Tuesday, 22 August 2017

वेद चार हैँ ,

Press question mark to see available shortcut keys 8   हिन्दू परिवार संघठन संस्थ Public May 16, 2014  वेद चार हैँ , यथा- 1- ऋग्वेद, 2- यजुर्वेद, 3- सामवेद, 4- अथर्ववेद। वेद किसी मनुष्य ने नहीँ बनाये । परम्‌पिता परमात्मा ने जब सृष्टि रची तो मनुष्य मात्र के हित के लिए वेद ज्ञान का चार ऋषियोँ के हृदयोँ मे आत्म प्रेरणा (Coscience) के रूप मेँ प्रकाश किया , देखिये 1 - अग्नि ऋषि द्वारा 'ऋग्वेद' , 2 वायु ऋषि द्वारा 'यजुर्वेद' , 3- आदित्य ऋषि द्वारा 'सामवेद' , 4- अंगिरा ऋषि द्वारा 'अथर्ववेद' प्रकट हुए । इन ऋषियोँ ने संसार के अन्य मनुष्योँ मे वेदोँ का प्रचार किया। फिर ऋषि होते गये जिन्होने वेद मन्त्रोँ की व्याख्यायेँ की। वेद ईश्वरीय कृत ज्ञान है क्योकि- 1- वेद ईश्वर के गुण कर्म और स्वभाव के अनुकूल हैँ। 2- इनमेँ किसी व्यक्ति विशेष व जाति विशेष को सम्बोधित न कर अपितु सर्वसाधारण को सम्बोधिक किया गया है। 3- इसमे सृष्टिक्रम, विद्या व बुद्धि के विरुद्ध कोई बात नही है। 4- वेद मे कुरान और बाईबिल की भाँति लौकिक इतिहास व घटनाओँ का वर्णन नहीँ है । ईश्वर ने वेदोँ के रुप मेँ ज्ञान , कर्मोपासना और विज्ञान के मूलतत्वोँ का उपदेश इसलिए कल्याणकारी भावना से किया ताकि मनुष्य धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की सिद्धि के लिए यत्न कर सके । जैसे भौतिक सुख के लिए सूर्य आदि पदार्थ बनाये वैसे ही वेद सर्वाँगीण मनुष्य की उन्नति के लिए बनाए। वेद सनातन प्रभु की वाणी होने से उतने ही पुराने हैँ जितनी कि सृष्टि अर्थात लगभग दो अरब वर्ष। वेदोँ से पुराना कोई धर्मशास्त्र नही। पाँच सहस्त्र(5000) वर्षोँ के पूर्व वेद मत से भिन्न दूसरा कोई मत संसार मेँ न था, परन्तु अत्यन्त प्राचीन होते हुए भी यह सर्वविद्या सम्पन्न और सार्वभौमिक होने के कारण आज भी उतने ही नवीन है, जितनी कि कोई और वस्तु। वेद एक निराकार ईश्वर की जिसका मुख्य नाम 'ओ3म्‌' है पूजा करने का आदेश देते हैँ । किसी अन्य देवी देवता की नहीँ । ईश्वर के स्थान पर प्राकृतिक जड़-पदार्थोँ को उपास्य देव नहीँ मानते । इन्द्र,अग्नि,मित्र,वरुण और वायु आदि अनेक गुणोँ का बोध कराने वाले ईश्वर के गौणिक नाम हैँ , न कि जड़ पदार्थ। वेद चार होते हुए भी ज्ञान,कर्म,उपासना भेद से तीन ही मुख्य विषयोँ का प्रतिपादन करते हैँ । 1- 'ऋग्वेद' मे ज्ञानकाण्ड अर्थात्‌ ईश्वर से लेकर पृथ्वी और जगत के समस्त पदार्थोँ का ऐसा बोध कराया गया है, जिसके प्राप्त होने से कर्म मे प्रवृत्ति और योग्यता होती है। 2- 'यजुर्वेद' मेँ कर्मकाण्ड अर्थात्‌ धर्मयुक्त सांसारिक और पारमार्थिक कर्मोँ का विधान है जिनका फल उपासना है । 3- 'सामवेद' मे उपासना काण्ड, जिसका फल विशेष ब्रह्मविद्या तथा मोक्ष की प्राप्ति है। 4- 'अथर्ववेद' मे तीनोँ वेदोँ का सारांश रूप तत्व विज्ञान है। वेद सब सत्य विद्याओँ की पुस्तक है, संकुचित अर्थ मेँ बाईबिल,कुरान आदि की तरह मत प्रतिपादक ग्रन्थ नही । संसार की सब विद्याएँ वेदोँ के अन्दर मूल रुप मेँ विद्यमान हैँ, जो अनुसंधान से प्रकट होती हैँ। विज्ञान के उच्च से उच्च सिद्धान्तोँ का भी वेदोँ मेँ समावेश है । वेद द्वारा ही हमारे पूर्वर्जो ने सब वस्तुओँ के नाम धरे, अपनी सन्तानोँ के नाम वेदोँ के पवित्र एवं सार्थक शब्दोँ को देख कर रखें। Translate  2 plus ones 2 no comments no shares Shared publicly•View activity  Add a comment...

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