Monday, 24 July 2017

विष्‍णु अवतार दत्तात्रैय दत्त अवतार का मुख्य गुण क्षमा है। वेदों का यज्ञक्रिया सहित पुनर्रूजीवन, चातुर्वर्ण्य की पुनर्रचना तथा अधर्म का नाश यही इनका अवतार कार्य माना जाता है। दत्य सन्यास पद्धति का प्रचार किया। धर्म रक्षार्थ इन्होंने कीर्तिवीर्य के द्वारा पृथ्वी को मलेछों से रहित किया। दत्तात्रैय ने शिष्य परम्परा का भी निर्वाह किया। इनके अलर्क, अल्हार, यदु तथा सहस्त्ररार्जुन नामक शिष्य थे। जिन्हें इसने ब्रह्म विद्या दी। अलर्क को आत्मज्ञान, योग, योगधर्म, योगचर्या योगसिद्धि तथा निष्काम बुद्धि के संबंध में उपदेश दिया। आयु, परशुराम तथा सांकृति भी दत्त के शिष्य थे। दत्तात्रैय विष्णु का अवतार माना जाता है। यह अत्रि ऋषि और अनुसूया के पुत्र था। अत्रि ऋषि के तीन पुत्र थे दत्त, सोम और दुर्वासा। इनमें से दत्त को विष्णु का, सोम को ब्रह्म का तथा दुर्वासा को रुद्र देवता अर्थात शंकर का स्वरूप माना जाता है। दत्त का जन्म काल मार्गशीष सुदी चर्तुदशी को दोपहर या रात्रि में माना जाता है। दत्त जयंती का समारोह भी उसी समय मनाया जाता है। कई स्थनों पर मार्गशीष सुदी पूर्णिमा के दिन सुबह, शाम या मध्यरात्रि में मनाया जाता है। महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार दत्त के निमि नामक एक पुत्र था। वर्तमान में ब्रह्मा, विष्णु, महेशात्मक त्रिमुखी दत्त की उपासना की जाती है। इसके तीन मुख तथा छः हाथ चित्रित किए गए हैं। दत्त के पीछे एक गाय तथा आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। पुराणों में त्रिमुखी दत्त का स्वरूप उपलब्ध नहीं है। उन ग्रंथों में त्रिमुखी में अभिप्रेत तीन देवताओं को तीन एवं दुर्वासा का वर्णन किया गया है। पुराणों में दत्त के पीछे गाय व आगे कुत्ते का वर्णन भी नहीं मिलता। महाराष्ट्र में त्रिमुख दत्त का प्राचीनतम वर्णन ’सरस्वती गंगांधर रचित गुरू चरित्र ग्रंथ‘ में मिलता है। ग्रंथ में उसे परब्रह्म का स्वरूप मानकर इसके तीन सिंर, छः गाय एक धेनु एवं श्रवणों सहित वर्णन मिलता है। महाकवि माघ के ’शिशुपाल ग्रंथ‘ नामक काव्य में दत्त को विष्णु का अवतार कहा गया है। दत्त को विष्णु का यह प्रथम वर्णन है। दत्त ने आत्मज्ञान के लिए अपने अत्रि से पूछा कि मुझे ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार होगी। अत्रि ने उसे गौतमी (गोदावरी) के तट पर जाकर महेश्वर की आराधना करने को कहा। यहां आराधना करने पर इसे आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। गोदावरी तट पर जहां दत्त ने आराधना की थी उस स्थान को ब्रह्मतीर्थ कहा जाता है। यह ब्रह्मनिष्ठ था तथा इसे धर्म का दर्शन हुआ। दत्त अवतार का मुख्य गुण क्षमा है। वेदों का यज्ञक्रिया सहित पुर्नजीवन, चातुर्वर्ण्य की पुर्नघटना तथा अधर्म कल्याण यही इसकी अवतार कार्य माना जाता है। इसने सन्यास पद्धति का प्रचार किया। धर्म रक्षार्थ इसने कीर्तिवीर्य के द्वारा पृथ्वी को मलेच्छों से रहित किया। दत्तात्रैय ने शिष्य परम्परा का भी निर्वाह किया। इसके अलर्क, अल्हार, यदु तथा सहस्त्ररार्जुन नामक शिष्य थे। जिन्हें इसने ब्रह्म विद्या दी। इसने अलर्क को आत्मज्ञान, योग, योगधर्म, योगचर्या योग सिद्धि तथा निष्काम बुद्धि के संबंध मे ंउपदेश दिया। आयु, परशुराम तथा सांकृति भी दत्त के शिष्य थे। दत्त का आश्रम गिरिनगर में था। पश्चिमी घाट में मल्लीग्राम (माहूर) में दत्त का आश्रम था। इसी स्थान पर परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि को अग्नि दी थी तथा यहीं रेणुका सती हो गई थीं। इसीलिए इस स्थान पर मातृतीर्थी का निर्माण हुआ। ऐसा पुत्र आयु दत्त का शिष्य था उसके पुत्र नहीं था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह दत्त के पास आया उस समय दत्त स्त्रियों के साथ क्रीडा कर रहा था। मदिरा पान के कारण उसकी आंखें लाल हो रही थीं। उसकी जांघ पर एक स्त्री बैठी थी। गले में यज्ञोपवीत नहीं था। गायन व नृत्य चल रहा था। शरीर चंदनादि से लेपयुक्त था। उसी समय आयु ने वंदन कर पुत्र की मांग की। दत्त ने आयु को अपनी बेहोश अवस्था बतला दी। उसने कहा कि वर देने की शक्ति मुझमें नहीं है। आयु ने कहा कि आप विष्णु के अवतार हैं। अंत में दत्तात्रेय ने कहा, कपाल (मिट्टी के भिक्षा पात्र ) में मुझे मांस एवं मदिरा प्रदान करो। उसमें से मांस अपने हाथों से तोडकर मुझे दो। इस प्रकार उपहार देने पर दत्त ने प्रसन्न होकर आयु को प्रसाद रूप में श्रीफल दिया और कहा कि विष्णु का अंश धारण करने वाला पुत्र तुम्हें प्राप्त होगा। आयु ने यह फल अपनी पत्नी इन्दुमती को खाने को दिया। उन्हें नहुष नामक असुर चुरा ले गया। आयु बडा चिन्तित हुआ। नारद ने बतलाया कि नहुष द्वार हुण्ड का वर्ष होगा। तब वह चिन्तामुक्त हुआ। नहुष ने हुण्ड का वध कर दिया। दत्त चरित्र से संबंधित एक कथा महाभारत में दी गई है। गर्ग मुनि के कहने पर कीर्तिवीर्य दत्त के आश्रम में आया। एक निष्ठ सेवा करके उसने दत्त को प्रसन्न किया। तब दत्त ने कहा कि मद्यपान के कारण मेरा आचरण निंद्य बन चुका है। तुम पर अनुग्रह करने में सर्वथा असमर्थ हूं। किसी अन्य समर्थ पुरुष की आराधना करो। किन्तु अंत में दत्त ने कीर्तिवीर्य की निष्ठा देखकर उसे वर मांगने को कहा। कीर्तिवीर्य ने दत्त से चार वर मांगे। १.सहस्त्रबाहुत्व २.सर्वभौम पद ३. अद्यर्म निवृत्ति ४. युद्ध मृत्यु। दत्त ने वरों के साथ कीर्तिवीर्य को सुवर्ण विमान तथा ब्रह्मा विद्या का भी उपदेश दिया। कीर्तिवीर्य ने अपनी समस्त संपत्ति दत्त को अर्पण कर दी। कीर्तिवीर्य की राजधानी महष्मिती नर्मदा के किनारे थी। दत्त ने अवधूतोपनिषद्, जावालोपनिषद अवधूत गीता, त्रिपरोपस्ति पद्धति, परशुराम कल्प सूत्र, दत्त तंत्र विज्ञान सार ग्रंथ की स्वयं रचना की। इन ग्रंथों के अतिरिक्त दत्तात्रेयोपनिषद, दत्तात्रेय तंत्र आदि ग्रंथ संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ माने जाते हैं । दत्त संप्रदाय में तांत्रिक नाथ है तथा महानुभाव संप्रदायों में दत्त को उपास्य देव माना जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है। श्री नरसिंह सरस्वती (महाराष्ट्र में) आदि दत्तोपासक स्वयं दत्तावतार थे। ऐसी उनके भक्तों की श्रद्धा है। __________________________ गीता अनेक है , अष्टावक्र गीता, अवधूत गीता , राम गीता , शिव गीता , उद्धव गीता , गणपति गीता, देवी गीता , गुरु गीता ..................वास्तव में गीता में भी वेदैश्च सर्वैर अहमेव वेद्दो ,,, सर्वधर्मान परित्ज्य ,,,,,,, आदि कहा है , अर्थात उस "अहम् " तत्व जो वेद उपनिषदों में अहम् ब्रह्मास्मि ... आदि आदि के रूप में वर्णित है उसी का वर्णन है | जैसे शिव गीता [१४.४०] में भी भगवान् शिव सर्वधर्मान परित्ज्य ,,, श्लोक बोलते है जो गीता में [१८.६६] आया है | प्रत्येक गीता में ईश्वर मूर्ति ने "अहम् " शब्द का प्रयोग करते हूवे हमें उसी ब्रह्मानंद की और प्रेरित करते हुवे अनेक दिव्य साधनों का वर्णन किया है | देवी गीता ............... आदि सबकी भाषा एक ही है केवल अनंत विशुद्ध विग्रह धारी, माया उपाधिधारी चैतन्य की विग्रह विविधता ही गीताओं में दिखती है | ...तत्वमसि ,,,,,,,,, का साक्षात्कार ही गीता का लक्ष्य है | यही वेद का है | सस्ते और महंगे का विचार साधको के समाज में नहीं होता है | स्वधर्म का पालन करने वाले को ईश्वर स्वयं सभी सुविधाए उपलब्ध करा देते है योगक्क्षेमम वहामि अहम् | , अतः प्रारंभ तो पवित्र कर्मो से , निष्काम कर्मो से ही होगा और ईश्वर से प्रार्थना करनी होगी , फिर जैसा कर्म बीज शेष होगा उसके अनुसार ईश्वर स्वयं मार्ग स्पष्ट कर देंगे | || जय श्री राम || __________________________ श्री मद्भागवत में विभिन्न गीताओं का संग्रह श्री मद्भागवत महापुराण में अनेक गीताओं का संग्रह पढने को मिलता है! 1 सर्वप्रथम श्री मद्भागवत के महात्म्य में गोकर्ण गीता का दर्शन होता है जिसमे महात्मा गोकर्ण भाई धुंधकारी के द्वारा सताए जाने पर अपने पिता आत्मदेव को आत्मज्ञान देते हैं! 2 तृतीय स्कंध में कपिल गीता का सुन्दर वर्णन है जिसमे भगवन कपिल अपनी माता देवहूति को तत्वज्ञान देते हैं! 3 पंचम स्कंध में ऋषभ गीता का दर्शन होता है जिसमे भगवान ऋषभ अपने भारत आदि सौ पुत्रों को ज्ञान देते हैं! 4 हंस गीता में भगवान नारायण हंस अवतार में सनकादिक मुनियों को ज्ञान देते हैं! 5 अवधूत गीता में भगवन दत्तात्रेय महाराज यदु को ज्ञान देते हैं! 6 उद्धव गीता में जो की नवं स्कंध में आती है भगवान् श्री कृष्ण स्वधाम गमन से पहले उद्धव को तत्वज्ञान देते हैं जो की पठनीय है!

विष्‍णु अवतार दत्तात्रैय

दत्त अवतार का मुख्य गुण क्षमा है। वेदों का यज्ञक्रिया सहित पुनर्रूजीवन, चातुर्वर्ण्य की पुनर्रचना तथा अधर्म का नाश यही इनका अवतार कार्य माना जाता है। दत्य सन्यास पद्धति का प्रचार किया। धर्म रक्षार्थ इन्होंने कीर्तिवीर्य के द्वारा पृथ्वी को मलेछों से रहित किया। दत्तात्रैय ने शिष्य परम्परा का भी निर्वाह किया। इनके अलर्क, अल्हार, यदु तथा सहस्त्ररार्जुन नामक शिष्य थे। जिन्हें इसने ब्रह्म विद्या दी। अलर्क को आत्मज्ञान, योग, योगधर्म, योगचर्या योगसिद्धि तथा निष्काम बुद्धि के संबंध में उपदेश दिया। आयु, परशुराम तथा सांकृति भी दत्त के शिष्य थे।

दत्तात्रैय विष्णु का अवतार माना जाता है। यह अत्रि ऋषि और अनुसूया के पुत्र था। अत्रि ऋषि के तीन पुत्र थे दत्त, सोम और दुर्वासा। इनमें से दत्त को विष्णु का, सोम को ब्रह्म का तथा दुर्वासा को रुद्र देवता अर्थात शंकर का स्वरूप माना जाता है। दत्त का जन्म काल मार्गशीष सुदी चर्तुदशी को दोपहर या रात्रि में माना जाता है। दत्त जयंती का समारोह भी उसी समय मनाया जाता है। कई स्थनों पर मार्गशीष सुदी पूर्णिमा के दिन सुबह, शाम या मध्यरात्रि में मनाया जाता है। महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार दत्त के निमि नामक एक पुत्र था।

वर्तमान में ब्रह्मा, विष्णु, महेशात्मक त्रिमुखी दत्त की उपासना की जाती है। इसके तीन मुख तथा छः हाथ चित्रित किए गए हैं। दत्त के पीछे एक गाय तथा आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं। पुराणों में त्रिमुखी दत्त का स्वरूप उपलब्ध नहीं है। उन ग्रंथों में त्रिमुखी में अभिप्रेत तीन देवताओं को तीन एवं दुर्वासा का वर्णन किया गया है। पुराणों में दत्त के पीछे गाय व आगे कुत्ते का वर्णन भी नहीं मिलता।

महाराष्ट्र में त्रिमुख दत्त का प्राचीनतम वर्णन ’सरस्वती गंगांधर रचित गुरू चरित्र ग्रंथ‘ में मिलता है। ग्रंथ में उसे परब्रह्म का स्वरूप मानकर इसके तीन सिंर, छः गाय एक धेनु एवं श्रवणों सहित वर्णन मिलता है। महाकवि माघ के ’शिशुपाल ग्रंथ‘ नामक काव्य में दत्त को विष्णु का अवतार कहा गया है। दत्त को विष्णु का यह प्रथम वर्णन है।

दत्त ने आत्मज्ञान के लिए अपने अत्रि से पूछा कि मुझे ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार होगी। अत्रि ने उसे गौतमी (गोदावरी) के तट पर जाकर महेश्वर की आराधना करने को कहा। यहां आराधना करने पर इसे आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। गोदावरी तट पर जहां दत्त ने आराधना की थी उस स्थान को ब्रह्मतीर्थ कहा जाता है। यह ब्रह्मनिष्ठ था तथा इसे धर्म का दर्शन हुआ।

दत्त अवतार का मुख्य गुण क्षमा है। वेदों का यज्ञक्रिया सहित पुर्नजीवन, चातुर्वर्ण्य की पुर्नघटना तथा अधर्म कल्याण यही इसकी अवतार कार्य माना जाता है। इसने सन्यास पद्धति का प्रचार किया। धर्म रक्षार्थ इसने कीर्तिवीर्य के द्वारा पृथ्वी को मलेच्छों से रहित किया। दत्तात्रैय ने शिष्य परम्परा का भी निर्वाह किया। इसके अलर्क, अल्हार, यदु तथा सहस्त्ररार्जुन नामक शिष्य थे। जिन्हें इसने ब्रह्म विद्या दी। इसने अलर्क को आत्मज्ञान, योग, योगधर्म, योगचर्या योग सिद्धि तथा निष्काम बुद्धि के संबंध मे ंउपदेश दिया। आयु, परशुराम तथा सांकृति भी दत्त के शिष्य थे। दत्त का आश्रम गिरिनगर में था। पश्चिमी घाट में मल्लीग्राम (माहूर) में दत्त का आश्रम था। इसी स्थान पर परशुराम ने अपने पिता जमदग्नि को अग्नि दी थी तथा यहीं रेणुका सती हो गई थीं। इसीलिए इस स्थान पर मातृतीर्थी का निर्माण हुआ।

ऐसा पुत्र आयु दत्त का शिष्य था उसके पुत्र नहीं था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह दत्त के पास आया उस समय दत्त स्त्रियों के साथ क्रीडा कर रहा था। मदिरा पान के कारण उसकी आंखें लाल हो रही थीं। उसकी जांघ पर एक स्त्री बैठी थी। गले में यज्ञोपवीत नहीं था। गायन व नृत्य चल रहा था। शरीर चंदनादि से लेपयुक्त था। उसी समय आयु ने वंदन कर पुत्र की मांग की। दत्त ने आयु को अपनी बेहोश अवस्था बतला दी। उसने कहा कि वर देने की शक्ति मुझमें नहीं है। आयु ने कहा कि आप विष्णु के अवतार हैं। अंत में दत्तात्रेय ने कहा, कपाल (मिट्टी के भिक्षा पात्र ) में मुझे मांस एवं मदिरा प्रदान करो। उसमें से मांस अपने हाथों से तोडकर मुझे दो। इस प्रकार उपहार देने पर दत्त ने प्रसन्न होकर आयु को प्रसाद रूप में श्रीफल दिया और कहा कि विष्णु का अंश धारण करने वाला पुत्र तुम्हें प्राप्त होगा। आयु ने यह फल अपनी पत्नी इन्दुमती को खाने को दिया। उन्हें नहुष नामक असुर चुरा ले गया। आयु बडा चिन्तित हुआ। नारद ने बतलाया कि नहुष द्वार हुण्ड का वर्ष होगा। तब वह चिन्तामुक्त हुआ। नहुष ने हुण्ड का वध कर दिया।

दत्त चरित्र से संबंधित एक कथा महाभारत में दी गई है। गर्ग मुनि के कहने पर कीर्तिवीर्य दत्त के आश्रम में आया। एक निष्ठ सेवा करके उसने दत्त को प्रसन्न किया। तब दत्त ने कहा कि मद्यपान के कारण मेरा आचरण निंद्य बन चुका है। तुम पर अनुग्रह करने में सर्वथा असमर्थ हूं। किसी अन्य समर्थ पुरुष की आराधना करो। किन्तु अंत में दत्त ने कीर्तिवीर्य की निष्ठा देखकर उसे वर मांगने को कहा। कीर्तिवीर्य ने दत्त से चार वर मांगे। १.सहस्त्रबाहुत्व २.सर्वभौम पद ३. अद्यर्म निवृत्ति ४. युद्ध मृत्यु। दत्त ने वरों के साथ कीर्तिवीर्य को सुवर्ण विमान तथा ब्रह्मा विद्या का भी उपदेश दिया। कीर्तिवीर्य ने अपनी समस्त संपत्ति दत्त को अर्पण कर दी। कीर्तिवीर्य की
राजधानी महष्मिती नर्मदा के किनारे थी।

दत्त ने अवधूतोपनिषद्, जावालोपनिषद अवधूत गीता, त्रिपरोपस्ति पद्धति, परशुराम कल्प सूत्र, दत्त तंत्र विज्ञान सार ग्रंथ की स्वयं रचना की। इन ग्रंथों के अतिरिक्त दत्तात्रेयोपनिषद, दत्तात्रेय तंत्र आदि ग्रंथ संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ माने जाते हैं । दत्त संप्रदाय में तांत्रिक नाथ है तथा महानुभाव संप्रदायों में दत्त को उपास्य देव माना जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है। श्री नरसिंह सरस्वती (महाराष्ट्र में) आदि दत्तोपासक स्वयं दत्तावतार थे। ऐसी उनके भक्तों की श्रद्धा है।
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गीता अनेक है , अष्टावक्र गीता, अवधूत गीता , राम गीता , शिव गीता , उद्धव गीता , गणपति गीता, देवी गीता , गुरु गीता ..................वास्तव में गीता में भी वेदैश्च सर्वैर अहमेव वेद्दो ,,, सर्वधर्मान परित्ज्य ,,,,,,, आदि कहा है , अर्थात उस "अहम् " तत्व जो वेद उपनिषदों में अहम् ब्रह्मास्मि ... आदि आदि के रूप में वर्णित है उसी का वर्णन है | जैसे शिव गीता [१४.४०] में भी भगवान् शिव सर्वधर्मान परित्ज्य ,,, श्लोक बोलते है जो गीता में [१८.६६] आया है | प्रत्येक गीता में ईश्वर मूर्ति ने "अहम् " शब्द का प्रयोग करते हूवे हमें उसी ब्रह्मानंद की और प्रेरित करते हुवे अनेक दिव्य साधनों का वर्णन किया है | देवी गीता ............... आदि सबकी भाषा एक ही है केवल अनंत विशुद्ध विग्रह धारी, माया उपाधिधारी चैतन्य की विग्रह विविधता ही गीताओं में दिखती है | ...तत्वमसि ,,,,,,,,, का साक्षात्कार ही गीता का लक्ष्य है | यही वेद का है | सस्ते और महंगे का विचार साधको के समाज में नहीं होता है | स्वधर्म का पालन करने वाले को ईश्वर स्वयं सभी सुविधाए उपलब्ध करा देते है योगक्क्षेमम वहामि अहम् | , अतः प्रारंभ तो पवित्र कर्मो से , निष्काम कर्मो से ही होगा और ईश्वर से प्रार्थना करनी होगी , फिर जैसा कर्म बीज शेष होगा उसके अनुसार ईश्वर स्वयं मार्ग स्पष्ट कर देंगे | || जय श्री राम ||
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श्री मद्भागवत में विभिन्न गीताओं का संग्रह

श्री मद्भागवत महापुराण में अनेक गीताओं का संग्रह पढने को मिलता है!

1 सर्वप्रथम श्री मद्भागवत के महात्म्य में गोकर्ण गीता का दर्शन होता है
जिसमे महात्मा गोकर्ण भाई धुंधकारी के द्वारा सताए जाने पर
अपने पिता आत्मदेव को आत्मज्ञान देते हैं!

2 तृतीय स्कंध में कपिल गीता का सुन्दर वर्णन है
जिसमे भगवन कपिल अपनी माता देवहूति को तत्वज्ञान देते हैं!

3 पंचम स्कंध में ऋषभ गीता का दर्शन होता है
जिसमे भगवान ऋषभ अपने भारत आदि सौ पुत्रों को ज्ञान देते हैं!

4 हंस गीता में भगवान नारायण
हंस अवतार में सनकादिक मुनियों को ज्ञान देते हैं!

5 अवधूत गीता में भगवन दत्तात्रेय महाराज यदु को ज्ञान देते हैं!

6 उद्धव गीता में जो की नवं स्कंध में आती है
भगवान् श्री कृष्ण स्वधाम गमन से पहले उद्धव को तत्वज्ञान देते हैं जो की पठनीय है!

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