Monday, 24 July 2017

जब महाभारत.....

जब महाभारत खत्म हुआ था तो काफी कौरव अपने नानी के यहा अरब भाग गये थे मालूम हो की गंधारी ''गन्धार देश'' की निवासी थी यही से बाद में इनके वंशजो ने इस्लाम को बसाया और युधिष्ठर के वंसज घूमते हुए ऐसी जगह पहुचे जहा कोई धर्म नही था तो उन्होने कृषना को फॉलो करते हुए क्रिशच्यनिटी को बसाया दिया और यहूदी बन गये ! इस बात को यहूदी बहुत अच्छी तरह से जानते भी है लेकिन इसको सार्वजनिक तौर पर नही मानते वैसे उनकी कृष्ण भक्ति इसी बात का उदाहरण है !

वास्तव में ''क्रिशच्यनिटी कृष्णा नीति है''

यह तो पहले ए ही मालूम है की 'पांडवो ओर कौरओ' मे दुश्मनी थी इसके आधार पर ही यहूदियो के डर से सौदी अरब तक कुछ नही बोलता है !

यहूदी मनमानी कर रहे हैं आज भी ! आप यह भी कह सकते हैं इस्लाम को यहूदी ही चला रहे हैं ! इस्लामी आतंकवाद की वजह यहूदी और उनका वैश्विक हतियारो का व्यपार है !

इस्लाम खतम = हथियार माफिया खतम

Note -असली यादव 'अहीर' नही है उन्होने कृषना के नाम पर खुद को यादव कहना शुरु कर दिया है जबकि असली यादव चंद्रवंशी राजपूत है जो पांडव और कृष्ण थे यही बाद मे युधिष्ठर के वंशज यहूदी कहलाये गये !अहीर और यादव दोनो अलग है ! अहीर आभीर का अपभ्रंश है यादव चंद्रवंशी ययाति के पुत्र यदु के वंशज है।

इसके लिये आपको चंद्र वंशी इतिहास को पड़ना होगा ! यहा मैने जाती की बात नही की है कोई इसका दूसरा मतलब ना निकाले प्लीज़ ! यहा इतिहास की बात थी इसलिये इसका जिक्र जरूरी था !

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जाने क्यू चिड़ता था 'जर्मनी' इन 'यहूदियो' से ?

जब 'महाभारत' हुआ था उस समय जर्मनी के राजा ने पांडवो की मदद की थी , इस मदद के बदले जर्मनी के राजा ने 'श्री कृशन' से उनकी 'प्रयोगशाला' की मांग कर दी जिसको पांडवो ने स्वीकार कर लिया था !

यह यहूदी युधिष्ठर के वंसज है तो जाहिर है दिमाग भी होगा ही ? जब प्रयोगशाला तो जर्मनी को 'दान' दे दी गयी लेकिन इनको तो पता ही था कि कोन से प्रयोग हो चुके थे ओर किन पर काम चल रहा था ओर जो लोग काम कर रहे थे वो आज भी भारत में मिल जायेंगे क्युकी भारत की मिट्टी ही ऐसी है जहा हर कोई अपने आप मे हुनरमंद होता है ?इसलिये यह बार बार भारत के चक्कर् काटते रहे ,वैसे बताते चले की भारत मे महाभारत के बाद कोई खास प्रयोग नही हुए थे उसकी वजह यही थी !

तो अब आते है मेन मुद्दे पर , यह तो दोनो (जर्मनी /यहूदी ) को पता ही था कि 'विज्ञान' क्या है अब बस इनमे अपने प्रभुत्व की लड़ाई ही बाकी थी !

1950-1960 के दशक में आपने कहानी सुनी होगी की अमरीका और रशिया के बीच अन्तरिक्ष में पहले पहुँचने का युद्ध चल रहा है. पर असल में तब कोई "अमरीकी रोकेट तकनीक" थी ही नही.

द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद अमरीका ने जर्मनी से उसके सारे प्रक्षेपास्त्र वैज्ञानिक बंदी बनाकर अमरीका बुलवा लिए, और फिर उन्हें NASA में काम पर लगवा दिया. 1960 के दशक की दौड़ अमरीका-रशिया के बीच नही, जर्मन-रोकेट-तकनीक और रशियन-तकनीक के बीच हो रही थी.

परन्तु बाहर लोग सुनते थे की अमरीका ने रोकेट बनाये, जबकि सारी तकनीक जर्मनी से उठाई गई. जर्मनी में यह तकनीक बहुत ही तेजी से बनाई थी, जिसका कारण उनका भारत से गहरा सम्बन्ध और संस्कृत में गिये ज्ञान का अध्ययन था, जिसका जर्मनी ने अपनी भाषा में अनुवाद किया.

संस्कृत ग्रंथो में विमानों के Blueprints, Designs के साथ-साथ उन्हें कैसे बनाना है इसकी भी जानकारी थी. भारत पर विदेशी गुलामी होने के कारण उस समय भारत में किसी भी शोध पर प्रतिबन्ध था. भारत के सभी संस्कृत पढ़े-लिखे तज्ञ को ब्रिटेन, यूरोप लाया जा चूका था और भारत में संस्कृत पर प्रतिबन्ध लगने के साथ-साथ अंग्रेजी थोंप दी गई थी.

दोनो ही अपने देश के लिये 'पक्के देशभक्त' बस कभी किसी का 'पलड़ा' भारी तो कभी किसी का ?

वैसे मुस्लिमो का 'यूज़' दोनो ने जी भर कर किया ! आज इन यहूदियो की राजनीति मुस्लिमो पर टिकी हुई है

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यहा यह बात गौर करने वाली है की जर्मनी ने कभी भारत के महत्व को कम नही आका बल्कि दोस्ती का ही एक तरह से हाथ बड़ाया लेकिन यहूदियो ने इसको छुपा कर रखना चाहा ओर बस अपना ही वर्चस्व बदने के लिये काम करते रहे !

आप हमेशा C.I.A. को और विदेशियो को कोसते है लेकिन क्या किसी को यह भी मालूम है कि C.I.A . के टॉप के अधिकारी कोन है ?

पहले उन लोगो का पता कीजिये जो विश्व पर अपनी ''दादागिरी'' चला रहे है ''आतंक का का प्रयाय'' बन चुके है जब उन पर नजर डालेंगे तो वो सारे के सारे आपके ''यहूदी'' ही पाये जायेंगे !

इस्लाम एक चेहरा है पीछे यही यहूदी !

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सारी हॉली-वुड- फिल्मो में यहूदियो को बहुत ''नेक'' , ''भोले'' , कमजोर द्खिया जाता है ! हकीकत इनसे उलट है ! ''स्टीफन स्पीलबर्ग'' से लेकर ज्यादातर बड़े डाइरेक्टर , प्रोड्यूसर ''यहूदी'' हैं ! जर्मनी को आतंकी और इन ''यहूदियो'' को कमजोर बस फिल्मो में ही दिखाया जाताहै !

जैसे इस देश का इतिहास गलत लिखा हुआ है , विश्व में जर्मनी का इतिहास भी गलत लिखा हुआ है ! जर्मनी और यहूदियो को लड़ाई केवेल तकनीकी को लेकर थी ! दोनो हो अपने को ''आर्य'' समझते हैं !

आज भी यह यहूदी , नासा में ''संस्कृत / वेदो'' पर भारी शोध कर रहे है ?
अमेरिका में ताकतवर लोग , सारे ''यहूदी'' हैं !

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लाल बहादुर शास्त्री जी, निधन जनवरी 11, 1966, '' तासगंज '', ''उज़बेकिस्तान'' ,
कारण ( निधन) => आकस्मिक - ह्रदयघात (??)

'होमी जहांगीर भाभा जी, निधन जनवरी 24 , 1966 ,
कारण ( निधन) => कही कोई सही जानकारी नही (??)

'लाल बहादुर शास्त्री जी' देश के सेना को ''आधुनिक'' बनाने के लिये जाने जाते थे,

अपने अंतिम समय में ''लाल बहादुर शास्त्री जी'' और ''होमी जहांगीर भाभा जी'' दोनो एक दूसरे से लगातार संपर्क में थे ? यह मात्र ''सयोग'' नही है ?

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''होमी जहांगीर भाभा'' की सारी शोध '' एल्बर्ट आइस्टीन'' की शोध से मिलती जुलती ह़ै! विश्व युद्ध के समय अमेरिका में जिस ''यहूदी टीम'' ने परमाणु बम बनया था , एल्बर्ट आइस्टीन उस टीम का भी बाद में सदस्य था !

यहूदी 'एल्बर्ट आएस्टीन' वेज्ञानिक नही चोर था , यहा के गुरुकुलो में शोध चोरी करने आता था !

''जॅहागीर भाभा'' की हत्या के पीछे भी यही ''एल्बर्ट आएस्टीन'' और C.I.A था !

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यह जो 'लिट्टे' नामक संघटन है यह राजीव जी की ही देन था नेहरू परिवार तो शुरु से ही C.I.A. की ग़ुलामी करते आया है ! इन इल्लुमिनती वालो को अच्छी तरह से पता है की अगर 'श्री लंका' और 'भारत' मिल गये तो इनको इतिहास तक पहुचने में अधिक समय नही लगेगा क्युकी हमारी 'संस्कृति' की बहुत सारी 'जड़े' श्री लंका से जुड़ी हुई है इसलिये इस इल्लुमिनती के कहने पर राजीव ने 'लिट्टे' को खड़ा करवाने में कोई कसर नही छोड़ी !

पर यह नेहरू परिवार के सारे सदस्य है अकल के पैदल , इनके बस में नही था इल्लुमिनती के ''गेम'' को समझना , और फंस गये क्युकी इल्लुमिनती ने पहले लिट्टे को खड़ा करवाया और फिर बाद 'राजीव' को मरवा दिया मालूम हो उस समय राजीव देश के 'प्रधानमंत्री' के तौर पर पदधिन थे अगर कोई किसी देश के 'प्रधानमंत्री' को मरवाएगा तो वो देश और उसके नागरिक उस 'संघटन' के खिलाफ हो जायेंगे ?

आखिर में वही हुआ भी , आज ''श्री लंका और भारत'' के रिश्ते क्या है सभी जानते है ?

इस इल्लुमिनती के इस गेम की वजह से आज भारत अपनी ''जड़े'' तलाशने के लिये दर दर भटक रहा है ?

किसी को राजीव और प्रभाकरण के रिश्ते पर कोई शक हो तो निम्न लिंक को भी देख सकता है !

1- https://www.colombotelegraph.com/.../wikileaks1988.../

2- http://ibnlive.in.com/.../secret-of.../14464-3.html

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अरब देशों में इस्लाम से पहले शैव मत ही प्रचलित था। इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उम्र बिन हश्शाम द्वारा रचित शिव स्तुतियां श्री लक्ष्मीनारायण (बिड़ला) मंदिर, दिल्ली की ‘गीता वाटिका’ में दीवारों पर उत्कीर्ण हैं। । राडार एवं उपग्रह सर्वेक्षण से सत्य प्रकट हो जाएगा !

इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था। आज भी मुस्लिम श्रद्धालु हज के दौरान इस आबे ज़मज़म को अपने साथ बोतल में भरकर ले जाते हैं। ऐसा क्यों है कि कुम्भ में शामिल होने वाले हिन्दुओं द्वारा गंगाजल को पवित्र मानने और उसे बोतलों में भरकर घरों में ले जाने, तथा इसी प्रकार हज की इस परम्परा में इतनी समानता है? इसके पीछे क्या कारण है ?

सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति में शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के रिश्ते को कभी अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ भी 'शिव' होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा 'निश्चित' ही मौजूद होती है।

https://www.facebook.com/notes/sanatana-dharma-the-eternal-way/%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%82-%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3-%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%AC-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF/842521199195990

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18x14 फ़ीट और 18 मीटर गहरा है , 4000 साल पुराना है ना कभी सुखा...ना कभी स्वाद बदला !

आज तक कभी भी कुऐं में ना कोई काई जमी और ना ही कोई पेड उगा...ना आज तक उस पानी में कोई बैक्टिरिया मिलें युरोपियन लैबोरेट्री में चेक हो चुका है उन्होने इसे पीने लायक घोषित कर दिया है।

ये छोटा सा कुआं लाखों लोगो को पानी देता है...8000 लीटर प्रति सेकेण्ड पानी की ताकत वाली मोटर 24 घण्टे चलती है और सिर्फ़ 11 मिनट बाद पानी का लेवल बराबर हो जाता है !

आबे ज़म-ज़म,, यह विज्ञान रावण का ही है , जिसने पाताल से गंगा तक का रास्ता बना हुआ है , जिसक एक मुख काबा में खुलता है !अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि "हिस्ट्री ऑफ पर्शिया" के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर "अरब" हो गया। कुआ 4000 साल पुराना है जबकि इस्लाम उसके कही बाद आया है !

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http://kitab-gharr.blogspot.in/p/blog-page_31.html

शुक्राचार्य जी ने ही तो "काव्य-शुक्र" की स्थापना की थी , जो कालांतर में काबा के नाम से प्रसिद्ध हो गया । यहि पर 360 अन्य प्रतिमाओं की भि उन्होने स्थापना की थी, जो कि पैगम्बर के द्वारा तोड दी गयी।

शुक्राचार्य के ही पौत्र (या सम्भवतः प्रपौत्र ) और्व के नाम पार उस स्थान का नाम कालांतर मे अरब पडा जो कि वहाँ का शासक हुआ करता था ।

वैसे मैंने साईक्स की दोनों पुस्तके पढी हैं पर इन घटनाओं का वर्णन किसी मे नहीं मिला ।

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इब्राहिम ,
''यहूदी'', ''मुसलमानो'' और ''ईसाई'' तीनों धर्मों के पितामह माने जाते हैं ।

हिटलर को यह सारी जानकारी पता थी ! यहूदियो को वेदो की गहरी समझ के कारण , डर से हिटलर ने यहूदियो का कत्ले आम शुरु किया ! हिटलर का मकसद विश्व को ''आर्य'' बनाना ही था बस नाम वो जर्मनी का चाहता था ! ईसाई और इस्लाम 1940 से पहले विश्व में कोई समस्या नही थे ! हिटलर ने कही ईसाई , मुस्लिम को नही मारा फिर हिटलर की यहूदियो से क्या समस्या थी ? हिटलर विश्व में ''आर्यो'' की उपलब्धि (वेदो) को 'जर्मनी' का नाम देना चाहता था ! यहूदियो की संपन्नता भी उसको पसंद नही थी ! विश्व का सबसे बड़ा अंहकारी वैज्ञानिक बनना भी हिटलर का एक सपना था !

''वैदिक ज्ञान, विज्ञान'' की समझ यहूदियो को ''जर्मनी'' से ज्यादा थी , आज भी है !

नासा , अमेरिका में ज्यदातर यहूदी वैज्ञानिक ''संस्कृत'' और ''वेदो'' को समझने वाले हैं उन पर लगातार शोध चल रही है ! जर्मनी , वेदो और संस्कृत पर आज भी तन मन से शोध कर रहा है ! देश के ''ज्ञानी ऋषियो'' के माधयम से ज्ञान को धीरे धीरे समझ रहा है ! हमारे ''ज्ञानी ऋषि'' भी इस भेद को जानते हैं ! पर सरकारी मजबूरी में ''सिस्टम'' को कोसते हैं !

पूरे विश्व से सारी जानकारी छुपा कर रखी है , भेद खुला ''अमेरिका खतम'' !
''वेदो'', ''संस्कृत'' और ''वैज्ञानिकता'' को बिना समझे अमेरिका से मुकाबला 'असम्भव' है !

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http://cpdarshi.wordpress.com/2013/04/23/the-puranas-by-sri-aurobindo-2/

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http://cpdarshi.wordpress.com/2013/04/23/puranas-by-sri-aurobindo-3/

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असली यादव अहीर नही है उन्होने कृषना के नाम पर खुद को यादव कहना शुरु कर दिया है जबकि असली यादव चंद्रवंशी राजपूत है जो पांडव और कृष्ण थे यही बाद मे युधिष्ठर के वंशज यहूदी कहलाये गये !अहीर और यादव दोनो अलग है !इसके लिये आपको चंद्र वंशी इतिहास को पड़ना होगा!

अहीर आभीर का अपभ्रंश है यादव चंद्रवंशी ययाति के पुत्र यदु के वंशज है।

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