Monday 24 July 2017

श्रद्धा क्या

श्रद्धा क्या है , ये भगवान श्री आद्य शंकराचार्य के जीवन से समझनी चाहिए ! जहां श्रद्धा होती है वहां स्वतः करुणा और वात्सल्य का समावेश हो जाता है | वस्तु भले ही आपके पास विद्यमान ना हो पर आपके श्रद्धा परिपूरित ह्रदय से भावना अवश्य छलकनी चाहिए | व्रत ना रहे पर वृत्ति अवश्य विद्यमान रहे क्योंकि वृत्ति रहेगी तो व्रत भी स्वतः आ ही जाएगा |

श्री सदानंद योगीन्द्र कहते हैं , गुरुवचनविश्वासो श्रद्धा | तात्पर्य ये है कि गुरु , साधु और शास्त्र के वचन पर विश्वास होना - ये श्रद्धा का स्वरूप है , जहां श्रद्धा होती है , वहीं ज्ञान का भी प्रादुर्भाव होता है | (श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् -गीता )

भगवान श्री आद्य शंकराचार्य के भिक्षापात्र आगे करने पर गृहिणी श्रद्धा से भर जाती है | उसके पास देने के लिए कुछ नहीं होता , किन्तु अपनी श्रद्धा को ही चार आंवलों के रूप में शंकर के भिक्षा पात्र में डाल देती हैं |

उसकी इस श्रद्धा पर भगवान शंकर का ह्रदय करुणा से भर उठता है और जैसा कि कहा गया है कि एक करुण रस ही नाना रूपों में प्रकट होता है -

एको रसः करुण एव निमित्तभेदाद्भिन्न पृथक पृथगिव श्रयते विवर्तान् |
आवर्त बुदबुदतरङमयान्विकारान् नम्मो यथा सलिलमेव तु तत्समग्रम् || - उत्तररामचरित ३/४७

इसी करुणा से पूरित भगवान शंकर का हृदय इस प्रकार प्रकट होता है -

पुण्डरीकाक्ष भगवान नारायण की बल्लभा हे मां कमला ! मैं दरिद्रतमों में प्रथम स्थानीय अकिंचन हूं, अतः आपकी दया का अकृत्रिम (वास्तविक) पात्र हूं ! हे मां महालक्ष्मी ! तुम करुणा के प्रवाह में उठी उत्ताल तरंगों के समान अपने कृपा कटाक्षों से मेरा अवलोकन करो अर्थात् वात्सल्य पूर्वक मुझे निहारो !

कमले कमलाक्षवल्लभे, त्वं करुणापूरतरंगितैरपांगैः |
अवलोकय-मामकिंचनानां प्रथमं-पात्रमकृत्रिमं दयायाः ||

और पराम्बा भगवती का वात्सल्य सुवर्णवृष्टि के रूप में बरस कर सर्व मनोरथ सिद्ध कर देता है |

इसीलिये श्रुति कहती है कि तू श्रद्धा से देना अश्रद्धा से नहीं | (-तै० उप० )

हर हर महादेव !

|| जय श्री राम ||

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