Monday 24 July 2017

शब्द (वेद )

शब्द (वेद ) प्रमाण , तुम्हारे व्यक्तिगत अनुमान (तर्क ) और प्रत्यक्ष प्रमाण पर भारी है -
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सामान्यतया लोक में ज्ञान निम्न तीन ( ३ ) माध्यमों से हमें प्राप्त होता है -

१- प्रत्यक्ष |

२- अनुमान |

३- शब्द |

प्रत्यक्ष का सरल सा मतलब है जो ज्ञान आपको आपकी इन्द्रियों (आँख , नाक , कान, त्वचा आदि ) के प्रयोग से प्राप्त होता है | वह प्रत्यक्ष प्रमाण का ज्ञान है |

और समाज में इसे सबसे प्रबल प्रमाण हम लोग मानते हैं
इसीलिये कहते भी हैं कि भई हाथ कंगन को आरसी क्या ? या कहिये प्रत्यक्षं किं प्रमाणम् ?
लेकिन आप विचार कीजिये - प्रश्न यह है कि क्या प्रत्यक्ष प्रमाण हमें पूर्ण सत्य का कराता है ??

हमारी इन्द्रियाँ सीमित शक्ति वाली हैं , जैसे - हमें दूर चोटी पर खड़ा पेड़ बहुत छोटा दिखाई देता है पर वास्तविकता वह नहीं होती आदि |

फिर दूसरी बात यह है कि हमारे ही पिता जी ने हमको पैदा किया या नहीं ये बात हम प्रत्यक्ष से नहीं जान पाते ,
( डी० एन० ए० टेस्ट भी कराओगे तो डी ० एन ० ए० की रिपोर्ट पर भरोसा आपको करना पडेगा कि ये सही है और भरोसा करने में आप इन्द्रिय और विषय का संयोग नहीं करते आपको पहले से ही ये ज्ञात होता है कि डी ०एन० ए० रिपोर्ट से इस चीज का पता चलता है | कहने का मतलब ज्ञान आपको डी ०एन०ए० रिपोर्ट ने आपके और आपके पिता के बीच में आकर दिया , सीधा आपकी इन्द्रिय ने आपके पिता को देखकर नहीं बताया ) - इसका मतलब यह प्रमाण सत्य का बोध कराने में सर्वथा सक्षम भी नही है |

२-

इसी प्रकार एक दूसरा माध्यम है , जो हमें सत्य का ज्ञान कराता है , वह है - अनुमान प्रमाण |

हम पर्वत पर धुआ देखते हैं पर आग का ज्ञान हमें बिना अपनी इन्द्रियों के प्रयोग से प्राप्त हो जाता है |

यानी यहाँ हमने बिना प्रत्यक्ष के ही आग के होने का सत्य ज्ञान पा लिया , ये हमारा अपना अनुमान था कि धुआ उठ रहा है तो निश्चित ही आग है |

किन्तु ये भी दोष युक्त हो जाता है हमारा लगाया अनुमान सर्वथा सही हो ऐसी बात नहीं होती !!!
इसका उदाहरण देने की मुझे आवश्यक्ता भी नही क्योंकि हम सामान्यतः व्यवहार करते ही हैं कि -
///पर मेरा अनुमान सही था , या मेरा अनुमान गलत था , जबकि सच्चाई ये थी कि /// आदि !!

फिर दूसरी बात ये है कि मानो आपने जीवन में कभी जापान नहीं देखा या उसके बारे में नहीं सुना , यानी कोई भी लिंग (चिन्ह ) आपके पास ऐसा नहीं जिससे आप अनुमान लगा पायें तो क्या वो वस्तु नहीं होती ?? तो क्या जापान नहीं है ???
आपके पास स्वर्ग के अस्तित्व को जानने का कोई भी धुआ जैसा चिन्ह नहीं है , ऐसे में आप स्वर्ग के अस्तित्त्व का ज्ञान कैसे पाओगे ??
यानी स्पष्ट है कि अनुमान प्रमाण भी सत्य का बोध कराने में सर्वथा सक्षम नहीं है |

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ऐसी वस्तु जिसे ना प्रत्यक्ष से जान पाओ ना अनुमान से उसे बता देना शब्द प्रमाण की विशेषता है |

कोई सत्यवादी आपसे कोई नयी बात कहता है और आपको उसका ज्ञान होता है - ये है शब्द प्रमाण की विशेषता |

अमेरिका में ९/११ का आतंकवादी हमला हो गया - ये आपको ना आपके प्रत्यक्ष ने बताया ना ही अनुमान ने - पर शब्द प्रमाण ने आपको बता दिया और आपने घर बैठे ही जान लिया कि अमेरिका की प्रसिद्ध बिल्डिंग ध्वस्त हो चुकी है |

शब्द प्रमाण में कोई दोष नही होता क्योंकि वो यथार्थ सत्यवक्ता से हमको संज्ञान में आयी है |
और शब्द प्रमाण जब कहता है तो भले ही हमारे निजी प्रत्यक्ष या अनुमान से वह बाधित होता हो , पर क्योंकि यथार्थ सत्यवक्ता ने कहा है , इसलिए सत्य होता है |
हमारी समझ में ना आता हो तो भी उसने कहा होगा तो सही होगा , इस प्रकार मान लेना ही बुद्धिमत्ता कहलाती है | जैसे प्रत्यक्ष से आपको अमेरिका का हमला नहीं दिखा , अनुमान आपका कहता है कि अमेरिका जैसी हाई सिक्योरिटी वाली कंट्री में ये नहीं हो सकता किन्तु जब आधिकारिक पुष्टि रूपी शब्द प्रमाण से बात आपको संज्ञान में आयी होती है तो आपको मानना ही पड़ता है |

इसीलिये हमारे सनातनी वेदभाष्यकार श्री सायणाचार्य जी द्वारा कहा गया है -
प्रत्यक्ष और अनुमान से भी जो ज्ञान आप ना जान सके वो शब्द बताता है, यही शब्द प्रमाण का सर्वोत्कृष्ट वैशिष्ट्य है |

प्रत्यक्षेणानुमित्या वा यस्तूपायो न विद्यते |
एनं विदन्ति वेदेन तस्मात् वेदस्य वेदता ||

हमारे वेद -शास्त्र शब्द -प्रमाण ही हैं |

आजकल लोग वेदों की बातों को यथावत् स्वीकारने के स्थान पर अपने व्यक्तिगत अनुमान(तर्क ) से गलत कहा गया - बोलते हैं तो सुनकर बड़ा ही क्षोभ होता है ||

धर्म की जय हो !

अधर्म का नाश हो !!

जय जय शंकर , हर हर शंकर !!!

|| जय श्री राम |

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