Tuesday, 28 March 2017

ऋगवेदका प्रथम मंत्र

 The Daily Veda हर घर वेद पुराणों की शिक्षा और ज्ञान, Vedon ke Sukt Mantra Katha, Sabhi Vedic Sahitya, Vedic Sadhna, Ishwar ki Aarti, Chalisha, Mantra, Strot Sangrah, Puranon ki Kahaniyon in Hindi Home  Wednesday, 9 March 2016 ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 अर्थ | Rigved Ath Pratham Mandla Sukt 1 Arth ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 ऋषि - मधुच्छन्दा वैश्वामित्र देवता – अग्नि छंद – गायत्री ऋग्वेद के प्रथम सूक्त में अग्निदेव का यज्ञ में आवाहन किया जाता है, उनकी महिमा, उनकी हर जगह उपस्थिति और उनके द्वारा मानव जीवन के कल्याण के बारे में चर्चा की गई है. उनसे विनती की गई है कि वे यज्ञ में पधारे और यज्ञ को आगे बढायें और यज्ञ करने वाले यजमान को यज्ञ के लाभ से विभूषित करें. साथ ही अग्निदेव को पिता के रूप में भी दिखाया गया है और उनसे विनती की गई है कि जिस तरह पुत्र को पिता बिना जतन के मिल जाते है उसी प्रकार अग्निदेव भी सब पर एक पिता के रूप में अपनी दृष्टि बनायें रखें.  ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 अर्थ 1. ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् || 1 || प्रथम मंडल के प्रथम मंत्र की शुरुआत अग्निदेव की स्तुति से की गई है और कहा गये है कि हे अग्निदेव ! हम सब आपकी स्तुति करते है. आप ( अग्निदेव ) जो यज्ञ* के पुरोहितों*, सभी देवताओं*, सभी ऋत्विजों*, होताओं* और याजकों* को रत्नों* से विभूषित कर उनका कल्याण करें. - यज्ञ : सर्वश्रेष्ठ परमार्थिक कर्म, यज्ञ को एक ऐसा कार्य माना जाता है जिससे परमार्थ की प्राप्ति होती है. - पुरोहित : पुरोहित वे लोग होते है जो यज्ञ को आगे बढाते है. - देवता : सभी को अनुदान देने वाले - ऋत्विज : जो समय के अनुसार और समय के अनुकूल ही यज्ञ का सम्पादन करते है - होता : होता वे लोग होते है जो यज्ञ में देवों का आवाहन करते है - याजक : जो यज्ञ करवा रहा है - रत्न : यहाँ रत्न से अभिप्राय यज्ञ से प्राप्त होने वाले फल या लाभ से है 2. अग्निः पुर्वेभिर्ऋषिभीरीडयो नूतनैरुत | स देवाँ एह वक्षति || 2 || हे अग्निदेव ! आप जिनकी प्रशंसा का पूर्वकालीन ऋषियों ( अर्थात ऋषि भृगु और ऋषि अंगिरादी ) के द्वारा भी की गई है. जो आने वाले आधुनिक काल या समय में भी ऋषि कल्प वेदज्ञ द्वारा हमेशा पूजनीय व स्तुत्य है. आप कृपा कर इस यज्ञ में देवाताओं का आवाहन करें और हमे पुण्य फल प्राप्ति में सहायक बने.  Rigved Ath Pratham Mandla Sukt 1 Arth 3. अग्निना रयिमश्नवत् पोषमेव दिवेदिवे | यशसं वीरवतमम् || 3 || हे अग्निदेव ! हम आपकी स्तुति करते है आप सभी याजकों / यजमानों / मनुष्यों को यश, धन, सुख, समृद्धि, पुत्र – पौत्र, विवेक और बल प्रदान करने वालें है. 4. अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि | स इछेवेषु गच्छति || 4 || यहाँ बताया गया है कि यज्ञ को देवताओं तक पहुचाने में अग्नि देव की क्या महता है और कहा गया है कि हे अग्नि देव ! आप सबकी रक्षा करते है और जिस यज्ञ को हिंसा रहित तरीके से रक्षित और आवृत करते है वही यज्ञ देवताओं तक पहुँच पाता है. 5. अग्निहोंता कविक्रतु: सत्यश्चित्रश्र्वस्तमः | देवो देवेभिरा गमत् || 5 || इस मंत्र में अग्निदेव को सभी देवताओं के साथ यज्ञ में पधारने का आवाहन किया गया है और कहा गया है कि हे अग्निदेव ! आप सत्यरूप है, आप ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक है और आपका रूप विलक्षण है. आप इस यज्ञ में सभी देवों के साथ पधार कर इस यज्ञ को पूर्ण करें. 6. यद्डग् दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि | तवेत्त् सत्यमडिग्र: || 6 || यहाँ कहा गया है कि सब कुछ आपका ही है सब कुछ आपसे ही प्राप्त हुआ है और सब कुछ वापस आपके ही पास आना है. कहा गया है कि हे अग्निदेव ! आप जो मनुष्यों को रहने के लिए घर, जीवनयापन के लिए धन, संतान या पशु इत्यादि देकर समृद्ध करते हो और उनका कल्याण करते हो वो यज्ञ द्वारा आपको ही प्राप्त होता है.  प्रथम मंडलम 7. उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् | नमो भरन्त एमसी || 7 || इस मंत्र में कहा गया है कि हे अग्निदेव ! हम सब आपके सच्चे उपासक है और पूरी श्रद्धा से आपकी उपसना करते है, हम अपनी श्रेष्ठ बुद्धि से दिन रात आपकी स्तुति व आपका सतत गुणगान करते है. साथ ही अग्निदेव से प्रार्थना की जाती है कि हे अग्निदेव ! हम सबको हमेशा आपका सान्निध्य प्राप्त हो. 8. राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दीदिविम् | वर्धमानं स्वे दमे || 8 || यहाँ भी अग्निदेव की प्रशंसा की गई है और कहा गया है कि हम सब गृहस्थ लोग है और आप ( अग्निदेव ) जो सभी यज्ञों की रक्षा करते है, जो सत्यवचनरूप व्रतों को आलोकित करते है, जो यज्ञ स्थलों में वृद्धि करते है. हम सब आपके समीप आते है और आपकी स्तुति करते है. 9. स नः पितेव सूनवेग्ने सूपायनो भव | सचस्वा नः स्वस्तये || 9 || इस मंत्र में अग्निदेव को पिता का दर्जा देते हुए प्रार्थना की गई है कि हे गार्हपत्य अग्ने ! जिस प्रकार हर पुत्र को पिता सुखपूर्वक प्राप्त हो जाते है उसी प्रकार आप भी हमेशा हमारे साथ रहें और हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें. तो इस तरह इस पहले सूक्त में अग्निदेव जी की स्तुति की गई है और उनसे यज्ञ में सभी देवताओं के साथ पधारने की प्रार्थना की गई है.  सूक्त 1 ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 अर्थ, Rigved Ath Pratham Mandla Sukt 1 Arth, प्रथम मंडलम, सूक्त 1, Rigved ke Pahle Mandal ka Pahla Sukt, Agnidev Stuti, अग्निदेव स्तुति, Pratham Sukt Mandal or Arth OTHER IMPORTANT POSTS वेद का अर्थ महत्व व सार ऋग्वेद व ऋग्वेद संहिता विभाजन उत्पत्ति कैसे हुई विष्णु पुराण अध्याय 1 सृष्टि का निर्माण 10 इन्द्रियों 5 महाभूतों और स्वर्ण अंडे का निर्माण काल का स्वरूप और ब्रह्मा की आयु at March 09, 2016 Email This BlogThis! Share to Twitter Share to Facebook Share to Pinterest  Labels: Agnidev Stuti, Pratham Sukt Mandal or Arth, Rigved ke Pahle Mandal ka Pahla Sukt, अग्निदेव स्तुति, प्रथम मंडलम, सूक्त 1  Newer Post Older Post Home Subscribe to: Post Comments (Atom) रम्भा साधना | Rambha Sadhana | Rambha Practice रम्भा अप्सरा :- कभी भी अप्सराओं का नाम लिया जाता है तो, मन में केवल एक ही तस्वीर बनती है. जो उस स्त्री की होती है, जो बहुत सुन्दर, मन ...   उत्पत्ति कैसे हुई विष्णु पुराण अध्याय 1 | Utpatti Kaise Hui Vishnu Puraan Adhyaay 1 | Theory of Creation Vishnu Puran Chapter 1 विष्णु पुराण अध्याय 1 सूत जी के महर्षि पराशर को उत्पत्ति के प्रश्न श्री सूत जी के महर्षि पराशर को प्रश्न : श्री सूत जी ( परम ज्ञान...  सृष्टि का निर्माण | Srishti ka Nirmaan | The Creation of Universe according to Vishnu Purana उत्पत्ति का वर्णन ( Describe the Origin ) श्री पराशर जी ने जगत की उत्पत्ति के बारे में सूत जी को बताना शुरू किया और कहा कि वे इस जगत ...  ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 अर्थ | Rigved Ath Pratham Mandla Sukt 1 Arth ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 ऋषि - मधुच्छन्दा वैश्वामित्र देवता – अग्नि छंद – गायत्री ऋग्वेद के प्रथम सूक्त में अग्निदेव...  Search This Blog  Search  Total Pageviews  5976 About Me  The Daily Veda  View my complete profile Blog Archive ► 2017 (9) ▼ 2016 (7) ▼ March (7) काल का स्वरूप और ब्रह्मा की आयु | Kaal ka Svaroop ... 10 Indriyon 5 Mahabhuton or Svarn Ande ka Nirmaan ... सृष्टि का निर्माण | Srishti ka Nirmaan | The Creat... उत्पत्ति कैसे हुई विष्णु पुराण अध्याय 1 | Utpatti ... ऋग्वेद अथ प्रथम मंडलम सूक्त 1 अर्थ | Rigved Ath Pr... ऋग्वेद व ऋग्वेद संहिता विभाजन | Rigveda v Rigveda ... Veda ka Arth Mahtv or Saar | वेद का अर्थ महत्व व स... Follow by Email  Email address... Submit Report Abuse Labels 3 Ahankaron ka Janm 5 Gyanendriyan 5 Karmendriyan Aakash Vaayu Jal Prithvi Gandh ki Utpatti Agnidev Stuti Apsara ko Kaise Sadhen Apsara Sadhna Apsara Sadhna Ki Sawdhaniyan Apsara Sadhna Mantra Apsara Sadhna Niyam Palan Apsara Sadhna Vidhi Aswini Kumar Ath Prathmam Mandalam Ath Prathmam Mandalam Sukt - 4 Bhgwan Shiv Ka Vyaktitav Brahma Ki Aayu Brahmaa Ji ki Umar Brahmand Kaise Bna Chapter 2 Vishnu Puran Char Yug Chaturyug Chhand Gyatri Creation Devi Saraswati Devraj Indra Devtaon ko Somras Gayatri Chhand Indra Vayu Dev Aavahan Kaal Chakra Kab Kaise Di Brahma Ji ne Vedon ki Shiksha Kaise Karen Apsara Sadhna Kaisi Hoti Hai Apsara Madhuchhanda Vaishvamitra Manushy Varsh or Dev Varsh mein Antar Natraj Shiv Pratham Mandal Pratham Mandalam Sukt 2 Arth Hindi Pratham Sukt Mandal or Arth Raajas Tejas Tamas Saatvik Ahankaar Rambha Rambha Apsara Sadhana Rig Ved ka Arth Rig Veda Rig Veda Mantra Sukt Mandal Rigved ke Pahle Mandal ka Pahla Sukt Rigveda Rigveda Sukt 2 Safal Manorath Sansaar ka Nirmaan Kaise Hua Shiv Ji Ke Naam Shiv Ji Ki Puja Shiv Ki Puja Vidhi Shree Sut ji or Maharshi Parashar Ji Varta Srishti ka Nirman or Vinash Sukt - 4 Sukt - 4 Gayatri Chand Sukt 2 Svarn Ande ki Rachna Tanmaatraon ka Janm Tin Lok Trilok Utpatti Utpatti ka Varnan Vaibhav ka Vardan Ved Ved Ka Arth Ved Ka Atihashik Mahatav Ved Ka Darshnik Mahatav Ved Ka Dharmik Mahatav Ved Ka Mahatav Ved Ki Paribhasha Ved Parichay Veda Veda Shabd Nirmaan Veda Sunne Vaale Pahle 4 Rishi Vishnu Bhgwan Aur Lakshmi Maa Ka Prithvi Bharman Vishnu Bhgwan Ki Mali Se Smbhandit Kahani Vishnu Bhgwan Se Sambhandit Ek Kahani Vishnu ke Teen Roop Vishnu Mahima Vishnu Puran Vishnu Puran Chapter 3 Yagya Anusthan in Rigveda Yugon ki Smay Sarani अग्निदेव स्तुति अण्ड से सृष्टि निर्माण अप्सरा साधना अश्विनीकुमार अष्टक क्रम उत्पत्ति ऋग्वेद ऋग्वेद संहिता ऋग्वेद सूक्त 4 काल का वर्णन ज्ञान का वेद प्रथम मंडलम भगवान विष्णु मंडल क्रम महर्षि पराशर मैत्रेय संवाद रम्भा साधना विष्णु पुराण अध्याय 2 विष्णु पुराण पाठ 3 विष्णु पुराण प्रथम पाठ वेद वेद का परिचय शिव शिव जी का परिचय सबसे पहले किसे मिला वेदों का ज्ञान सुक्त 3 सूक्त 1 वेद Aakash Vaayu Jal Prithvi Gandh ki Utpatti Agnidev Stuti Aswini Kumar Chhand Gyatri Devi Saraswati Devraj Indra Devtaon ko Somras Gayatri Chhand Indra Vayu Dev Aavahan Kab Kaise Di Brahma Ji ne Vedon ki Shiksha Madhuchhanda Vaishvamitra Pratham Mandal Pratham Mandalam Sukt 2 Arth Hindi Pratham Sukt Mandal or Arth Rig Ved ka Arth Rig Veda Rig Veda Mantra Sukt Mandal Rigved ke Pahle Mandal ka Pahla Sukt Rigveda Rigveda Sukt 2 Safal Manorath Sukt 2 Veda Veda Sunne Vaale Pahle 4 Rishi Yagya Anusthan in Rigveda अग्निदेव स्तुति अश्विनीकुमार अष्टक क्रम ऋग्वेद ज्ञान का वेद प्रथम मंडलम मंडल क्रम वेद सबसे पहले किसे मिला वेदों का ज्ञान सुक्त 3 सूक्त 1  Google+ Followers   Simple theme. Powered by Blogger.

No comments:

Post a Comment