• हिन्दू मंदिर का इतिहास,
हिन्दुओं ने मंदिर बनाकर कब से पूजा और प्रार्थना करना शुरू किया। आखिर हिन्दू मंदिर निर्माण की शुरुआत कब हुई और क्यों? मंदिर की प्राचीनता के प्रमाण क्या हैं? प्राचीनकाल में हिन्दू मंदिर खगोलीय स्थान को ध्यान में रखकर एक विशेष स्थान पर बनाए गए थे।
हिंदू मंदिर की वास्तु रचना
हिन्दू मंदिर की रचना लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व हुई थी। उस काल में वैदिक ऋषि जंगल के अपने आश्रमों में ध्यान, प्रार्थना और यज्ञ करते थे। हालांकि लोकजीवन में मंदिरों का महत्व उतना नहीं था जितना आत्मचिंतन, मनन और शास्त्रार्थ का था। फिर भी आम जनता शिव और पार्वती के अलावा नगर, ग्राम और स्थान के देवी-देवताओं की प्रार्थना करते थे।
देश में सबसे प्राचीन शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है। प्राचीनकाल में यक्ष, नाग, शिव, दुर्गा, भैरव, इंद्र और विष्णु की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन था। रामायण काल में मंदिर होते थे इसके प्रमाण हैं। राम का काल आज से 7 हजार 200 वर्ष पूर्व था अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व।
हिन्दू मंदिरों को खासकर बौद्ध, चाणक्य और गुप्तकाल में भव्यता प्रदान की जाने लगी और जो प्राचीन मंदिर थे उनका पुन: निर्माण किया गया। ये सभी मंदिर ज्योतिष, वास्तु और धर्म के नियमों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। अधिकतर मंदिर कर्क रेखा या नक्षत्रों के ठीक ऊपर बनाए गए थे। उनमें से भी एक ही काल में बनाए गए सभी मंदिर एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। प्राचीन मंदिर ऊर्जा और प्रार्थना के केंद्र थे लेकिन आजकल के मंदिर तो पूजा-आरती के केंद्र हैं।
मध्यकाल में मुस्लिम आक्रांताओं ने जैन, बौद्ध और हिन्दू मंदिरों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त कर दिया। मलेशिया, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, कंबोडिया आदि मुस्लिम और बौद्ध राष्ट्रों में अब हिन्दू मंदिर नाममात्र के बचे हैं। अब ज्यादातर प्राचीन मंदिरों के बस खंडहर ही नजर आते हैं, जो सिर्फ पर्यटकों के देखने के लिए ही रह गए हैं। अधिकतर का तो अस्तित्व ही मिटा दिया गया है।
सबसे प्राचीन मंदिरों के बारे में
सबसे प्राचीन मंदिर के प्रमाण :
* राम के काल में सीता द्वारा गौरी पूजा करना इस बात का सबूत है कि उस काल में देवी-देवताओं की पूजा का महत्व था और उनके घर से अलग पूजा स्थल होते थे। इसी प्रकार महाभारत में दो घटनाओं में कृष्ण के साथ रुक्मणि और अर्जुन के साथ सुभद्रा के भागने के समय दोनों ही नायिकाओं द्वारा देवी पूजा के लिए वन में स्थित गौरी माता (माता पार्वती) के मंदिर की चर्चा है। इसके अलावा युद्ध की शुरुआत के पूर्व भी कृष्ण पांडवों के साथ गौरी माता के स्थल पर जाकर उनसे विजयी होने की प्रार्थना करते हैं।
* देश में सबसे प्राचीन शक्तिपीठों और ज्योतिर्लिंगों को माना जाता है। इन सभी का समय-समय पर जीर्णोद्धार किया गया। प्राचीनकाल में यक्ष, नाग, शिव, दुर्गा, भैरव, इंद्र और विष्णु की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन था। बौद्ध और जैन काल के उत्थान के दौर में मंदिरों के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा।
* मुंडेश्वरी देवी का मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी स्थापना 108 ईस्वी में हुविश्क के शासनकाल में हुई थी। यहां शिव और पार्वती की पूजा होती है। प्रमाणों के आधार पर इसे देश का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है।
* विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर अब सिर्फ कंबोडिया के अंकोरवाट में ही बचा हुआ है। अंकोर का पुराना नाम 'यशोधरपुर' था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मंदिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्रायः शिव मंदिरों का निर्माण किया था।
* साउथ अफ्रीका के सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव की 6 हजार वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति मिली जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्ववेत्ता हैरान हैं कि यह शिवलिंग यहां अभी तक सुरक्षित कैसे रहा।
* सोमनाथ के मंदिर के होने का ऋग्वेद में भी मिलता है इससे यह सिद्ध होता है भारत में मंदिर परंपरा कितनी पुरानी रही है। इतिहासकार मानते हैं कि ऋग्वेद की रचना 7000 से 1500 ईसा पूर्व हई थी अर्थात आज से 9 हजार वर्ष पूर्व। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।
* विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर है। इसका निर्माण 1003- 1010 ई. के बीच चोल शासक राजाराज चोल 1 ने करवाया था। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बने हैं। यह भव्य मंदिर राजाराज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 एडी और 1009 एडी के दौरान) निर्मित किया गया था।
* तिरुपति शहर में बना विष्णु मंदिर 10वीं शताब्दी के दौरान बनाया गया था, यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक गंतव्य है। रोम या मक्का जैसे धार्मिक स्थलों से भी बड़े इस स्थान पर प्रतिदिन औसतन 30 हजार श्रद्धालु आते हैं और लगभग लाखों रुपए प्रतिदिन चढ़ावा आता है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अद्भुत उदाहरण हैं। माना जाता है कि इस मंदिर का साया नहीं नजर आता।
* विश्व का सबसे पुराना शहर : वाराणसी, जिसे 'बनारस' के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है। भगवान बुद्ध ने 500 बीसी में यहां आगमन किया था और यह आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है। इसके बाद अयोध्या और मथुरा का नंबर आता है।
* काशी, अयोध्या, मथुरा और आगरा जैसे कई स्थान हैं, जहां पर हिन्दुओं के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई जाने का प्रमाण मौजूद है। कई इतिहासकार मानते हैं कि ताजमहल पहले तेजो महालय था जिसमें शिवलिंग स्थापित था।
* दक्षिण भारत में ज्यादातर मंदिरों का अस्तित्व बरकरार है। यहां के मंदिरों की स्थापत्यकला और वास्तुशील्प अद्भुत है। दक्षिण में रामेश्वरम में भगवान राम द्वारा भगवान शिव के मंदिर की स्थापना का जिक्र रामायण में मिलता है...
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• कौन है हिंदुओं का ईशदूत?
अधिकतर हिंदू यह जानते नहीं है कि हमारा ईशदूत कौन है। कुछ ही जानते हैं उनमें भी मतभेद इसलिए हैं कि उन्होंने शास्त्र पूरी तरह से पढ़े नहीं हैं। यदि पढ़े भी हैं तो उनमें से ज्यादातर पुराणपंथी लोग हैं।
ईशदूत का अर्थ : वह व्यक्ति जो ईश्वर का संदेश लेकर जनसाधारण तक पहुंचाए। जैसे हजरत मुहम्मद अलै. ने फरिश्तों के माध्यम से अल्लाह के संदेश को जनसाधारण तक पहुंचाया। उनसे पहले ईसा और मूसा ने परमेश्वर के संदेश को फैलाया। इस्लाम का ईशदूत पैगंबर मुहम्मद अलै. हैं, ईसाई के ईशदूत ईसा मसीह हैं और यहूदियों के ईशदूत हज. मूसा हैं, लेकिन हिंदुओं का ईशदूत कौन?
हिंदू ईशदूत : हर धर्म का एक धर्मग्रंथ होता है उसी प्रकार हिंदुओं का धर्मग्रंथ है वेद। पुराण, रामायण, गीता, मनुस्मृति या महाभारत हिंदुओं के धर्मग्रंथ नहीं हैं।
सबसे प्रथम धर्मग्रंथ : वेद की वाणी को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। वेद संसार के सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि इसके मंत्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे।
सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को वेद ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। ये चार ऋषि ही हिंदुओं के सर्वप्रथम ईशदूत है।
वेद तो एक ही है लेकिन उसके चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेद के सार या निचोड़ को वेदांत और उसके भी सार को 'ब्रह्मसूत्र' कहते हैं। वेदांत को उपनिषद भी कहते हैं। वेदों का केंद्र है- ब्रह्म। ब्रह्म को ही ईश्वर, परमेश्वर और परमात्मा कहा जाता है।
प्रथम ईशदूत:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।
मध्य में : स्वायम्भु, स्वरोचिष, औत्तमी, तामस मनु, रैवत, चाक्षुष।
वर्तमान ईशदूत:- वैवस्वत मनु।
ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। इस तरह वेद सुनने और वेद संभालने वाले ऋषि और मनु ही हिंदुओं के ईशदूत हैं।
(अब सवाल यह उठता है कि जब वैदिक ऋषि और मनु है ईशदूत तो शिव, राम, कृष्ण और बुद्ध कौन है? इसका जवाब फिर किसी आलेख में)
वैवस्वत मनु : वैवस्वत मनु के काल में सुर, असुर, यक्ष, किन्नर और गंधर्व थे। सुर अर्थात देव और असुर अर्थात दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व की उत्पत्ति के अलग-अलग कारण थे।
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र। इन्हीं पुत्रों और उनकी पुत्रियों से धरती पर मानव का वंश बढ़ा। जल प्रलय के समय वैवस्वत मनु के साथ सप्त ऋषि भी बच गए थे और अन्य जीव, जंतु तथा प्राणियों को भी बचा लिया गया था।
वैवस्वत मनु मूल रूप से हिंदुओं के कलि काल के ईशदूत हैं। देवता और अवतारी हिंदुओं के ईशदूत नहीं हैं। जल प्रलय के बाद उन्होंने ही वेद की वाणी को बचाकर उसको पुन: स्थापित किया था।
गीता में अवतारी श्रीकृष्ण के माध्यम से ईश्वर कथन: - मैंने इस अविनाशी ज्ञान को सूर्य (आदित्य) से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परंपरा से प्राप्त इस योग ज्ञान को राजर्षियों ने जाना, किंतु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया।
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• क्यों छूट गए हिंदुओं से अपने ईशदूत?
पहला कारण : महाभारत काल में जहां भगवान कृष्ण ने हिंदू धर्म को एक छत्र के नीचे लाने का प्रयास किया, वहीं वेद व्यास ने पुराण लिखकर हिंदुओं के समक्ष भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं को पूजने का उल्लेख कर दिया। पुराणों और पुराणकारों के कारण वेदों का ज्ञान खो गया। वेद व्यास ने वेदों के भीखंड-खंड कर दिए। वेदों के ज्ञान के खोने से वेद के संदेश वाहक भी खो गए। तथाकथित विद्वान लोग वेदों की मनमानी व्याख्याएं करने लगे और पुराण ही मुख्य धर्मग्रंथ बन गए।
दूसरा कारण : जैन और बौद्ध काल के उत्थान के दौर में जैन और बौद्धों की तरह हिंदुओं ने भी देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर उनकी पूजा-पाठ और आरतियां शुरू कर दी। सभी लोग वैदिक प्रार्थना, यज्ञ और ध्यान को छोड़कर पूजा, पाठ और आरती जैसे कर्मकांड करने लगे। उसी काल में ज्योतिष विद्या को भी मान्यता मिलने लगी थी जिसके कारण वैदिक धर्म का ज्ञान पूर्णत: लुप्त हो गया।
तीसरा कारण : एक हजार वर्ष की मुस्लिम और ईसाई गुलामी ने हिंदुओं को खूब भरमाया और उनके धर्मग्रंथ, धर्मस्थल, धार्मिक रस्म, सामाजिक एकता आदि को नष्ट कर उन्हें उनके गौरवशाली इतिहास से काट दिया। इस एक हजार साल की गुलामी ने हिंदुओं को पूरी तरह से जातियों और कुरीतियों में बांटकर उसे एक कबीले का धार्मिक समूह बनाकर छोड़ दिया, जो पूरी तरह आज वेद विरुद्ध है। यही कारण रहा कि धर्मांतरण तेजी से होने लगा। ऐसा धर्मांतरण के लिए भी किया गया। इसके अलावा वर्तमान दौर के हमारे राजनेता और धार्मिक नेता मिलकर इस धर्म और ज्यादा विरोधाभाषिक बनाकर लोगों को गफलत में डाल रहे हैं।
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• क्या शिव-पार्वती हैं 'आदम और ईव'?
हमने यह तो ढूंढ लिया की नूह ही मनु है और ह. इब्राहिम अलै. ही अभिराम है, लेकिन प्राप्त शोध कहते हैं कि शिव ही 'आदम' है। क्यों और कैसे?
भगवान शिव को आदिदेव कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि सबसे पहले धरती पर शिव ही प्रकट हुए। शिव के दो पुत्र थे, गणेश और कार्तिकेय। जैसा कि कहा गया है कि आदम के दो पुत्र कैन और हाबिल थे। कैन बुरा और हाबिल अच्छा। कहीं हमने पढ़ा था आदमसेन और हव्यवती के बारे में। पार्वती ही क्या ईव है। भविष्य पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण में माता पार्वती को 'हव्यवती' भी कहा गया है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि मनु और शतरूपा ही आदम और हव्वा थे, लेकिन कुछ विद्वान कहते हैं कि वे पहले नहीं दूसरे थे यानी जल-प्रलय के मनु (नूह) बच गए थे तो वे दूसरे थे। दूसरी बार मानव-जीवन रचना हुई।
कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि ईडन गार्डन श्रीलंका में था। श्रीलंका आज जैसा द्वीप नजर आता है यह पहले ऐसा नहीं था। यह इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा और भारत से जुड़ा हुआ था।
श्रीलंका में रहते थे बाबा आदम और उनकी पत्नी हव्वा। क्या यह सच है? हमने पढ़ा है कि शिव और पार्वती भी कैलाश पर्वत से श्रीलंका रहने चले गए थे जबकि कुबेर ने उन्हें सोने की लंका बनवाकर दी थी।
हजरत आदम जब आसमान की जन्नत (ईडन उद्यान) से निकाले गए तो सबसे पहले 'हिंदुस्तान की जमीं' पर ही उतारे गए, जहां उन्होंने सबसे पहले कदम रखे उसे आदम चोटी कहते हैं। ह.आदम अलै. का 'तनूर' हिंद में था।
क्या आपको पता है कि 'कश्मीर' ही उस दौर का स्वर्ग (जन्नत) था, जहां का राजा इंद्र था। वहां आज भी सेबफल की खेती होती है। एक दूसरा भी स्वर्ग था जिसका स्थान सप्तऋषि तारामंडल और ध्रुव तारे के बीच माना गया है।
शिव की कथा और आदम की कथा में बहुत समानता है।
• 'आदम चोटी' जिसे रावण ने उठाने का साहस किया था लेकिन...
श्रीलंका में एक आदम चोटी है। इस चोटी पर भगवान शंकर के पांवों के निशान हैं। इसका प्राचीन नाम सारान्दीप पर्वत है जिसे 'एडम पीक' भी कहते हैं। यह श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह पर्वत 2,243 मीटर ऊंचा और रत्नपुरा से 18 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित है।
इस पर्वत का शंक्वाकार शिखर 22/7 मीटर आयताकार आधार में समाप्त होता है, जिस पर मानव पांव के निशान से मिलता-जुलता एक विशाल गड्ढा है।
प्राचीन हिंदू मान्यता अनुसार यह गड्ढा भगवान शिव का पदचिह्न है जबकि मुसलमान और ईसाई इसे आदम के पैर के निशान मानते हैं। दूसरी ओर बौद्ध इसे बुद्ध के पैर का निशान कहते हैं।
• आखिर कैसे हुआ यह विशालकाय पदचिह्ननुमा गड्ढा...
रामायण में एक प्रसंग आता है कि एक बार रावण जब अपने पुष्पक विमान से यात्रा कर रहा था तो रास्ते में एक वनक्षेत्र से गुजर रहा था। उस क्षेत्र के पहाड़ पर शिवजी ध्यानमग्न बैठे थे। शिव के गण नंदी ने रावण को रोकते हुए कहा कि इधर से गुजरना सभी के लिए निषिद्ध कर दिया गया है, क्योंकि भगवान तप में मगन हैं।
रावण को यह सुनकर क्रोध उत्पन्न हुआ। उसने अपना विमान नीचे उतारकर नंदी के समक्ष खड़े होकर नंदी का अपमान किया और फिर जिस पर्वत पर शिव विराजमान थे उसे उठाने लगा। यह देख शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिस कारण रावण का हाथ भी दब गया और फिर वह शिव से प्रार्थना करने लगा कि मुझे मुक्त कर दें। इस घटना के बाद वह शिव का भक्त बन गया।
क्या यह वही पहाड़ है और क्या शिव के पैरों के दबाव के कारण यह विशालकाय गड्ढा बन गया?हालांकि कुछ लोग इसे रावण के पैरों के निशान मानते हैं।
श्रीलंका में आदम पुल भी है। रामसेतु को भी एडम्स ब्रिज कहा जाता है। मान्यता है कि बाबा आदम इसी पुल से होकर भारत, अफ्रीका और फिर अरब चले गए थे।
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