हाँ , मंदिर गलत नही है
लेकिन ''सनातन'' के नाम पर सिर्फ 'मंदिर' हो ?
यह गलत है !
मंदिर मंदिर के नाम पर सारे जहा मे ढोंग करके रख दिया है जितना मंदिरो पर ध्यान दिया अगर उसका 1 प्रतिशत भी यह लोग वास्तविक ब्रहमन और शोध पर दिया होता तो आज यह हाल ना होता ?
''असली ब्राहमणो'' को सबसे अधिक कष्ट तो ''ढोंगी और व्यवसायिक'' पंडितो द्वारा ही पहुचा है, वास्तविक ''ब्राहमणो'' को इन जैसो की कीमत चुकानी पड़ती है !
ढोंगी और व्यवसायिक को तो बस कहानी पर कहानी गड़ना आता है , किसी से पूछो की प्याज क्यू नही खाते तो कहेंगे की लुड़क गयी थी !
ढंग से प्याज ना खाने का मतलब भी नही पता और वकालत करने के लिये ऐसे खड़े हो जाते है की पूछो मत ?
जो असली पण्डित है वो तो ना जाने कहा गुमनामी मे भटक रहे है ! कोई उनकी सुध लेने वाला तक नही है ?
वो तो वास्तव में आज भी गुरुकुल खोल कर शोध करना चाहते है, वही अपना पुराना 'गौरव' वापस पाना चाहते है लेकिन यह 'ढोंगी' उनके रास्ते की सबसे बड़ी दीवार बनकर खड़े है और साई के नाम पर पता नही कहा ''हिन्दुत्व'' को ले जाकर छोड़ेंगे ?
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हजारों साल की गुलामी ने हमारी पूरी नस्ल को ही ख़राब कर डाला है। बचे खुचे स्वाभिमानी हिन्दू आज भी अपने गौरवशाली सनातनी अतित को पाने की लड़ाई लड़ रहे है। लेकिन इसमें घबराने की आवश्यकता नहीं है क्योकिं एक सनातनी करोड़ो ढोंगी हिन्दुओं को उनके मूल धर्म में वापस लाने की क्षमता रखता है।
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मंदिर सनातन का प्रतीक है ना की सम्पूर्ण सनातन !
अब प्रतीको की आड़ मे सम्पूरण सनातन को पीछे छोड़ना कहा की समझदारी और धर्म है ?
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इस व्यवासायिक युग में भगवान भी व्यवसाय के लिए है ,
मंदिरों में अनेकानेक बेजोड़ मूर्तियों की स्थापना भी उसी व्यवसाय के अंतर्गत है !
''वेदो की वैज्ञानिकता'' से दूर ,''पीर - क़ब्र'' पूजा को ''धर्म'' कहना पथभ्रष्ट की जुबान है ! भगवान को भिखारी बना चवन्नी फेंकते हैं और कहते हैं ईश्वर प्रसन्न होगा !
कभी नहीं ? इसी मूर्खता का परिणाम है की सब दुख पा रहे हैं ! जिससे उपकार लेना हो उसके गुणो को जानना चाहिए ? शास्त्रों के नाम पर कुछ भी पढ़ने से ज्ञान नहीं होता ! वेद को वेद की तरह समझना होता है !
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हमेशा क्यू देर क्यू हो जाती है ?
देर इसलिये हुई क्योंकि जब भी कोई सही करना चाहता तो कुछ ढोंगी सामने खड़े हो जाते है ?
कुछ लोग आज कुछ सही करने की कोशिस मे लगे हुए है
लेकिन आप हमे ही रोक रहे है फिर कल को कहेंगे कि देर हो गयी ?
यह तो बड़ा ही अजीब है ना ?
कल को लकीर ना पिटनी पड़े इलिए आज विरोध कर रहे है हम !
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हमारे यहा ''सनातनी विज्ञान'' को ''चमत्कार'' का नाम क्यू दे दिया जाता है ?
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जबाब - जिन लोगो को विज्ञान की समझ होती है वो तो 'जंगल जंगल' भटकते है कोई उनको लालच नही होता है ओर ना ही वो किसी को 'व्यर्थ' का प्रलोभन देते है ! इसलिये ज्यादातर गुमनामी मे रहते है !
वही उसके उलट जिन लोगो को विज्ञान की समझ नही होती जो इसको 'समझ नही' पाते ओर अपनी ''अल्पबुद्धि'' के आधार पर एक नयी कहानी गड देते है !
ज्योतिष जैसे विज्ञान को भी इन लोगो की वजह से पाखंड समझा जाने लगा है !
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सनातन के नाम पर आज बस चारो तरफ मंदिर ही मंदिर नजर आते है ?
मंदिरो मे क्यू नही कोई शोधशाला होती.... जो सनातन का अभिन्न अंग है ?
मंदिरो मे क्यू नही वेदो का अधयन् होता ?
क्या एक कमरा भी इसके लिये दिया जा सकता ?
अगर मंदिरो ने ही अपनी जिम्मेदारी पूरी निभाई होती तो
अलग से आर्य समाज का निर्माण ना हुआ होता ?
आज हम अपने ''अखंड आर्याव्रत'' का 60 % भू भाग गवा चुके है,
हम जो कल तक ''दुसरो'' को तकनीक ज्ञान देते थे , आज दुसरे देसों पर आश्रित है !
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मंदिर शब्द आया कहाँ से है हमको यही समझ नहीं आता ! पूछो तो गधों वाली व्याख्या सामने रख देंगे पर समाधान नहीं !ईश्वर प्रणिधान जप तप से धर्मव्यवहार से ईश्वर को पाया जा सकता है ! शोध करने की प्रवृत्ति ही हटा दी !ईश्वर को ज्ञान को सत्य धर्म को बाहर ढूंढते हैं !बाहर सीख सकते हैं मिलेगा अंदर ही !यही शोध की प्रक्रिया समाप्त कर दी गयी है !शोधशालाएं आध्यात्मिक केंद्र होते थे ! मूर्तियाँ शोभा के लिए होती थीं !कालांतर मे मूर्खता से लोगों ने पूजना शुरू किया तो नये देवी देवता पैदा होते जा रहे हैं !
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यज्ञशाला, गौशाला, शोधशाला या
दुसरे शब्दों में कर्म-सेवा-अनुसन्धान होंना ही चाहिए
तभी सनातन की संपूर्ण एवं साक्ष्यवत व्याख्या सम्भव हैं ..
विदेशी हमारे ''वेदों'' से तकनीकी ज्ञान खोजते है , विदेसी हमारे ''वेदों का अध्यन'' तकनीकी को उन्नत करने के लिए करते है और हम आज भी वेदों का अध्यन सिर्फ ''जातिवाद'' ,'' पोंगापंथ'' , अंधविश्वास के लिए करते है !
यही कारण है कि अकबर हमारे देश के इतिहास में महान हो गया और हम बिखरते चले गए !
आज हम अपने ''अखंड आर्याव्रत'' का 60 % भू भाग गवा चुके है, हम जो कल तक ''दूसरो'' को तकनीक ज्ञान देते थे , आज दूसरे देसों पर आश्रित है !
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बात सनातन की है , इसलिये मुद्दा ''आर्यसमाज या हिन्दूतव'' का नही बल्कि ''आर्य संस्क्रति'' का है ! क्यू हमने इसको 2 भागो में बाट दिया है ?
''आर्यसमाज और सनातन'' को बहुत ही 'सोच समझ' कर इन नेताओ ने कांग्रेस और अंग्रेजो के कहने पर 'बाँट' दिया है ताकि हम कभी 'सनातन' तक ना पहुच जाये ?
यह ठीक वैसे ही है जैसे दलितों और सवर्णो को बाट दिया है ! यह बहुत बड़ी राजनीति है इसको ठीक से समझना बहुत ही आवश्यक है वर्ना एक और 'विनाश' के लिये तैयार रहे !
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यह अंग्रेज़ हमेशा से करते हुए आये है, की जब कोई किसी 'सही आन्दोलन' को शुरु करता है तो यह लोग उसको 'हाइजॅक' करके सारा 'क्रेडिट' खुद ले लेते है ओर फिर उस 'संघटन' को ना जाने कहा पहुचा देते है ?
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हमारी दुर्गती के लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं,
जितना हमें विदेशी आक्रमणकारियों ने धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से हानि नहीं पहुचाई _उतना हमारी धर्म को जानने के प्रति निर्लिप्तता ने पहुंचाई हैं .....
हम भी अपनी धारणा को "अपनी पंडिताई" मान कर
उसे आने वाली पीढ़ी के के समक्ष उदहारण के रूप में प्रस्तुत करते जाते हैं .........
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''तपोभूमि नेपाल'' और ''तिब्बत की जनता'' , भारी समर्थन के साथ ''आर्यावर्त'' से जुड़ने को तैयार है ! भारत की नयी सरकार से इन दोनो देशो की जनता में में भारी उत्साह है !
दुर्भाग्य वश नेपाल आज इस्लामिक आतंकवाद से लेकर ''अंतररास्ट्रीय आतंकवाद'' का गढ बना चुका है ! वर्तमान में चीन की नजर नेपाल की ''अर्थव्यवस्था'' का केन्द्र ''पारसमणि'' पर भी नजर है! पारसमणि इस्पात को सोने में बदलने की शक्ति रखती है , जिसकी बहुत कम लोगो को ही जानकारी है !
नेपाल तपो भूमि है ,
सनातन , वैदिक ज्ञान की सही जानकारी नेपाल में आज भी सुरक्षित है ! भारत की नयी रास्ट्रवादी सरकार को आगे इस तरह भी ध्यान देना चाहिये!
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