आचार्य शंकर कहते हैं -- 
अरे मूढ़ कुमारिल भट्ट !
क्या ब्याकरण व्याकरण कर रहा हैं ?
 ♥  भज गोविन्दम !  भज गोविन्दम !
 ♥  भज गोविन्दम ! गोविन्दम भज ! मूढमते !
ये जो  ♥  भज गोविन्दम हैं 
यही ब्राह्मण विद्या का _अति अद्भुत विलक्षण गुण धर्म हैं 
भगवान् भाष्यकार , सौन्दर्यलहरी में स्वयं कहते हैं
हे राजे ! हे ललिते !हे सुन्दरी !  हे कामेश्वरी !
सबसे पहले ये "भज आनन्दं" "भज गोविन्दम" _ सनकादि ने किया 
ये  "भज आनन्दं"  "भज गोविन्दम" ही 
ब्राह्मण विद्या का _एक मूलभूत गुणधर्म हैं 
जिसे आजकल के शक हूण बीज 
चारण भाटो ने शेरो शायरी में _ तब्दील कर दिया हैं 
लोकगीत तक तो उचित हैं _ लेकिन शेरो शायरी गलत हैं
आदि शंकर के पश्चात , 
गोस्वामीजी ने , इसी विद्या को प्रकाशित किया 
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कामकला युक्त सनातनी विद्या 
का प्रस्तुतीकरण _मेरी तत्कालीन मौलिकता हैं 
प्रत्येक युग की अपनी पृष्ठभूमि हैं 
उसका प्रभाव से , युक्त होकर ही _ नाट्यकला का मंचन होता हैं
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