Menu  Search Asaramji Bapu संत आसारामजी बापू TAGGED WITH SANT ASHARAM BAPU Happy Chaitra Navratri Rate This  Chaitra Navratri नवरात्रि में शुभ संकल्पों को पोषित करने, रक्षित करने और शत्रुओं को मित्र बनाने वाले मंत्र की सिद्धि का योग होता है। वर्ष में दो नवरात्रियाँ आती हैं। शारदीय नवरात्रि और चैत्री नवरात्रि। चैत्री नवरात्रि के अंत में रामनवमी आती है और दशहरे को पूरी होने वाली नवरात्रि के अंत में राम जी का विजय-दिवस विजयादशमी आता है। एक नवरात्रि के आखिरी दिन राम जी प्रागट्य होता है और दूसरी नवरात्रि आती तब रामजी की विजय होती है, विजयादशमी मनायी जाती है। इसी दिन समाज को शोषित करने वाले, विषय-विकार को सत्य मानकर रमण करने वाले रावण का श्रीरामजी ने वध किया था। नवरात्रि को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है। इसमें पहले तीन दिन तमस को जीतने की आराधना के हैं। दूसरे तीन दिन रजस् को और तीसरे दिन सत्त्व को जीतने की आराधना के हैं। आखिरी दिन दशहरा है। वह सत्त्व-रज-तम तीन गुणों को जीत के जीव को माया के जाल से छुड़ाकर शिव से मिलाने का दिन है। शारदीय नवरात्रि विषय-विकारों में उलझे हुए मन पर विजय पाने के लिए और चैत्री नवरात्रि रचनात्मक संकल्प, रचनात्मक कार्य, रचनात्मक जीवन के लिए, राम-प्रागट्य के लिए हैं। नवरात्रि के प्रथम तीन दिन होते हैं माँ काली की आराधना करने के लिए, काले (तामसी) कर्मों की आदत से ऊपर उठने के लिए लिए। पिक्चर देखना, पानमसाला खाना, बीड़ी-सिगरेट पीना, काम-विकार में फिसलना – इन सब पाशविक वृत्तियों पर विजय पाने के लिए नवरात्रि के प्रथम तीन दिन माँ काली की उपासना की जाती है। दूसरे तीन दिन सुख-सम्पदा के अधिकारी बनने के लिए हैं। इसमें लक्ष्मी जी की उपासना होती है। नवरात्रि के तीसरे तीन दिन सरस्वती की आराधना-उपासना के हैं। प्रज्ञा तथा ज्ञान का अर्जन करने के लिए हैं। हमारे जीवन में सत्-स्वभाव, ज्ञान-स्वभाव और आनन्द-स्वभाव का प्रागट्य हो। बुद्धि व ज्ञान का विकास करना हो तो सूर्यदेवता का भ्रूमध्य में ध्यान करें। विद्यार्थी सारस्वत्य मंत्र का जप करें। जिनको गुरुमंत्र मिला है वे गुरुमंत्र का, गुरुदेव का, सूर्यनारायण का ध्यान करें। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक का पर्व शारदीय नवरात्रि के रूप में जाना जाता है। यह व्रत-उपवास, आद्यशक्ति माँ जगदम्बा के पूजन-अर्चन व जप-ध्यान का पर्व है। यदि कोई पूरे नवरात्रि के उपवास-व्रत न कर सकता हो तो सप्तमी, अष्टमी और नवमी तीन दिन उपवास करके देवी की पूजा करने से वह सम्पूर्ण नवरात्रि के उपवास के फल को प्राप्त करता है। देवी की उपासना के लिए तो नौ दिन हैं लेकिन जिन्हें ईश्वरप्राप्ति करनी है उनके लिए तो सभी दिन हैं।  March 29, 2017Leave a reply The Truth of New Year Gudi Padwa Rate This  The Truth of New Year भारतीय संस्कृति का चैत्री नूतन वर्ष – 28 मार्च चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि । -ब्रम्हपुराण अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सत्ययुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी #आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । यह दिन महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ के नाम से भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्द में से ‘पाड’ अर्थात पूर्ण; एवं ‘वा’ अर्थात वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा इस शब्द का अर्थ है, परिपूर्णता । गुड़ी (बाँस की ध्वजा) खड़ी करके उस पर वस्त्र, ताम्र- कलश, नीम की पत्तेदार टहनियाँ तथा शर्करा से बने हार चढाये जाते हैं। गुड़ी उतारने के बाद उस शर्करा के साथ नीम की पत्तियों का भी प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है, जो जीवन में (विशेषकर वसंत ऋतु में) मधुर रस के साथ कड़वे रस की भी आवश्यकता को दर्शाता है। वर्षारंभके दिन सगुण #ब्रह्मलोक से प्रजापति, ब्रह्मा एवं सरस्वतीदेवी इनकी सूक्ष्मतम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । चैत्र #शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रजापति तरंगें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती हैं । इस दिन सत्त्वगुण अत्यधिक मात्रा में #पृथ्वी पर आता है । यह दिन वर्ष के अन्य दिनों की तुलना में सर्वाधिक सात्त्विक होता है । प्रजापति #ब्रह्मा द्वारा तरंगे पृथ्वी पर आने से वनस्पति के अंकुरने की भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है । तो बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबों में नए झरने निकलते हैं । #चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन #धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं और पृथ्वी के पृष्ठभाग पर स्थित धर्मबिंदु के माध्यम से ग्रहण की जाती हैं । तत्पश्चात् आवश्यकता के अनुसार भूलोक के जीवों की दिशा में प्रक्षेपित की जाती हैं । इस दिन #भूलोक के वातावरण में रजकणों का प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवों का #क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक #चैतन्यदायी रहता है । भारतीयों के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन अत्यंत शुभ होता है । साढे तीन मुहूर्तों में से एक #मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढे तीन मुहूर्त होते हैं । इन साढे तीन #मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण #शुभमुहूर्त ही होता है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, #वरुणावतार संत #झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु #अंगददेवजी का #जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रकृति सर्वत्र माधुर्य #बिखेरने लगती है। भारतीय संस्कृति का यह नूतन वर्ष जीवन में नया उत्साह, नयी चेतना व नया आह्लाद जगाता है। वसंत #ऋतु का आगमन होने के साथ वातावरण समशीतोष्ण बन जाता है। सुप्तावस्था में पड़े जड़-चेतन तत्त्व गतिमान हो जाते हैं । नदियों में #स्वच्छ जल का संचार हो जाता है। आकाश नीले रंग की गहराइयों में चमकने लगता है। सूर्य-रश्मियों की प्रखरता से खड़ी फसलें परिपक्व होने लगती हैं । किसान नववर्ष एवं नयी फसल के स्वागत में जुट जाते हैं। #पेड़-पौधे नव पल्लव एवं रंग-बिरंगे फूलों के साथ लहराने लगते हैं। बौराये आम और कटहल नूतन संवत्सर के स्वागत में अपनी सुगन्ध बिखेरने लगते हैं । सुगन्धित वायु के #झकोरों से सारा वातावरण सुरभित हो उठता है । कोयल कूकने लगती हैं । चिड़ियाँ चहचहाने लगती हैं । इस सुहावने मौसम में #कृषिक्षेत्र सुंदर, #स्वर्णिम खेती से लहलहा उठता है । इस प्रकार #नूतन_वर्ष का प्रारम्भ आनंद-#उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता सुंदर भूमिका बना देती है । इस बाह्य #चैतन्यमय प्राकृतिक वातावरण का लाभ लेकर व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में भी उपवास द्वारा #शारीरिक #स्वास्थ्य-लाभ के साथ-साथ जागरण, नृत्य-कीर्तन आदि द्वारा भावनात्मक एवं आध्यात्मिक जागृति लाने हेतु नूतन वर्ष के प्रथम दिन से ही माँ आद्यशक्ति की उपासना का नवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है । नूतन वर्ष प्रारंभ की पावन वेला में हम सब एक-दूसरे को सत्संकल्प द्वारा पोषित करें कि ‘सूर्य का तेज, चंद्रमा का अमृत, माँ शारदा का ज्ञान, भगवान #शिवजी की #तपोनिष्ठा, माँ अम्बा का शत्रुदमन-सामर्थ्य व वात्सल्य, दधीचि ऋषि का त्याग, भगवान नारायण की समता, भगवान श्रीरामचंद्रजी की कर्तव्यनिष्ठा व मर्यादा, भगवान श्रीकृष्ण की नीति व #योग, #हनुमानजी का निःस्वार्थ सेवाभाव, नानकजी की #भगवन्नाम-निष्ठा, #पितामह भीष्म एवं महाराणा प्रताप की #प्रतिज्ञा, #गौमाता की सेवा तथा ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु का सत्संग-सान्निध्य व कृपावर्षा – यह सब आपको सुलभ हो । इस शुभ संकल्प द्वारा ‘#परस्परं #भावयन्तु की सद्भावना दृढ़ होगी और इसी से पारिवारिक व सामाजिक जीवन में #रामराज्य का अवतरण हो सकेगा, इस बात की ओर संकेत करता है यह ‘#राम राज्याभिषेक दिवस। अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए बधाई-पत्र लिखें, दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहरायें, #सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें, #मंदिरों आदि में #शंखध्वनि करके नववर्ष का स्वागत करें March 28, 2017Leave a reply Yuva Divas Program held in Raipur on 14th January 2 Votes 14 January YSS Raipur : Yuva Divas Program.  January 18, 2015Leave a reply भारत विश्व गुरु 1 Vote  भारत देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त है। आर्यावर्त के पूर्व इसका कोई नाम नहीं था। कहीं-कहीं जम्बूद्वीप का उल्लेख मिलता है। इसे पहले ‘अजनाभ खंड’ भी कहा जाता था। अजनाभ खंड का अर्थ ब्रह्मा की नाभि या नाभि से उत्पन्न। वृषभ देव के पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम “भारत” पड़ा | वेद-पुराण और अन्य धर्मग्रंथों के साथ वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि मनुष्य व अन्य जीव- जंतुओं की वर्तमान आदि सृष्टि (उत्पत्ति) हिमालय के आसपास की भूमि पर हुई थी जिसमें तिब्बत को इसलिए महत्व दिया गया क्योंकि यह दुनिया का सर्वाधिक ऊँचा पठार है। हिमालय के पास होने के कारण पूर्व में भारत वर्ष को हिमवर्ष भी कहा जाता था। वेद-पुराणों में तिब्बत को त्रिविष्टप कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे सिद्ध होता है कि इंद्र स्वर्ग में नहीं धरती पर ही हिमालय के इलाके में रहते थे। वहीं शिव और अन्य देवता भी रहते थे। पूर्व में यह धरती जल प्रलय के कारण जल से ढँक गई थी। कैलाश, गोरी-शंकर की चोटी तक पानी चढ़ गया था। इससे यह सिद्ध होता है कि संपूर्ण धरती ही जलमग्न हो गई थी, लेकिन विद्वानों में इस विषय को लेकर मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि कहीं-कहीं धरती जलमग्न नहीं हुई थी। पुराणों में उल्लेख भी है कि जलप्रलय के समय ओंकारेश्वर स्थित मार्कंडेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता रहा। कई माह तक वैवस्वत मनु (इन्हें श्रद्धादेव भी कहा जाता है) द्वारा नाव में ही गुजारने के बाद उनकी नाव गोरी-शंकर के शिखर से होते हुए नीचे उतरी। गोरी- शंकर जिसे एवरेस्ट की चोटी कहा जाता है। दुनिया में इससे ऊँचा, बर्फ से ढँका हुआ और ठोस पहाड़ दूसरा नहीं है। तिब्बत में धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि और वातावरण में तेजी से होते परिवर्तन के कारण वैवस्वत मनु की संतानों ने अलग-अलग भूमि की ओर रुख करना शुरू किया। विज्ञान मानता है कि पहले सभी द्वीप इकट्ठे थे। अर्थात अमेरिका द्वीप इधर अफ्रीका और उधर चीन तथा रूस से जुड़ा हुआ था। अफ्रीका भारत से जुड़ा हुआ था। धरती की घूर्णन गति और भू-गर्भीय परिवर्तन के कारण धरती द्वीपों में बँट गई। इस जुड़ी हुई धरती पर ही हिमालय की निम्न श्रेणियों को पार कर मनु की संतानें कम ऊँचाई वाले पहाड़ी विस्तारों में बसती गईं। फिर जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर घटता गया वे और भी मध्य भाग में आते गए। राजस्थान की रेगिस्तान इस बाद का सबूत है कि वहाँ पहले कभी समुद्र हुआ करता था। दक्षिण के इलाके तो जलप्रलय से जलमग्न ही थे। लेकिन बहुत काल के बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर घटा मनु का कुल पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मैदान और पहाड़ी देशों में फैल गए। जो हिमालय के इधर फैलते गए उन्होंने ही अखंड भारत की सम्पूर्ण भूमि को ब्रह्मावर्त, ब्रह्मार्षिदेश, मध्यदेश,आर्यावर्त एवं भारतवर्ष आदि नाम दिए। जो इधर आए वे सभी मनुष्य आर्य कहलाने लगे। आर्य एक गुणवाचक शब्द है जिसका सीधा-सा अर्थ है श्रेष्ठ। यही लोग साथ में वेद लेकर आए थे। इसी से यह धारणा प्रचलित हुई कि देवभूमि से वेद धरती पर उतरे। स्वर्ग से गंगा को उतारा गया आदि अनेक धारणाएँ। इन आर्यों के ही कई गुट अलग-अलग झुंडों में पूरी धरती पर फैल गए और वहाँ बस कर भाँति-भाँति के धर्म और संस्कृति आदि को जन्म दिया। मनु की संतानें ही आर्य-अनार्य में बँटकर धरती पर फैल गईं। पूर्व में यह सभी देव-दानव कहलाती थीं। इस धरती पर आज जो भी मनुष्य हैं वे सभी वैवस्वत मनु की ही संतानें हैं इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। यह अभी शोध का विषय है। भारतीय पुराणकार सृष्टि का इतिहास कल्प में और सृष्टि में मानव उत्पत्ति व उत्थान का इतिहास मवन्तरों में वर्णित करते हैं। और उसके पश्चात् मन्वन्तरों का इतिहास युग-युगान्तरों में बताते हैं। ‘प्राचीन ग्रन्थों में मानव इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है। (1). हमत् कल्प 1 लाख 9 हजार 8 सौ वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर 85800 वर्ष पूर्व तक, (2). हिरण्य गर्भ कल्प 85800 विक्रमीय पूर्व से 61800 वर्ष पूर्व तक, ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (3). ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (4). पाद्म कल्प 37800 विक्रम पूर्व से 13800 वर्ष पूर्व तक और (5). वराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर इस समय तक चल रहा है । अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत- मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से 5630 वर्ष पूर्व हुआ था।’–श्रीराम शर्मा आचार्य (गायत्री शक्ति पीठ) गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है। त्रिविष्टप अर्थात तिब्बत या देवलोक से वैवस्वत मनु के नेतृत्व में प्रथम पीढ़ी के मानवों (देवों) का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ। वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से पवित्र वेद पुस्तक भी साथ लाए थे। इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चलती रही। वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ। वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं। September 29, 2014Leave a reply Do you want this? 1 Vote  आज के दिन की अनंत महिमा सर्व मनोइच्छित पूर्ण कारक। सर्व पाप कर्मो को क्षय करने में समर्थ। त्रिमूर्ति विजय अमृतसिद्धि योग। जिनशासन में साधना,जाप आदि अनुष्ठानो का विशिष्ट महत्व बताया गया है ऐसा ही एक शुभ दिन आज है श्रावण सूद – १, तारीख – २७-७-२०१४, रविवार ७० साल बाद ऐसा शुभ दिन आ रहा है। ज्योतिष शास्त्र की नजर से महत्व – इस दिन सूर्य, चन्द्र, गुरु, पुष्य नक्षत्र और रविवार का मिलन हो रहा है। तमाम २७ नक्षत्र में पुष्य सब से शुभ और लाभदायी माना जाता है । गुरु पुष्य में १३ साल में एक बार आता है और वो भी कब किस महीने आये वो निश्चित नहीं होता, जब आता है तब गुरुवार या रविवार इन दो शुभ दिनों में कभी कभी ही आता है। लेकिन जब भी मिल जाये उस दिन की गई धर्माराधना बहोत ही फलदायी होती हे और हमारे सदनसीब से ऐसा शुभ दिन आज ही है तो इस दिन ज़्यादा से ज़्यादा धर्म क्रिया करे और मन्त्र जाप करे – विशेष महत्व : इस दिन जिसका जन्म होता हे वो युगपुरुष बन शकता है , इस योग में शुरू किये गए तमाम नये कार्य सफल बनते है , इस दिन किये गए जाप, अनुष्ठान, तप आदि सिद्ध होते है , इस दिन किया गया दान, गौ सेवा यात्रा आदि धर्मक्रिया से अनेक कर्मो का क्षय होता हे, इस दिन शादी विवाह आदि सांसारिक कार्य नहीं करने चाहिए तो इस महान योग का लाभ ले और ज़्यादा से ज़्यादा धर्म क्रिया करे। जिससे आपके कर्मो का क्षय हो और जीवन सुख शांति धर्ममय बने। सभी साधक भाई-बहेन ईस योग का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाये पूज्य बापूजी की शीघ्र रिहाई एवं स्वास्थ के लिए अधिक-अधिक जप-ध्यान द्रढ़ संकल्प करके करे। हो सके तो मौन और उपवास का भी लाभ ले के जप-ध्यान करे। जिसके मुख में गुरुमंत्र है उसके सब कर्म सिद्ध होते हैं, दूसरे के नहीं  Like · Reply · 4 hours ago July 27, 2014Leave a reply  There was an error retrieving images from Instagram. 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