Friday, 3 March 2017

५२ शक्तिपीठ

औदीच्य बन्धु वेव

उदीच्य या औदीच्य का अर्थ है, उदीची या सूर्य के उदित होने की दिशा, भारत का उत्तर पूर्व भू भाग, जहाँ प्रमुख रूप से हिंदी भाषियों का निवास है|

माँ शक्ति के 52 शक्तिपीठ।

52- शक्तिपीठों का विवरण
डॉ मधु सुदन व्यास॰

आप में से अधिकांश लोग माता के बहुत से शक्तिपीठों का दर्शन कर चुके होंगे या पुराणों आदि के माध्यम से परिचित होंगे। कुछ लोगों ने नवरात्र में या इसके बाद वहां दर्शन, अर्चना करके अपनी मनौती मांगी होगी, लेकिन इन शक्तिपीठों का जन्म कैसे हुआ? यह संख्या में कितने हैं? यह शक्तिपीठ कहां-कहां हैं? इनका महत्व क्या है? आदि प्रश्न के उत्तर में, आइए सबसे पहले यह जानते हैं कि ये शक्तिपीठ कैसे अस्तित्व में आए?

इस प्रकार की पौराणिक कथा के माध्यम से भारत के जनमानस को 
धार्मिक आस्था से जोड़ कर, सुसंस्कारों का पोषण करना ओर एकता की 
शक्ति को प्रदशित करना या एक जुट रखना, समाज में महिलाओं के प्रति
 सम्मान अर्जित करना, जिससे समाज व्यवस्था सुचारु चलती रहे, जैसी 
कल्पनाएं करके ही हमारे ऋषियों ने शक्ति पीठों का निर्माण किया होगा। 
इसप्रकार से ये शक्ति-पीठ आज भी, हजारों वर्ष से लगातार हिन्दू समाज
 को संगठित ओर अक्षुण बनाए हुए हें। 

प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया, और भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। एक यज्ञ में जब दक्ष ने सती और शिव को न्योता नहीं दिया, फिर भी सती अपने पिता के पास पहुंच गई। इस पर दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमान जनक बातें करने लगे।

सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कूंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। यह खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सजा दी।
  सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर दुखी शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए।

इस तरह शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे। वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। 
    इस तरह कई स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों को जिक्र मिलता है वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में जरूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं।

  ज्ञातव्य है की इन 52  शक्तिपीठों में भारत-विभाजन के बाद 5 और भी कम हो गए और आज के भारत में 42 शक्ति पीठ रह गए है। 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में चला गया और 4 बांग्लादेश में। शेष 4 पीठो में 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है। एक पंच सागर शक्तिपीठ, का स्थान ज्ञात नहीं है।  

 

 पंच सागर शक्तिपीठ- पंच सागर शक्तिपीठ- पंच सागर शक्तिपीठ में सती के 'अधोदन्त' [4] गिरे थे। यहाँ सती 'वाराही' तथा शिव 'महारुद्र' हैं। पंच सागर शक्तिपीठ: इस शक्तिपीठ का कोई तय स्थान ज्ञात नहीं है। यहां माता के नीचे के दांत गिरे थे।

स्थान अज्ञात 

 

गोदावरी तट शक्तिपीठ-गोदावरी तट शक्तिपीठ -गोदावरी तट शक्तिपीठ आन्ध्र प्रदेश देवालयों के लिए प्रख्यात है। वहाँ शिव, विष्णु, गणेश तथा कार्तिकेय (सुब्रह्मण्यम) आदि की उपासना होती है तथा अनेक पीठ यहाँ पर हैं। यहाँ पर सती के 'वामगण्ड'[2] का निपात हुआ था।  गोदावरी तट शक्तिपीठ: आन्ध्र प्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित इस शक्तिपीठ में माता का गाल गिरा था।

आंध्र प्रदेश 

 

  श्री शैल शक्तिपीठ-श्री शैल शक्तिपीठ- आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 250 कि.मी. दूर कुर्नूल के पास 'श्री शैलम' है, जहाँ सती की 'ग्रीवा' का पतन हुआ था। श्रीशैल शक्तिपीठ: आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल के पास है श्रीशैल शक्तिपीठ, जहां माता का गाल गिरा था। यहाँ की सती 'महालक्ष्मी' तथा शिव 'संवरानंद' अथवा 'ईश्वरानंद' हैं।

आंध्र प्रदेश

  

 कामाख्या शक्तिपीठ- (कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ कामगिरि) कामाख्या शक्तिपीठ- यहाँ माता सती की 'योनी' गिरी थी। असम के कामरूप जनपद में असम के प्रमुख नगर गुवाहाटी (गौहाटी) के पश्चिम भाग में नीलांचल पर्वत/कामगिरि पर्वत पर यह शक्तिपीठ 'कामाख्या' के नाम से सुविख्यात है। यहाँ माता सती को 'कामाख्या' और भगवान शिव को 'उमानंद' कहते है। जिनका मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य उमानंद द्वीप पर स्थित है। कामरूप कामाख्या: असम, गुवाहाटी के कामगिरि पर योनि गिरी थी।

असम 

 

वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ- वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ -शिव तथा सती के ऐक्य का प्रतीक बिहार के गिरिडीह जनपद में स्थित वैद्यनाथ का 'हार्द' या 'ह्रदय पीठ' है और शिव का 'वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग' भी यहीं है। यह स्थान चिताभूमि में है। यहाँ सती का 'ह्रदय' गिरा था। यहाँ की शक्ति 'जयदुर्गा' तथा शिव 'वैद्यनाथ' हैं।बैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ: झारखण्ड के देवघर स्थित शक्तिपीठ में माता का हृदय गिरा था। मान्यता है कि यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

बिहार 

 

मगध शक्तिपीठ,  मगध शक्तिपीठ- पटना की बड़ी पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है। यह मंदिर पटना सिटी चौक से लगभग 5 कि.मी. पश्चिम में महाराज गंज (देवघर) में स्थित है।मगध शक्तिपीठ: पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है। यहां माता का दाहिना जंघा गिरा था।

बिहार 

 

अम्बाजी शक्तिपीठ-अम्बाजी शक्तिपीठ- यहाँ माता सती का 'उदर' गिरा था। गुजरात, जूना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर माँ अम्बा जी का मंदिर ही शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती को 'चंद्रभागा' और भगवान शिव को 'वक्रतुण्ड' के नाम से जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उर्द्धवोष्ठ गिरा था, जहाँ की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।अम्बाजी शक्तिपीठ: गुजरात जूनागढ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर देवी अम्बिका का विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था।

गुजरात 

 

नैनादेवी- हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित नैनादेवी मन्दिर स्थलों पर सती के नेत्र गिरे थे। पाकिस्तान के सक्खर स्टेशन के निकट शर्कररे में भी है। विशेष विवरण लिंक ।  

 हिमांचल प्रदेश / पाकिस्तान 

 

देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्रशक्तिपीठ- देवीकूप शक्तिपीठ- यहाँ माता सती का 'दाहिना टखना' गिरा था। यहाँ माता सती को 'सावित्री' तथा भगवन शिव को 'स्याणु महादेव' कहा जाता है। हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र नगर में 'द्वैपायन सरोवर' के पास कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ स्थित है, जिसे 'श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ' के नाम से जाना जाता है। देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र: हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है यह शक्तिपीठ। इसे श्रीदेवीकूप (भद्रकाली पीठ) भी कहा जाता है। यहां माता का दाहिना चरण गिरा था।

हरियाणा 

 

ज्वालामुखी शक्तिपीठ- हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद के अंतर्गत ज्वालामुखी का मंदिर ही शक्ति पीठ है। जो ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किमी दूर बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ माता सती की 'जिह्वा' गिरी थी। यहाँ माता सती 'सिद्धिदा' अम्बिका तथा भगवान शिव 'उन्मत्त' रूप में विराजित है। मंदिर में आग के रूप में हर समय ज्वाला धधकती रहती है।

 हिमांचल प्रदेश 

 

 कश्मीर शक्तिपीठ- कश्मीर में अमरनाथ गुफ़ा के भीतर 'हिम' शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती का 'कंठ' गिरा था। यहाँ सती 'महामाया' तथा शिव 'त्रिसंध्येश्वर' कहलाते है। श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ यह शक्तिपीठ भी दिखता है।

जम्मू ओर कश्मीर 

 

श्री पर्वत शक्तिपीठ-  कुछ विद्वान इसे लद्दाख (कश्मीर) में मानते हैं, तो कुछ असम के सिलहट से 4 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण) में जौनपुर में मानते हैं। यहाँ सती के 'दक्षिण तल्प' (कनपटी) का निपात हुआ था।

जम्मू ओर कश्मीर / असम 

 

जनस्थान शक्तिपीठ- मध्य रेलवे के मुम्बई-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग पर नासिक रोड स्टेशन से लगभग 8 कि.मी. दूर पंचवटी नामक स्थान पर स्थित भद्रकाली मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ सती का 'चिबुक' ठुड्डी ,भाग गिरा था। यहाँ की शक्ति 'भ्रामरी' तथा शिव 'विकृताक्ष' हैं- 'चिबुके भ्रामरी देवी विकृताक्ष जनस्थले'।[7] अत: यहाँ चिबुक ही शक्तिरूप में प्रकट हुआ। इस मंदिर में शिखर नहीं है। सिंहासन पर नवदुर्गाओं की मूर्तियाँ हैं, जिसके बीच में भद्रकाली की ऊँची मूर्ति है।

महाराष्ट्र 

 

 जयंती शक्तिपीठ- भारत के पूर्वीय भाग में स्थित मेघालय एक पर्वतीय राज्य है और गारी, खासी, जयंतिया यहाँ की मुख्य पहाड़ियाँ हैं। सम्पूर्ण मेघालय पर्वतों का प्रान्त है। यहाँ की जयंतिया पहाड़ी पर ही 'जयंती शक्तिपीठ' है, जहाँ सती के 'वाम जंघ' का निपात हुआ था। जयंती शक्तिपीठ: मेघालय के जयंतिया पर वाम जंघा गिरा था।

मेघालय 

 

करवीर शक्तिपीठ- यहाँ माता सती के 'त्रिनेत्र' गिरे थे। यहाँ माता सती को 'महिषामर्दिनी' और भगवान शिव 'क्रोधीश' कहे जाते हैं। महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित 'महालक्ष्मी' अथवा 'अम्बाईका मंदिर' ही यह शक्तिपीठ है।

महाराष्ट्र 

 

कालमाधव शक्तिपीठ- कालमाधव शक्तिपीठ - कालमाधव में सती के 'वाम नितम्ब' का निपात हुआ था। यहाँ की सति 'काली' तथा शिव 'असितांग' हैं।  शोण शक्तिपीठ: मध्य प्रदेश के अमरकंटक का नर्मदा मन्दिर ही शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। 

 मध्यप्रदेश 

 

रामगिरि शक्तिपीठ-रामगिरि शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर मतांतर है। कुछ मैहर, मध्य प्रदेश के 'शारदा मंदिर' को शक्तिपीठ मानते हैं, तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। दोनों ही स्थान मध्य प्रदेश में हैं तथा तीर्थ हैं। रामगिरि पर्वत चित्रकूट में है। यहाँ देवी के 'दाएँ स्तन' का निपात हुआ था।रामागिरि शक्तिपीठ: कुछ लोग इसे चित्रकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था।

मध्यप्रदेश 

 

उज्जयिनी शक्तिपीठ- यहाँ माता सती की 'कुहनी' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'माडल्यचंडिका' और भगवान शिव को 'मांगल्य कपिलाम्बर' कहा जाता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा नदी के दोनों तटों पर / रुद्रसागर के निकट 'हरसिद्धि मंदिर' ही यह शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती के कुहनी की पूजा होती है।उज्जयिनी शक्तिपीठ: उज्जैन की पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ, जहां माता की कुहनी गिरी थी।

मध्यप्रदेश 

 

  शोण शक्तिपीठ- मध्य प्रदेश के अमरकण्टक के नर्मदा मंदिर में सती के 'दक्षिणी नितम्ब' का निपात हुआ था और वहाँ के इसी मंदिर को शक्तिपीठ कहा जाता है। यहाँ माता सती 'नर्मदा' या 'शोणाक्षी' औरभगवान शिव 'भद्रसेन' कहलाते हैं। शोण शक्तिपीठ: मध्य प्रदेश के अमरकंटक का नर्मदा मन्दिर ही शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था।

मध्यप्रदेश 

 

भैरवपर्वत शक्तिपीठ- सती के 'ऊर्ध्व ओष्ठ'[5] का निपात स्थल भैरव पर्वत है, किंतु इसकी स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ उज्जैन के निकट क्षिप्रा नदी तट स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।

मध्यप्रदेश / गुजरात 

 

 त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ- जालंधर शक्तिपीठ-यहाँ माता सती का 'बायां स्तन' गिरा था। यहाँ सती को 'त्रिपुरमालिनी' और शिव को 'भीषण' के रूप में जाना जाता है। यह शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर में स्थित है।

 पंजाब 

  

 मणिवेदिका शक्तिपीठ- राजस्थान में अजमेर से 11 किलोमीटर दूर पुष्कर एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। पुष्कर सरोवर के एक ओर पर्वत की चोटी पर स्थित है- 'सावित्री मंदिर', जिसमें माँ की आभायुक्त, तेजस्वी प्रतिमा है तथा दूसरी ओर स्थित है 'गायत्री मंदिर' और यही शक्तिपीठ है। जहाँ सती के 'मणिबंध'[10] का पतन हुआ था। मणिवेदिका शक्तिपीठ: राजस्थान के पुष्कर में स्थित है यह शक्तिपीठ, इसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है। यहां माता की कलाईयां गिरी थीं

 राजस्थान 

 

विराट शक्तिपीठ- विराट का अम्बिका शक्तिपीठ, विराट शक्तिपीठ - यह शक्तिपीठ राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर से उत्तर में महाभारत कालीन विराट नगर के प्राचीन ध्वंसावशेष के निकट एक गुफा है, जिसे 'भीम की गुफा' कहते हैं। यहीं के वैराट गाँव में शक्तिपीठ स्थित है, जहाँ सती के 'दायें पाँव की उँगलियाँ' गिरी थीं। विराट का अम्बिका शक्तिपीठ: जयपुर के वैराट ग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहां माता की बायें पैर की अंगुलियां गिरी थीं। 

राजस्थान 

 

रत्नावली शक्तिपीठ-रत्नावली शक्तिपीठ का निश्चित्त स्थान अज्ञात है, किंतु बंगाल पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के मद्रास [9] में कहीं है। यहाँ सती का 'दायाँ कन्धा' गिरा था।रावली शक्तिपीठ: चेन्नई में कहीं स्थित है रावली शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण स्कंध गिरने का जिक्र आता है

तमिलनाडू 

 

कांची शक्तिपीठ- यहाँ माता सती का 'कंकाल' गिरा था। देवी यहाँ 'देवगर्मा' और भगवान शिव का 'रूद्र' रूप है। तमिलनाडु के कांचीपुरम में सप्तपुरियों में एक काशी है। वहाँ का काली मंदिर ही शक्तिपीठ है। कांची शक्तिपीठ: तमिलनाडु के कांचीवरम में माता का कंकाल गिरा था।

तमिल नाडु 

 

शुचींद्रम शक्तिपीठ- यहाँ माता सती के 'ऊर्ध्र्वदन्त'[3] गिरे थे। यहाँ माता सती को 'नारायणी' और भगवान शंकर को 'संहार' या 'संकूर' कहते है। तमिलनाडु में तीन महासागर के संगम-स्थल कन्याकुमारी से 13 किमी दूर 'शुचीन्द्रम' में स्याणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में ये शक्तिपीठ है।शुचीन्द्रम शक्तिपीठ: कन्याकुमारी के त्रिसागर संगम स्थल पर है शुचि शक्तिपीठ, जहां सती के दांत गिरे थे।

तमिल नाडु 

 

 कन्याकुमारी शक्तिपीठ- यहाँ माता सती की 'पीठ' गिरी थी। माता सती को यहाँ 'शर्वाणी या नारायणी' तथा भगवान शिव को 'निमिष या स्थाणु' कहा जाता है। तमिलनाडु में तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम स्थल पर कन्याकुमारी का मंदिर है। उस मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर शक्तिपीठ है।कण्यकाश्रम: तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों- हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाडी के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता की पीठ गिरी थी।

तमिल नाडु 

 

त्रिपुर सुन्दरी शक्तिपीठ- त्रिपुरा में माता सती का 'दक्षिण पद' गिरा था। यहाँ माता सती 'त्रिपुरासुन्दरी' तथा भगवन शिव 'त्रिपुरेश' कहे जाते हैं। त्रिपुरा राज्य के राधा किशोरपुर ग्राम से 2 किमी दूर दक्षिण-पूर्व के कोण पर, पर्वत के ऊपर यह शक्तिपीठ स्थित है।त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ- त्रिपुरा पीठ: त्रिपुरा के राधकिशोर गांव में स्थित है त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। 

 त्रिपुरा 

 

विरजा शक्तिपीठ- उत्कल (उड़ीसा) में माता सती की 'नाभि' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'विमला' तथा भगवान शिव को 'जगत' के नाम से जाना जाता है। उत्कल शक्तिपीठ उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है। पुरी में जगन्नाथजी के मंदिर के प्रांगण में ही विमला देवी का मंदिर है। यही मंदिर शक्तिपीठ है।उत्कल पीठ: उडीसा के पुरी में है, जहां माता की नाभि गिरी थी।

उढ़ीसा 

 

कात्यायनी पीठ वृन्दावन -यहाँ माता सती के 'केश' गिरे थे। यहाँ माता सती 'उमा' तथा भगवन शंकर 'भूतेश' के नाम से जाने जाते है। मथुरा-वृन्दावन के बीच 'भुतेशवर' नामक रेलवे स्टेशन के समीप 'भुतेशवर मंदिर' के प्रांगण में यह शक्तिपीठ स्थित है।

 उत्तर प्रदेश 

 

विशालाक्षी शक्तिपीठ- काशी विशालाक्षी मंदिर- यहाँ माता सती का 'कर्णमणि'[1] गिरी थी। यहाँ माता सती को 'विशालाक्षी' तथा भगवान शिव को 'काल भैरव' कहते है। उत्तर प्रदेश, वाराणसी में विश्वेश्वर के निकट मीरघाट पर विशालाक्षी का मंदिर ही शक्ति पीठ है।विशालाक्षी शक्तिपीठ: वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित इस शक्तिपीठ पर माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे।

 

उत्तर प्रदेश 

 

प्रयाग शक्तिपीठ - तीर्थराज प्रयाग में माता सती के हाथ की 'अँगुली' गिरी थी। यहाँ तीनों शक्तिपीठ की माता सती 'ललिता देवी' एवं भगवान शिव को 'भव' कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। लेकिन स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों में गिरा माना जाता है। ललिता देवी के मंदिर को विद्वान शक्तिपीठ मानते है। शहर में एक और अलोपी माता ललिता देवी का मंदिर है। इसे भी शक्तिपीठ माना जाता है। निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है। ललितादेवी शक्तिपीठ: प्रयाग (इलाहाबाद) स्थित ललितादेवी शक्तिपीठ में माता के हाथ की अंगुलियां गिरी थीं।

 

उत्तर प्रदेश 

 

सुंगधा शक्तिपीठ- बांग्लादेश के बरीसाल से 21 किलोमीटर उत्तर में शिकारपुर ग्राम में 'सुंगधा'[14] नदी के तट पर स्थित 'उग्रतारा देवी' का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है। इस स्थान पर सती की 'नासिका'[15] का निपात हुआ था।सुगंध शक्तिपीठ: बांग्लादेश के खुलना में नासिका गिरी थी।

बंगला देश 

 

करतोयाघाट शक्तिपीठ - यहाँ माता सती का 'वाम तल्प' गिरा था। यहाँ माता 'अपर्णा' तथा भगवन शिव 'वामन' रूप में स्थापित है। यह स्थल बांग्लादेश में है। बोगडा स्टेशन से 32 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम कोण में भवानीपुर ग्राम के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर यह शक्तिपीठ स्थित है।करतोयतत शक्तिपीठ: बांग्लादेश भवानीपुर के बेगडा में करतोयतत के तट पर माता की बायीं पायल गिरी थी।

बंगला देश 

 

चट्टल शक्तिपीठ -चट्टल में माता सती की 'दक्षिण बाहु'[16] गिरी थी। यहाँ माता सती को 'भवानी' तथा भगवन शिव को 'चंद्रशेखर' कहा जाता है।बंग्लादेश में चटगाँव से 38 किमी दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर है। यही 'भवानी मंदिर' शक्तिपीठ है।चट्टल शक्तिपीठ: बांग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता की दाहिनी भुजा गिरी थी।

बंगला देश 

 

यशोर शक्तिपीठ - यह शक्तिपीठ वर्तमान बांग्लादेश में खुलना ज़िले के जैसोर नामक नगर में स्थित है। यहाँ सती की 'वाम '[17] का निपात हुआ था। यशोरेवरी शक्तिपीठ: बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का प्रसिद्ध यशोरेवरी शक्तिपीठ, जहां माता की बायीं हथेली गिरी थी

  

बंगला देश 

 

गण्डकी शक्तिपीठ - नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गमस्थल पर 'गण्डकी शक्तिपीठ' में सती के 'दक्षिणगण्ड'[13] का पतन हुआ था।गंडकी शक्तिपीठ: नेपाल में गंडक नदी के किनारे कपोल गिरा था।

 नेपाल 

 

गुह्येश्वरी शक्तिपीठ- नेपाल में 'पशुपतिनाथ मंदिर' से थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर 'गुह्येश्वरी शक्तिपीठ' है। यह नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मंदिर में एक छिद्र से निरंतर जल बहता रहता है। यहाँ की शक्ति 'महामाया' और शिव 'कपाल' हैं।गुहेश्वरी शक्तिपीठ: नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुहेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता सती के दोनों घुटने गिरे थे।

L नेपाल 

 

मिथिला शक्तिपीठ- यहाँ माता सती का 'वाम स्कन्ध' गिरा था। यहाँ सती 'उमा' या 'महादेवी' तथा शिव 'महोदर' कहलाते हैं। इस शक्तिपीठ का निश्चित स्थान बताना कुछ कठिन है। स्थान को लेकर कई मत-मतान्तर हैं। तीन स्थानों पर 'मिथिला शक्तिपीठ' को माना जाता है। एक जनकपुर (नेपाल) से 51 किमी दूर पूर्व दिशा में 'उच्चैठ' नामक स्थान पर 'वन दुर्गा' का मंदिर है। दूसरा बिहार के समस्तीपुर और सहरसा स्टेशन के पास 'उग्रतारा' का मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से पूर्व 61 किमी दूर सलौना रेलवे स्टेशन से 9 किमी दूर 'जयमंगला' देवी का मंदिर है। उक्त तीनों मंदिर को विद्वजन शक्तिपीठ मानते है।मिथिला शक्तिपीठ: भारत और नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के पास बने इस शक्तिपीठ में माता का वाम स्कंध गिरा था।

NEPAL/ नेपाल/बिहार 

 

हिंगलाज शक्तिपीठ -यहाँ माता सती का 'ब्रह्मरंध्र' गिरा था। यहाँ माता सती को 'भैरवी/कोटटरी' तथा भगवन शिव को 'भीमलोचन' कहा जाता है। यहाँ शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में है। हिंगलाज करांची से 144 किमी दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में हिंगोस नदी के तट पर है। यही एक गुफा के भीतर जाने पर माँ आदिशक्ति के ज्योति रूप के दर्शन होते है।हिंगलाज शक्तिपीठ: पाकिस्तान के बलूचिस्तान में माता का सिर गिरा था।

 पाकिस्तान 

 

लंका शक्तिपीठ- श्रीलंका में, जहाँ सती का 'नूपुर' गिरा था। उस स्थान का पता / स्थिति ज्ञात नहीं है।लंका शक्तिपीठ: लंका शक्तिपीठ, जहां माता की पायल गिरी थी।

 श्री लंका 

  

मानस शक्तिपीठ- यहाँ माता सती की 'दाहिनी हथेली' गिरी थी। यहाँ माता सती को 'दाक्षायणी' तथा भगवन शिव को 'अमर' कहा जाता है। यह शक्तिपीठ तिब्बत में मानसरोवर के तट पर स्थित है। मानस शक्तिपीठ: तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता की दाहिनी हथेली गिरी थी।

 तिब्बत 

 

किरीट शक्तिपीठ -किरीट कात्यायनी: पश्चिमी बंगाल में हुगली नदी के तट पर लालबाग कोट स्थित शक्तिपीठ, जहां सती का किरीट यानी मुकुट गिरा था। ईस स्थान पर सती के 'किरीट (शिरोभूषण या मुकुट)' का निपात हुआ था। कुछ विद्वान मुकुट का निपात कानपुर के मुक्तेश्वरी मंदिर में मानते हैं।

उत्तर प्रदेश या  प॰ बंगाल 

 

नलहाटी शक्तिपीठ- यहाँ सती की 'उदर नली' का पतन हुआ था।[8] यहाँ की सती 'कालिका' तथा भैरव 'योगीश' हैं। नलहरी शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के बोलपुर में माता की उदरनली गिरी थी।

west bangal /

प॰ बंगाल 

 

वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ- यहाँ का मुख्य मंदिर वक्त्रेश्वर शिव मंदिर है। यहाँ पर सती का 'मन' गिरा था। बक्रेश्वर: बीरभूम, पश्चिम बंगाल के पापहर नदी से सात किलोमीटर दूर स्थित इस शक्तिपीठ में सती का भ्रूमध्य गिरा था।

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त्रिस्तोता शक्तिपीठ- यहाँ के बोदा इलाके के शालवाड़ी गाँव में तीस्ता नदी के तट पर 'त्रिस्तोता शक्तिपीठ' है, जहाँ सती के 'वाम-चरण' का पतन हुआ था। यहाँ की सती 'भ्रामरी' तथा शिव 'ईश्वर' हैं।त्रिस्तोता शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के जलपाईगुडी के शालवाडी गांव में तीस्ता नदी पर माता का वाम पाद गिरा था।

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अट्टहास शक्तिपीठ- अट्टाहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर (लामपुर) रेलवे स्टेशन वर्धमान से लगभग 95 किलोमीटर आगे कटवा-अहमदपुर रेलवे लाइन पर है, जहाँ सती का 'नीचे का होठ'[6] गिरा था। इसे अट्टहास शक्तिपीठ कहा जाता है, जो लामपुर स्टेशन से नजदीक ही थोड़ी दूर पर है।

प॰ बंगाल 

 

  नन्दीपुर शक्तिपीठ -पश्चिम बंगाल के बोलपुर (शांति निकेतन) से 33 किमी दूर सैन्थिया रेलवे जंक्शन से अग्निकोण में, थोड़ी दूर रेलवे लाइन के निकट ही एक वटवृक्ष के नीचे देवी मन्दिर है, यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी के देह से 'कण्ठहार' गिरा था।

प॰ बंगाल 

  

बहुला शक्तिपीठ -पश्चिम बंगाल के हावड़ा से 145 किलोमीटर दूर पूर्वी रेलवे के नवद्वीप धाम से 41 कि.मी. दूर कटवा जंक्शन से पश्चिम की ओर केतुग्राम या केतु ब्रह्म गाँव में स्थित है-'बहुला शक्तिपीठ', जहाँ सती के 'वाम बाहु' का पतन हुआ था। यहाँ की सती 'बहुला' तथा शिव 'भीरुक' हैं। बहुला शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता की बायीं भुजा गिरी थी।

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विभाष शक्तिपीठ- यहाँ माता सती का 'बायाँ टखना'[11] गिरा था। यहाँ माता सती 'कपालिनी' अर्थात 'भीमरूपा' और भगवन शिव 'सर्वानन्द' कपाली है। पश्चिम बंगाल के पासकुडा स्टेशन से 24 किमी दूर मिदनापुर में तमलूक स्टेशन है। वहाँ का काली मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। विभाष शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक गांव में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। 

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युगाद्या शक्तिपीठ (क्षीरग्राम शक्तिपीठ 'युगाद्या शक्तिपीठ' बंगाल के पूर्वी रेलवे के वर्धमान जंक्शन से 39 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा कटवा से 21 किमी. दक्षिण-पश्चिम में महाकुमार-मंगलकोट थानांतर्गत क्षीरग्राम में स्थित है- युगाद्या शक्तिपीठ, जहाँ की अधिष्ठात्री देवी हैं- 'युगाद्या' तथा 'भैरव' हैं- क्षीर कण्टक। तंत्र चूड़ामणि के अनुसार यहाँ माता सती के 'दाहिने चरण का अँगूठा' गिरा था।युगाद्या शक्तिपीठ (क्षीरग्राम शक्तिपीठ): पश्चिम बंगाल के बर्दमान में क्षीरग्राम स्थित शक्तिपीठ, जहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था।

प॰ बंगाल 

 

काली शक्तिपीठ- कालीघाट काली मंदिर- यहाँ माता सती की 'शेष उँगलियाँ'[12] गिरी थी। यहाँ माता सती को 'कलिका' तथा भगवन शिव को 'नकुलेश' कहा जाता है। पश्चिम बंगाल, कलकत्ता के कालीघाट में काली माता का सुविख्यात मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।काली शक्तिपीठ: कोलकाता के कालीघाट नाम से यह शक्तिपीठ, जहां माता के दायें पांव का अंगूठा छोडकर चार अन्य अंगुलियां गिरी थीं।

WEST BANGAL /

प॰ बंगाल 

1 -  कान की मणि   2 -  बायाँ गाल  3- ऊपर के दांत 4- नीचे के दाँत 5- ऊपरी होठ 6-   अधरोष्ठ 7- तंत्र चूड़ामणि। 8-  मतांतर से शिरोनली का निपात 9 - वर्तमान चेन्नई  10-  (कलाइयों) 11- एड़ी के ऊपर की हड्डी की गांठ 12-  दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां 13-  कपोल 14-  सुनंदा नदी 15 – नाक , 16 - दाहिनी भुजा  17- बायीं हथेली .

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