Saturday 22 July 2017

क्यों कलह का शिकार होते हैं गायत्री मंत्र के साधक-

क्यों कलह का शिकार होते हैं गायत्री मंत्र के साधक-2

तब साधक आतंकी हो जाता है

गायत्री मंत्र की ऊर्जाएं विशाल हैं. जाहिर है उनके परिणाम भी बड़े ही होंगे. लाभ हुआ तो बड़ा, नुकसान हुआ तो बड़ा.

*गायत्री मंत्र की ऊर्जाएं आलोचना बर्दास्त नही करतीं*. गायत्री साधक आलोचक हुआ तो उसे आतंकी जैसा जानें. एक के हाथ मे हथियार का आतंक, दूसरे की जुबान में जहरीले शब्दों का आतंक. बंदूक वाले शरीर को छलनी करते हैं, जहरीले शब्दों वाले मन को.

जिनके रिश्ते बेवजह बिगड़ते रहते हैं या वे अपनों को बार बार कडुआ बोलते हैं, तो इसका एक कारण गायत्री मंत्र का जाप हो सकता है.
*गड़बड़ी मन्त्र में नही है, बल्कि साधक द्वारा मन्त्र की मर्यादा तोड़ने से ऐसा होता है*.
गायत्री मंत्र जाप की मर्यादा है कि साधक किसी की आलोचना न करें, अन्यथा विनाश की स्थिति पैदा होगी.
अब सवाल ये है कि आलोचना तो हमेशा बुरी होती है. फिर गायत्री मंत्र जाप में ही इस पर कठोरता क्यों.

दरअसल गायत्री मंत्र की ऊर्जाएं पीली और तीक्ष्ण होती हैं. उनका घनत्व कम और बहाव अधिक होता है. जिससे उनमें प्रसार की क्षमता दूसरी ऊर्जाओं की अपेक्षा कई गुना अधिक होती है. वो साधक के भीतर अग्नितत्व का प्रसार तेजी से करती है.
यदि उपयोग सही हो तो अग्नितत्व आत्मा तक का शुद्धिकरण करने में सक्षम है.
जाप के वक्त गायत्री मन्त्र की ऊर्जाएं निम्न भावनाओं के केंद्र मणिपुर चक्र पर आकर इकट्ठी होती. उनके प्रभाव से निम्न भावनाएं जलकर भस्म होने लगती हैं.
*जिससे साधक तेजस्वी होता है, उसके और ब्रम्हांड के रहस्यों के बीच के पर्दे हटने लगते हैं. ज्ञान का जागरण होता है*.
इसके विपरीत आलोचनाओं की ऊर्जा गाढ़े कत्थई रंग की होती है. उसके इकट्ठा होने का केंद्र भी मणिपुर चक्र ही होता है.
ऐसी एनर्जी को ऊर्जाओं का जहर कहा जाता है. ये मणिपुर चक्र पर भारी मात्रा में आई गायत्री मंत्र की सकारात्मक ऊर्जाओं में मिलकर उन्हें भी जहरीला बना देती है.जैसे बाल्टी में भरे सकारात्मक प्रभाव वाले दूध में मिलकर जहर उसे भी जहरीला बना देता है.
इस तरह से मणिपुर चक्र सामान्य से कई गुना अधिक दूषित हो जाता है. क्योंकि गायत्री मंत्र जाप से वहां सामान्य से कई गुना अधिक ऊर्जाएं एकत्र हो गयी थीं. आलोचना की जहरीली ऊर्जाओं ने उन सबको भी जहर बना दिया.
ऐसी ऊर्जाओं से भरा मणिपुर चक्र प्रलयंकारी हो जाता है. भावनाओं को बिगाड़कर व्यक्ति में आतंकी सोच पैदा करता है. ऐसा व्यक्ति अपने अलावा सबमें कमियां देखता है. सकारात्मकता को नजरअंदाज करना प्रवत्ति बन जाती है. उसका तेज नष्ट होने लगता है. अकारण असफलताओं का सामना करना पड़ता है. बेचैनी,गुस्सा और तनाव पीछे पड़ जाता है. पेट गड़बड़ाया रहता है, एसिडिटी, bp, हर्ट, सुगर, थाइरोइड, पैर, कमर दर्द की बीमारियां सिर उठाने लगती हैं.

इसी कारण गायत्री के साधक को किसी की आलोचना नही करनी चाहिये.
*जो गायत्री साधक इस मर्यादा का पालन करते हैं, उनसे देवता भी मित्रता करने के इच्छुक रहते हैं. इसके विपरीत जो साधक आलोचक होते हैं वे अपने साथ दूसरों का भी जीवन बर्बाद कर बैठते हैं*.

क्रमशः....।
शिव गुरू को प्रणाम
मां गायत्री को प्रणाम
गुरुदेव को नमन
सत्य ही शिव हैं. शिव तो सत्य हैं ही.... टीम मृत्युंजय योग

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