Monday, 24 July 2017

ब्राह्मण विद्या का _एक मूलभूत गुणधर्म

आचार्य शंकर कहते हैं --
अरे मूढ़ कुमारिल भट्ट !
क्या ब्याकरण व्याकरण कर रहा हैं ?

♥  भज गोविन्दम !  भज गोविन्दम !
♥  भज गोविन्दम ! गोविन्दम भज ! मूढमते !

ये जो  ♥  भज गोविन्दम हैं
यही ब्राह्मण विद्या का _अति अद्भुत विलक्षण गुण धर्म हैं

भगवान् भाष्यकार , सौन्दर्यलहरी में स्वयं कहते हैं

हे राजे ! हे ललिते !हे सुन्दरी !  हे कामेश्वरी !
सबसे पहले ये "भज आनन्दं" "भज गोविन्दम" _ सनकादि ने किया

ये  "भज आनन्दं"  "भज गोविन्दम" ही
ब्राह्मण विद्या का _एक मूलभूत गुणधर्म हैं

जिसे आजकल के शक हूण बीज
चारण भाटो ने शेरो शायरी में _ तब्दील कर दिया हैं

लोकगीत तक तो उचित हैं _ लेकिन शेरो शायरी गलत हैं

आदि शंकर के पश्चात ,
गोस्वामीजी ने , इसी विद्या को प्रकाशित किया

__________________

कामकला युक्त सनातनी विद्या
का प्रस्तुतीकरण _मेरी तत्कालीन मौलिकता हैं

प्रत्येक युग की अपनी पृष्ठभूमि हैं
उसका प्रभाव से , युक्त होकर ही _ नाट्यकला का मंचन होता हैं

https://www.facebook.com/SrimanNarayan.Buddha/photos/a.1400388540203224.1073741828.1400362540205824/1602106810031395/?type=1

No comments:

Post a Comment