Tuesday, 25 July 2017

(श्रीरामचरितमानस/बालकाण्ड)दोहा :39 चौपाई : * जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नीद जुड़ाई होई॥ जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा॥1॥ भावार्थ:-यदि कोई मनुष्य कष्ट उठाकर वहाँ तक पहुँच भी जाए, तो वहाँ जाते ही उसे नींद रूपी ज़ूडी आ जाती है। हृदय में मूर्खता रूपी बड़ा कड़ा जाड़ा लगने लगता है, जिससे वहाँ जाकर भी वह अभागा स्नान नहीं कर पाता॥1॥ * करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना। जौं बहोरि कोउ पूछन आवा। सर निंदा करि ताहि बुझावा॥2॥ भावार्थ:-उससे उस सरोवर में स्नान और उसका जलपान तो किया नहीं जाता, वह अभिमान सहित लौट आता है। फिर यदि कोई उससे (वहाँ का हाल) पूछने आता है, तो वह (अपने अभाग्य की बात न कहकर) सरोवर की निंदा करके उसे समझाता है॥2॥ * सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥ सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई॥3॥ भावार्थ:-ये सारे विघ्न उसको नहीं व्यापते (बाधा नहीं देते) जिसे श्री रामचंद्रजी सुंदर कृपा की दृष्टि से देखते हैं। वही आदरपूर्वक इस सरोवर में स्नान करता है और महान्‌ भयानक त्रिताप से (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तापों से) नहीं जलता॥3॥ * ते नर यह सर तजहिं न काऊ। जिन्ह कें राम चरन भल भाऊ॥ जो नहाइ चह एहिं सर भाई। सो सतसंग करउ मन लाई॥4॥ भावार्थ:-जिनके मन में श्री रामचंद्रजी के चरणों में सुंदर प्रेम है, वे इस सरोवर को कभी नहीं छोड़ते। हे भाई! जो इस सरोवर में स्नान करना चाहे, वह मन लगाकर सत्संग करे॥4॥ * अस मानस मानस चख चाही। भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही॥ भयउ हृदयँ आनंद उछाहू। उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू॥5॥ भावार्थ:-ऐसे मानस सरोवर को हृदय के नेत्रों से देखकर और उसमें गोता लगाकर कवि की बुद्धि निर्मल हो गई, हृदय में आनंद और उत्साह भर गया और प्रेम तथा आनंद का प्रवाह उमड़ आया॥5॥ *चली सुभग कबिता सरिता सो। राम बिमल जस जल भरित सो। सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मत मंजुल कूला॥6॥ भावार्थ:-उससे वह सुंदर कविता रूपी नदी बह निकली, जिसमें श्री रामजी का निर्मल यश रूपी जल भरा है। इस (कवितारूपिणी नदी) का नाम सरयू है, जो संपूर्ण सुंदर मंगलों की जड़ है। लोकमत और वेदमत इसके दो सुंदर किनारे हैं॥6॥ * नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि॥7॥ भावार्थ:-यह सुंदर मानस सरोवर की कन्या सरयू नदी बड़ी पवित्र है और कलियुग के (छोटे-बड़े) पाप रूपी तिनकों और वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकने वाली है॥7॥ दोहा : श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल। संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥39॥ भावार्थ:-तीनों प्रकार के श्रोताओं का समाज ही इस नदी के दोनों किनारों पर बसे हुए पुरवे, गाँव और नगर में है और संतों की सभा ही सब सुंदर मंगलों की जड़ अनुपम अयोध्याजी हैं॥39॥

(श्रीरामचरितमानस/बालकाण्ड)दोहा :39
चौपाई :
* जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नीद जुड़ाई होई॥
जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा॥1॥
भावार्थ:-यदि कोई मनुष्य कष्ट उठाकर वहाँ तक पहुँच भी जाए, तो वहाँ जाते ही उसे नींद रूपी ज़ूडी आ जाती है। हृदय में मूर्खता रूपी बड़ा कड़ा जाड़ा लगने लगता है, जिससे वहाँ जाकर भी वह अभागा स्नान नहीं कर पाता॥1॥
* करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना।
जौं बहोरि कोउ पूछन आवा। सर निंदा करि ताहि बुझावा॥2॥
भावार्थ:-उससे उस सरोवर में स्नान और उसका जलपान तो किया नहीं जाता, वह अभिमान सहित लौट आता है। फिर यदि कोई उससे (वहाँ का हाल) पूछने आता है, तो वह (अपने अभाग्य की बात न कहकर) सरोवर की निंदा करके उसे समझाता है॥2॥
* सकल बिघ्न ब्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई॥3॥
भावार्थ:-ये सारे विघ्न उसको नहीं व्यापते (बाधा नहीं देते) जिसे श्री रामचंद्रजी सुंदर कृपा की दृष्टि से देखते हैं। वही आदरपूर्वक इस सरोवर में स्नान करता है और महान्‌ भयानक त्रिताप से (आध्यात्मिक, आधिदैविक, आधिभौतिक तापों से) नहीं जलता॥3॥
* ते नर यह सर तजहिं न काऊ। जिन्ह कें राम चरन भल भाऊ॥
जो नहाइ चह एहिं सर भाई। सो सतसंग करउ मन लाई॥4॥
भावार्थ:-जिनके मन में श्री रामचंद्रजी के चरणों में सुंदर प्रेम है, वे इस सरोवर को कभी नहीं छोड़ते। हे भाई! जो इस सरोवर में स्नान करना चाहे, वह मन लगाकर सत्संग करे॥4॥
* अस मानस मानस चख चाही। भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही॥
भयउ हृदयँ आनंद उछाहू। उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू॥5॥
भावार्थ:-ऐसे मानस सरोवर को हृदय के नेत्रों से देखकर और उसमें गोता लगाकर कवि की बुद्धि निर्मल हो गई, हृदय में आनंद और उत्साह भर गया और प्रेम तथा आनंद का प्रवाह उमड़ आया॥5॥
*चली सुभग कबिता सरिता सो। राम बिमल जस जल भरित सो।
सरजू नाम सुमंगल मूला। लोक बेद मत मंजुल कूला॥6॥
भावार्थ:-उससे वह सुंदर कविता रूपी नदी बह निकली, जिसमें श्री रामजी का निर्मल यश रूपी जल भरा है। इस (कवितारूपिणी नदी) का नाम सरयू है, जो संपूर्ण सुंदर मंगलों की जड़ है। लोकमत और वेदमत इसके दो सुंदर किनारे हैं॥6॥
* नदी पुनीत सुमानस नंदिनि। कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि॥7॥
भावार्थ:-यह सुंदर मानस सरोवर की कन्या सरयू नदी बड़ी पवित्र है और कलियुग के (छोटे-बड़े) पाप रूपी तिनकों और वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकने वाली है॥7॥
दोहा : श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल।
         संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल॥39॥
भावार्थ:-तीनों प्रकार के श्रोताओं का समाज ही इस नदी के दोनों किनारों पर बसे हुए पुरवे, गाँव और नगर में है और संतों की सभा ही सब सुंदर मंगलों की जड़ अनुपम अयोध्याजी हैं॥39॥“सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुण गान ।
सादर सुनहि ते तरहि भव सिंधु बिना जलजान ।।“

मानस-महिमा

गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा ईश्वरीय प्रेरणा से रचित “श्रीरामचरितमानस” एक दिव्य महाकाव्य है | इसके श्रवणमात्र से जीव का परम कल्याण निश्चित है | इस महाकाव्य में कुछ दस बीस चौपाइयों को छोड़कर सम्पूर्ण ग्रन्थ में प्रत्येक पंक्ति में अखिल ब्रह्माण्डनायक भगवान् श्रीराम के नाम के बीजाक्षर “र” और “म” का समावेश है | इसी लिए ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही लिखा है कि इसमें श्रीराम जी का उदार नाम “राम” है –

“एहि महँ रघुपति नाम उदारा | अति पावन पुरान उदारा ||”....... (१.९.१)

इस प्रकार से श्रीराम नाममय होने के कारण “श्रीरामचरितमानस” श्रीराम जी का ठीक उसी तरह ग्रन्थावतार है, जैसे श्रीमद्भागवत भगवान् श्रीकृष्ण का ग्रन्थावतार माना जाता है | मन लगाकर श्रीरामचरितमानस के श्रवणमात्र से संसृति-क्लेश दूर होता है, ऐसा सन्तों का दृढ विश्वास है | सुनने का विशेष महत्त्व है | यह प्राकृतिक नियम है कि जो कुछ हम कानों से ग्रहण करते हैं, वह मुख से निकलता है | कानों से भगवान् का गुणगान सुनने से जब मुख से वहीं निकालेंगे तो जीवन धन्य हो जाएगा | “श्रीरामचरितमानस” के चार वक्ता-श्रोता हैं—गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मन को सुनाते हैं, याज्ञवल्क्य मुनि भारद्वाज को, शिवजी पार्वती जी को और काकभुशुंडि जी पक्षिराज गरुड़ जी को यह कथा सुनाते हुए कथा-श्रवण पर विशेष जोर देते हैं | “श्रीरामचरितमानस” में यह वर्णन क्रमश: इस प्रकार से है :-

१. गोस्वामी जी अपने मन से कहते हैं :-

“सुख भवन संसय समन दवन विषाद रघुपति गुन गना ||
तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि सन्तत सठ मना ||”.....(५.६० छंद)

२. याज्ञवल्क्यजी, भारद्वाज मुनि से कहते हैं :-

“ तात सुनहु सादर मनु लाई | कहउँ राम कै कथा सुहाई ||”.....(१.४७.५)

३. भगवान् शंकर,माता पार्वती जी से कहते हैं:-

“ सुनु सुभ कथा भवानि रामचरितमानस बिमल |
कहा भुसुंडी बखानि सुना बिहग नायक गरुड़ ||”......(१.१२०-ख)

४. काकभुशुंडि जी पक्षिराज गरुड़ जी से कहते हैं :-

“ सुनु खगपति यह कथा पावनी | त्रिविध ताप भव भय दाविनी ||”.....(७.१५.१)

(कल्याण-वर्ष ८८,संख्या ४)

अहमदावाद के सुप्रसिद्ध हनुमानजी के दर्शन दभोड़ा |

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