ शिव में ही निहित है। वह ताण्डव नृत्य करते हें जिससे विश्व का संहार होता है। Last edited 3 months ago by चक्रबोट RELATED PAGES शिव हिन्दू देवता चिदंबरम मंदिर हिन्दी में शैव काव्य  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप
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