पुरी शंकराचार्य महाभाग का अद्भुत दिव्य सन्देश .
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सारी समस्या का हल है मनुवाद , जितनी समस्याए है आतंकवाद आदि सबका हल है सनातनपरंपरा , उसका ज्ञान होगा मनुस्मृति आदि के द्वारा , सारी समस्या का समाधान पंद्रह दिन में संभव है , सब घुटना टेक देंगे , लेकिन विपरीत बुद्धि क्या बना दी अंग्रेजो ने कि सारी समस्या की जड़ है मनुवाद , और हम क्या करेंगे ?
जितनी समस्या है विश्व की , हमारी नही , पुरे विश्व की , स्थावर जंगम प्राणियों की उनका विलोप क्यों , चींटी , पतंगे इनका विलोप क्यों , केवल हमारी समस्या थोड़े ही है , पितरो की समस्या है , उनको पिंडदान नहीं , देवताओ की समस्या है उनको शुद्ध आहुति नहीं , चींटी की वेदना कौन सुने वे तो जिंदाबाद , मुर्दाबाद भी नहीं कह सकती ....वृक्षों की वेदना कौन सुने ...वे तो आह भी नहीं कर सकते .......इधर ध्यान जा रहा है या नहीं ....
राजा ऐसा हो जिसे इन सबकी वेदना व्यापे ......इन्हें तो गाय की वेदना भी नही व्याप्ति .....वेद की वेदना नहीं व्याप्ति ...वेद ऋषियों के अन्न है वेद नहीं रहेंगे तो उनसे ज्ञान कैसे प्राप्त होगा !
तो जितने शास्त्रीय सिद्धांत है उन्हें हमने मन में रखा है .......आशा यह है कि सारी चेष्टाए तो उसी लक्ष्य को लेकर होती है ....अभी से नहीं जबसे पलने पर था तब से सारा अभियान मन में रहता है ....तो अवश्य ही भगवान् सफल बनाएँगे !
तो हमको नहीं लगता कुछ भी असाध्य है या पहुँच से बाहर है .....केवल पांच सात व्यक्ति हमारी दर्शन की भाषा को समझें ....मेरी ही नही आपकी भी प्रशंसा हो सकती है यदि आपने यह ज्ञान विज्ञान ले लिया ....सुनीए >> आर्कमिडीज जी ने कहा था पृथ्वी का केंद्र मुझे पता चल जाए तो मै पृथ्वी को उठा दूँ ....हम तो स्पष्ट कहते है पुरी पृथ्वी ही नही ...चतुर्दश भुवनात्मक ब्रह्माण्ड का केंद्र हम लोगो के हाथ में है .....हमलोगों को मालूम है स्रष्टि संरचना कैसे हुई है .......शब्द और ज्ञान के अलावा स्रष्टि नही है ...पुरे दर्शनशास्त्र का सारांश क्या है .....शब्द और ज्ञान का विलास ही जगत है !
यह सब तो वेदान्ताचार्य होने के लिए लिख पढ़ लेना अलग बात है और प्रयोग में करके सारी स्रष्टि ....शब्द और ज्ञान के रूप में हथेली पर नाचते हुए हमको दिखाई पड़े !
अरे यहाँ बैठे बैठे ही ....सब हो सकता है ....मेरी सिद्धि है किसी को भी यह ज्ञान दे सकता हूँ ...दे ही रहा हूँ .....लुटा ही रहा हूँ ...पकड़ने वाला पकड़ ले ......मै लुटा रहा हूँ ....कोई अनाड़ी नहीं हूँ , हनुमानजी , सप्तऋषि आदि हमारे श्रोता होते है ....मेरा ज्ञान व्यर्थ नहीं जाता है .....उनको प्रमुदित करने के लिए कहता हूँ ....मै बालक हूँ उनको प्रसन्न करने के लिए तोतली बोली में बोलता हूँ ....श्रोता सुन लें !
तो यही बैठे बैठे जो परिवर्तन स्रष्टि में करना है कर देंगे ....बोकारो की फेक्ट्री है यहाँ स्विच ऑन करो और हो गया .......आपको मालूम है अमेरिका आदि में क्या होता है ....राष्ट्रपति बदलने पर एक दुसरे को बक्सा दिया जाता है .....जैसे जब हम शंकराचार्य होते है तो हमें सबसे कीमती ..जिसका कोई मूल्य नही है .....जिसे आदि शंकराचार्य को भगवान् शिव ने जो चन्द्रमौलेश्वर दिया था .....वह हमें परंपरा से प्राप्त है .....हमारी धरोहर क्या है ...जो नए शंकराचार्य होते है उन्हें चन्द्रमौलेश्वर देते है ......हमारे आराध्य है , हमारे यहाँ पूजित होते है ....हम चाहें तो दो चार लाख रूपया उन्ही के नाम पर ले लें ...देने के लिए भी कई तैयार है ...लेकिन हम तो बंद कमरे में उनकी पूजा करते है यह भी प्रचार नहीं करते कि वह मेरे पास है , दिव्य है !
तो अभिप्राय क्या है ...हम यहीं बैठे बैठे मानवोचित ढंग से काम कर रहें है ......और देखेंगे जब यह गैर फेल हो रही है तो यहीं बैठे बैठे पुरे विश्व का सञ्चालन लिया जा सकता है क्योंकि शब्द और ज्ञान का संवित रूप यह स्रष्टि है ....जैसा सञ्चालन करना चाहेंगे कर देंगे ...वह शब्द को वहां लाकर फीट कर दो वह अपना अर्थ निकाल लेगा ....अपना द्वार निकाल लेगा ....तो एटमबम की शक्ति को भी निरस्त करने की क्षमता है , लेकिन कठिनाई यह होती है कि इस वेदना , इस महिमा को समझकर कोई दो चार माई के लाल भी इस ज्ञान को लेने के उत्सुक हो .....जो उत्सुक है उनमे इतनी मेधाशक्ति नही ....तपस्या का बल नही .....और जो अभिमानी है वे क्यों लेंगे !
तो क्या हमारी योजना विफल हो जाएगी ....ये भी नही ....
अरे भगवान् राम आदि जब अवतरित होते है , तो... जितने सहयोगी चाहिए लीला में साथ लेकर के आते है , युधिष्ठिर जी आए भगवान् के सहयोग के लिए , क्रांति के लिए सभी वहीँ से आते है न ....वाल्मीकि रामायण , महाभारत पढ़िए .....यहाँ भी हमारे द्वारा भगवान् को आप लोगो से जो करवाना होगा करवा लेंगे ...रोना क्या है ......
सारे सहयोगी आ रहे है , आ रहे है ......धीरे धीरे मिल रहे है .....जामवंत पहले आ गए थे .......फिर हनुमान जी आ गए ....सुग्रीव जी को जब सामने आना था तब सुग्रीवजी भी सामने आ गए !
तो हमने संकेत किया संक्रमण काल चल रहा है ...बहुत अच्छे ढंग से बिना मारकाट के भी काम चल सकता है ....प्रेम और विवेक की भाषा जिनको समझ नही आती उनका संहार तो निश्चित है वे चाहे कोई भी हो ....और जो सनातनधर्मी है वे सब सुन लें .....भगवान् का अवतार होगा तो सबसे पहले किसे मारेंगे .....जो हमारा प्रवचन तो सुनते है लेकिन मानते नही .... उन्ही को पहले मारेंगे .......भगवान् क्या भाई भतीजावादी होते है .....
भगवान् कौन होते है ? .....अपने बेटे बेटियों को जो गाजर मुली की तरह कटवा दे वे भगवान् होते है .....भगवान को कोई व्यक्ति सह लेगा ....अरे जो हमें नहीं सह पा रहे वे भगवान् को सह लेंगे .....भगवान् जब पूछेंगे इतने वर्षो से प्रवचन सुन रहे हो तुमने एक कदम उठाया , एक घंटा भी राष्ट्र के नाम लगाया ...सबसे पहले तुम्हे ही मरूँगा ...तब क्या होगा ....अनर्थ होगा या नही ......
इसलिए जिन्हें प्रेम और विवेक की भाषा नहीं पचती उनका संहार निश्चित है , संहार का स्वरुप क्या होगा यह भी मुझे मालूम है ....उसके बाद जैसा हम चाहेंगे ...करने से सफल होंगे !
तो विवेक का समादर करने पर ही सबकुछ होगा !
!! हर हर महादेव !!
Saturday, 22 July 2017
पुरी शंकराचार्य महाभाग का अद्भुत दिव्य सन्देश . ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ सारी समस्या का हल है मनुवाद , जितनी समस्याए है आतंकवाद आदि सबका हल है सनातनपरंपरा , उसका ज्ञान होगा मनुस्मृति आदि के द्वारा , सारी समस्या का समाधान पंद्रह दिन में संभव है , सब घुटना टेक देंगे , लेकिन विपरीत बुद्धि क्या बना दी अंग्रेजो ने कि सारी समस्या की जड़ है मनुवाद , और हम क्या करेंगे ? जितनी समस्या है विश्व की , हमारी नही , पुरे विश्व की , स्थावर जंगम प्राणियों की उनका विलोप क्यों , चींटी , पतंगे इनका विलोप क्यों , केवल हमारी समस्या थोड़े ही है , पितरो की समस्या है , उनको पिंडदान नहीं , देवताओ की समस्या है उनको शुद्ध आहुति नहीं , चींटी की वेदना कौन सुने वे तो जिंदाबाद , मुर्दाबाद भी नहीं कह सकती ....वृक्षों की वेदना कौन सुने ...वे तो आह भी नहीं कर सकते .......इधर ध्यान जा रहा है या नहीं .... राजा ऐसा हो जिसे इन सबकी वेदना व्यापे ......इन्हें तो गाय की वेदना भी नही व्याप्ति .....वेद की वेदना नहीं व्याप्ति ...वेद ऋषियों के अन्न है वेद नहीं रहेंगे तो उनसे ज्ञान कैसे प्राप्त होगा ! तो जितने शास्त्रीय सिद्धांत है उन्हें हमने मन में रखा है .......आशा यह है कि सारी चेष्टाए तो उसी लक्ष्य को लेकर होती है ....अभी से नहीं जबसे पलने पर था तब से सारा अभियान मन में रहता है ....तो अवश्य ही भगवान् सफल बनाएँगे ! तो हमको नहीं लगता कुछ भी असाध्य है या पहुँच से बाहर है .....केवल पांच सात व्यक्ति हमारी दर्शन की भाषा को समझें ....मेरी ही नही आपकी भी प्रशंसा हो सकती है यदि आपने यह ज्ञान विज्ञान ले लिया ....सुनीए >> आर्कमिडीज जी ने कहा था पृथ्वी का केंद्र मुझे पता चल जाए तो मै पृथ्वी को उठा दूँ ....हम तो स्पष्ट कहते है पुरी पृथ्वी ही नही ...चतुर्दश भुवनात्मक ब्रह्माण्ड का केंद्र हम लोगो के हाथ में है .....हमलोगों को मालूम है स्रष्टि संरचना कैसे हुई है .......शब्द और ज्ञान के अलावा स्रष्टि नही है ...पुरे दर्शनशास्त्र का सारांश क्या है .....शब्द और ज्ञान का विलास ही जगत है ! यह सब तो वेदान्ताचार्य होने के लिए लिख पढ़ लेना अलग बात है और प्रयोग में करके सारी स्रष्टि ....शब्द और ज्ञान के रूप में हथेली पर नाचते हुए हमको दिखाई पड़े ! अरे यहाँ बैठे बैठे ही ....सब हो सकता है ....मेरी सिद्धि है किसी को भी यह ज्ञान दे सकता हूँ ...दे ही रहा हूँ .....लुटा ही रहा हूँ ...पकड़ने वाला पकड़ ले ......मै लुटा रहा हूँ ....कोई अनाड़ी नहीं हूँ , हनुमानजी , सप्तऋषि आदि हमारे श्रोता होते है ....मेरा ज्ञान व्यर्थ नहीं जाता है .....उनको प्रमुदित करने के लिए कहता हूँ ....मै बालक हूँ उनको प्रसन्न करने के लिए तोतली बोली में बोलता हूँ ....श्रोता सुन लें ! तो यही बैठे बैठे जो परिवर्तन स्रष्टि में करना है कर देंगे ....बोकारो की फेक्ट्री है यहाँ स्विच ऑन करो और हो गया .......आपको मालूम है अमेरिका आदि में क्या होता है ....राष्ट्रपति बदलने पर एक दुसरे को बक्सा दिया जाता है .....जैसे जब हम शंकराचार्य होते है तो हमें सबसे कीमती ..जिसका कोई मूल्य नही है .....जिसे आदि शंकराचार्य को भगवान् शिव ने जो चन्द्रमौलेश्वर दिया था .....वह हमें परंपरा से प्राप्त है .....हमारी धरोहर क्या है ...जो नए शंकराचार्य होते है उन्हें चन्द्रमौलेश्वर देते है ......हमारे आराध्य है , हमारे यहाँ पूजित होते है ....हम चाहें तो दो चार लाख रूपया उन्ही के नाम पर ले लें ...देने के लिए भी कई तैयार है ...लेकिन हम तो बंद कमरे में उनकी पूजा करते है यह भी प्रचार नहीं करते कि वह मेरे पास है , दिव्य है ! तो अभिप्राय क्या है ...हम यहीं बैठे बैठे मानवोचित ढंग से काम कर रहें है ......और देखेंगे जब यह गैर फेल हो रही है तो यहीं बैठे बैठे पुरे विश्व का सञ्चालन लिया जा सकता है क्योंकि शब्द और ज्ञान का संवित रूप यह स्रष्टि है ....जैसा सञ्चालन करना चाहेंगे कर देंगे ...वह शब्द को वहां लाकर फीट कर दो वह अपना अर्थ निकाल लेगा ....अपना द्वार निकाल लेगा ....तो एटमबम की शक्ति को भी निरस्त करने की क्षमता है , लेकिन कठिनाई यह होती है कि इस वेदना , इस महिमा को समझकर कोई दो चार माई के लाल भी इस ज्ञान को लेने के उत्सुक हो .....जो उत्सुक है उनमे इतनी मेधाशक्ति नही ....तपस्या का बल नही .....और जो अभिमानी है वे क्यों लेंगे ! तो क्या हमारी योजना विफल हो जाएगी ....ये भी नही .... अरे भगवान् राम आदि जब अवतरित होते है , तो... जितने सहयोगी चाहिए लीला में साथ लेकर के आते है , युधिष्ठिर जी आए भगवान् के सहयोग के लिए , क्रांति के लिए सभी वहीँ से आते है न ....वाल्मीकि रामायण , महाभारत पढ़िए .....यहाँ भी हमारे द्वारा भगवान् को आप लोगो से जो करवाना होगा करवा लेंगे ...रोना क्या है ...... सारे सहयोगी आ रहे है , आ रहे है ......धीरे धीरे मिल रहे है .....जामवंत पहले आ गए थे .......फिर हनुमान जी आ गए ....सुग्रीव जी को जब सामने आना था तब सुग्रीवजी भी सामने आ गए ! तो हमने संकेत किया संक्रमण काल चल रहा है ...बहुत अच्छे ढंग से बिना मारकाट के भी काम चल सकता है ....प्रेम और विवेक की भाषा जिनको समझ नही आती उनका संहार तो निश्चित है वे चाहे कोई भी हो ....और जो सनातनधर्मी है वे सब सुन लें .....भगवान् का अवतार होगा तो सबसे पहले किसे मारेंगे .....जो हमारा प्रवचन तो सुनते है लेकिन मानते नही .... उन्ही को पहले मारेंगे .......भगवान् क्या भाई भतीजावादी होते है ..... भगवान् कौन होते है ? .....अपने बेटे बेटियों को जो गाजर मुली की तरह कटवा दे वे भगवान् होते है .....भगवान को कोई व्यक्ति सह लेगा ....अरे जो हमें नहीं सह पा रहे वे भगवान् को सह लेंगे .....भगवान् जब पूछेंगे इतने वर्षो से प्रवचन सुन रहे हो तुमने एक कदम उठाया , एक घंटा भी राष्ट्र के नाम लगाया ...सबसे पहले तुम्हे ही मरूँगा ...तब क्या होगा ....अनर्थ होगा या नही ...... इसलिए जिन्हें प्रेम और विवेक की भाषा नहीं पचती उनका संहार निश्चित है , संहार का स्वरुप क्या होगा यह भी मुझे मालूम है ....उसके बाद जैसा हम चाहेंगे ...करने से सफल होंगे ! तो विवेक का समादर करने पर ही सबकुछ होगा ! !! हर हर महादेव !!
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