Astrologer Ramdeo Pandey
MAR
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श्रीविद्या के मुख्य 12 संप्रदाय हैं।
इनमें से बहुत से संप्रदाय लुप्त हो गए है, केवल मन्मथ और कुछ अंश में लोपामुद्रा का संप्रदाय अभी जीवित है। कामराज विद्या (कादी) और पंचदशवर्णात्मक तंत्र राज, और त्रिपुरउपनिषद के समान लोपामुद्रा विद्या आदि भी पंचदशवर्णात्मक हैं। कामेश्वर अंकस्थित कामेश्वरी की पूजा के अवसर पर इस विद्या का उपयोग होता हैद्य लोपामुद्रा अगस्त की धर्मपत्नी थीं। वह विदर्भराज की कन्या थीं। पिता के घर में रहने के समय पराशक्ति के प्रति भक्तिसंपन्न हुई थीं। त्रिपुरा की मुख्य शक्ति भगमालिनी है। लोपामुद्रा के पिता भगमालिनी के उपासक थे। लोपामुद्रा बाल्यकाल से पिता की सेवा करती थी। उन्होंने पिता की उपासना देखकर भगमालिनी की उपासना प्रारंभ कर दी। देवी ने प्रसन्न होकर जगन्माता की पदसेवा का अधिकार उन्हें दिया थाद्य त्रिपुरा विद्या का उद्धार करने पर उनके नाम से लोपामुद्रा ने ऋषित्व प्राप्त कियाद्। अगस्त्य वैदिक ऋषि थे। बाद में अपनी भार्या से उन्होंने दीक्षा ली।
दुर्वासा का संप्रदाय भी प्राय: लुप्त ही है। श्रीविद्या, शक्ति चक्र सम्राज्ञी है और ब्रह्मविद्या स्वरूपा है। यही आत्मशक्ति है। ऐसी प्रसिद्धि है कि –
यत्रास्ति भोगो न च तत्र मोझो;
यत्रास्ति भोगे न च तत्र भोग:।
श्रीसुंदरीसेवनतत्परानां,
भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव।,
अगस्त्य केवल तंत्र में ही सिद्ध नहीं थें, वे प्रसिद्ध वैदिक मंत्रों के द्रष्टा थे। श्री शंकरमठ में भी बराबर श्रीविद्या की उपासना और पूजा होती चली आ रही है।
त्रिपुरा की स्थूलमूर्ति का नाम ललिता है। ऐसी किवदंती है कि अगस्त्य तीर्थयात्रा के लिये घूमते समय जीवों के दु:ख देखकर अत्यंत द्रवित हुए थे। उन्होंने कांचीपुर में तपस्या द्वारा महाविष्णु को तुष्ट किया था। उस समय महाविष्णु ने प्रसन्न होकर उनके सामने त्रिपुरा की स्थूलमूर्ति ललिता का माहात्म्य वर्णित किरण जिस प्रसंग में भंडासुर वध प्रभृति का वर्णन था, इसका सविस्तर विवरण उनके स्वांश हयग्रीव मुनि से श्रवण करें। इसके अनंतर हयग्रीव मुनि ने अगस्त्य को भंडासुर का वृत्तांत बतलाया। इस भंडासुर ने तपस्या के प्रभाव से शिव से वर पाकर 105 ब्रह्मांडों का अधिपत्य लाभ किया था। श्रीविद्या का एक भेद कादी है, एक हे हादी और एक कहादी।
श्रीविद्या गायत्री का अत्यंत गुप्त रूप है। यह चार वेदों में भी अत्यंत गुप्त है। प्रचलित गायत्री के स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों प्रकार हैं। इसके तीन पाद स्पष्ट है, चतुर्थ पाद अस्पष्ट है। गायत्री वेद का सार है। वेद चतुर्दश विद्याओं का सार है। इन विद्याओं से शक्ति का ज्ञान प्राप्त होता है। कादी विद्या अत्यंत गोपनीय है। इसका रहस्य गुरू के मुख से ग्रहण योग्य है। संमोहन तंत्र के अनुसार तारा, तारा का साधक, कादी तथा हादी दोनों मत से संश्लिष्ट है। हंस तारा, महा विद्या, योगेश्वरी कादियों की दृष्टि से काली, हादियों की दृष्टि से शिवसुदरी और कहादी उपासकों की दृष्टि से हंस है। श्री विद्यार्णव के अनुसार कादी मत मधुमती है। यह त्रिपुरा उपासना का प्रथम भेद है। दूसरा मत मालिनी मत (काली मत) है। कादी मत का तात्पर्य है जगत चैतन्य रूपिणी मधुमती महादेवी के साथ अभेदप्राप्ति। काली मत का स्वरूप है विश्वविग्रह मालिनी महादेवी के साथ तादात्म्य होना । दोनों मतों का विस्तृत विवरण श्रीविद्यार्णव में है।
गोड़ संप्रदाय के अनुसार श्रेष्ठ मत कादी है, परंतु कश्मीर और केरल में प्रचलित शाक्त मतों के अनुसार श्रेष्ठ मत त्रिपुरा और तारा के हैं। कादी देवता काली है। हादी उपासकों की त्रिपुरसंदरी हैं और कहादी की देवता तारा या नील सरस्वती हैं। त्रिपुरा उपनिषद् और भावनोपनिषद् कादी मत के प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। किसी किसी के मतानुसार कौल उपनिषद् भी इसी प्रकार का है, त्रिपुरा उपनिषद् के व्याख्याकार भास्कर के अनुसार यह उपविद्या सांख्यायन आरणयक के अंतर्गत है।
हादी विद्या का प्रतिपादन त्रिपुरातापिनी उपनिषदद्य में है। प्रसिद्धि है कि दुर्वासा मुनि त्रयोदशाक्षरवाली हादी विद्या के उपासक थे। दुर्वासा रचित ललितास्तव रत्न नामक ग्रंथ बंबई से प्रकाशित हुआ है।
मैंने एक ग्रंथ दुर्वासाकृत परशंमुस्तुति देखा था, जिसका महाविभूति के बाद का प्रकरण है अंतर्जा विशेष उपचार परामर्श। दुर्वासा का एक और स्तोत्र है त्रिपुरा महिम्न स्तोत्र। उसके ऊपर नित्यानंदनाथ की टीका है। सौभाग्यहृदय स्तोत्र नाम से एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसके रचयिता महार्थमंजरीकार गोरक्ष के परमगुरू हैं। योगिनी हृदय या उत्त्र चतु:शती सर्वत्र प्रसिद्ध है। पूर्व चतु:शती रामेश्वर कृत परशुराम कल्पसूत्र की वृति में है। ब्रह्मांड पुराण के उत्तरखंड में श्री विद्या के विषय में एक प्रकरण हैद्य यह अनंत, दुर्लभ, उत्तर खंड में त्रिशति अथवा ललितात्रिशति नाम से प्रसिद्ध स्तव है जिसपर शंकराचाय्र की एक टीका भी है। इसका प्रकाशन हा चुका है। नवशक्ति हृदयशास्त्र के विषय में योगिनी की दीपिका टीका में उल्लेख है।
इस प्रस्थान में सूत्रग्रंथ दो प्रसिद्ध हैं: एक अगस्त्य कृत, शक्ति सूत्र और दूसरा प्रत्यभिज्ञाहृदय नामक शक्तिसूत्र। परशुराम कृतकल्पसूत्र भी सूत्रसाहित्य के अंतर्गत है। यह त्रिपुरा उपनिषद का उपबृंहण है। ऐसी प्रसिद्धि है कि इसपर रामेश्वर की एक वृत्ति है जिसका नाम सौभाग्योदय है एवं जिसकी रचना 1753 शकाब्द में हुई थी। इसका भी प्रकाशन हो चुका है। इस कल्पसूत्र के ऊपर भास्कर राय ने रत्नालोक नाम की टीका बनाई थी। अभी यह प्रकाशित नहीं हुई है। गौड़पाद के नाम से श्रीविष्णुरत्न सूत्र प्रसिद्ध है। इसपर प्रसिद्ध शंकरारणय का व्याख्यान है। यह टीका सहित प्रकाशित हुआ है। सौभग्य भास्कर में त्रैपुर सूक्त नाम से एक सूक्त का पता चलता है। इसके अतिरिक्त एक और भी सूत्रग्रंथ बिंदु सूत्र है। भास्कर ने भावनोपनिषद भाष्य में इसका उल्लेख किया है। किसी प्राचीन गंथागार में कौल सूत्र, का एक हस्तलिखित ग्रंथ दिखाई पड़ा था जो अभी तक मुद्रित नहीं हुआ है।
स्तोत्र ग्रंथें में दुर्वासा का ललितास्तव ग्रंथ प्रसिद्ध है। इसका उल्लेख ऊपर किया गया है। गौड़पाद कृत सौभाग्योदय स्तुति आदि प्रसिद्ध ग्रंथ हैं जिनपर शंकराचार्य की टीकाएँ मिलती हैं। ऐसा कहा जाता है कि सौभाग्योदय के ऊपर लक्ष्मीधर ने भी एक टीका लिखी थी। सौभाग्योदय स्तुति की रचना के अनंतर शंकरार्चा ने सौंदर्य लहरी का निर्माण किया जो आनंदलहरी नाम से भी प्रसिद्ध है। इनके अतिरिक्त ललिता सहस्र नाम एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसपर भास्कर की टीका सौभाग्य भास्कर (रचनाकाल 1729 ई0) है। ललिता सहस्रनाम के ऊपर काशीवासी पं0 काशीनाथ भट्ट की भी एक टीका थी। काशीनाथ भट्ट दीक्षा लेने पर शिवानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी टीका का नाम नामार्थ संदीपनी है।
जय जगदम्ब 🙏🙏
astrologer ramdeo pandey द्वारा 21st March पोस्ट किया गया
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