२६, मार्च २०१७      Go  पाञ्चजन्य विशेष » संपादकीय » विशेष लेख » पाठकीय » साक्षात्कार » आवरण कथा » आज-कल Advertisment       चेतना का कैलास-शिखर हैं शिव तारीख: 15 Jun 2015 11:50:01  क्या आपने कभी सोचा है कि आपके क्रोध का एक क्षण ध्यान का द्वार बन सकता है? आपकी छींक, प्राण कंपा देने वाला भय, लम्बे समय बाद मित्र से मिलने पर होने वाला आनंद, कोई ध्वनि, कोई संवेदना चेतना की गहराई में गोता लगवा सकती है? आती-जाती सांस आपके और परमात्मा के बीच सेतु बन सकती है? कल्पना असली बेडि़यों को काट सकती है? एक प्राचीन ध्यान विधि को देखें- 'छींक के प्रारम्भ में, भय में, किसी खाई में झांकते हुए, युद्ध से भागते समय, अत्यंत विस्मय के क्षण, भूख के आरम्भ में और भूख के अंत में सतत् बोध को बनाए रखो।' यह एकदम से पल्ले न पड़े तो परेशान न हों। ये अध्यात्म का गोरखधंधा है। 'गोरखधंधा' शब्द हम सब ने सुना है। आप शब्दकोष में इसका अर्थ ढूंढिये। आप पाएंगे 'भूल-भुलैया, व्यामोह, अति गहन प्रदेश, उलझन, भंवरजाल' वगैरह। हमें भी जब कुछ पल्ले नहीं पड़ता तो हम भी कह देते हैं कि 'क्या गोरखधंधा है।' लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि गोरख कौन थे और उनका 'धंधा' क्या था? हममें से कितनों ने विज्ञान भैरव तंत्र का नाम सुना है? भारत के महान योगी गोरखनाथ और उनके द्वारा आविष्कृत 112 मूलभूत ध्यान विधियों को हम कैसे भूल गए? मानव के आंतरिक जगत की इस कुंजी को हमने अपने अतीत में कब गुम कर दिया? मानवता का ये विशाल प्रकाश स्तम्भ 'गोरखधंधा' बनकर रह गया। ये एक ऐसी मिसाल है जो बतलाती है कि अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को लेकर हमारे मस्तिष्क में कितना 'व्यामोह, उलझन और भंवरजाल' है। 'ध्यान' शब्द सुनते ही हमारे मन में क्या छवि उभरती है? क्या विचार पैदा होता है? दरअसल ध्यान को लेकर भी हमारी अपनी भ्रांतियां हैं। काफी हद तक उन्हें फंतासियां कहा जा सकता है। विज्ञान भैरव तंत्र इस कुहासे को चीरता सूर्य है। ये शिव और शक्ति का संवाद है। शक्ति शिव से पूछ रही हैं, 'हे शिव,आपका सत्य क्या है? आप कौन हो? विस्मय भरा ये विश्व क्या है? इसका बीज क्या है? विश्व चक्र की धुरी क्या है? रूपों पर छाए लेकिन रूप के परे ये जीवन क्या है? समय, स्थान और नाम के उस पार जो सत्य है उसको हम कैसे जानें? मेरे संशय निर्मूल करें।'ये विज्ञान भैरव तंत्र का प्रारम्भ है। ये बेहद अनोखा संवाद है। शक्ति शिव से जीवन और सृष्टि के रहस्यों के बारे में सवाल करती हैं और शिव हर प्रश्न के उत्तर में एक नयी ध्यान विधि बतलाते हैं। शिव का सन्देश स्पष्ट है कि किसी के दिए गए उत्तर पर क्यों आश्रित रहो, ध्यान में उतरो और स्वयं सत्य को जान लो। दूसरे शब्दों में, शक्ति पूछती हैं,'गुड़ क्या है?'और शिव अपने उत्तर में गुड़ की व्याख्या नहीं करते, वे गुड़ खाने का तरीका सिखलाते हैं। वे गुड़ तक पहुंचने का रास्ता बताते हैं। और कोई एक रास्ता नहीं बताते। वे तो हर प्रश्न की प्रति के हिसाब से हर बार एक नयी राह फोड़ते हैं। तंत्र शब्द सुनते ही हमारे मन में जादू-टोने-टोटके की छवि उभर आती है। भारत के आत्मविस्मृति के काल में, भ्रम और संघषोंर् से भरी उन सदियों में हमारे अंदर जिन बुराइयों ने घर कर लिया, उपरोक्त धारणा भी उन्हीं में से एक है। तंत्र का सीधा सा अर्थ होता है-विधि। यह 'फिलॉसफी' नहीं, दर्शन है। यह 'फिलॉसफी' नहीं, विज्ञान है। 'फिलॉसफी' यानी सोचा हुआ, दर्शन यानी देखा हुआ। अपने उत्तरों में शिव वह कह रहे हैं, जो उन्होंने स्वयं देखा है, इसलिए रास्ता दिखा सकते हैं। विज्ञान भैरव तंत्र ध्यानियों का ग्रन्थ है। ये ध्यानमार्ग पर चलने वालों की गीता है। जिस प्रकार गीता में अर्जुन पूछते जाते हैं और कृष्ण साधना के अलग अलग मागोंर्-कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग, प्रेम योग, राज योग इत्यादि की व्याख्या करते जाते हैं। उसी प्रकार इस ग्रंथ में शक्ति प्रश्न पूछती हैं और हर प्रश्न के उत्तर में शिव एक नयी ध्यान विधि बतलाते हैं। यह सिद्धांतवादियों का, विचारकों का ग्रंथ नहीं है। यह अध्यात्म का विशुद्ध व्यावहारिक रास्ता है, जिसे बोलचाल की भाषा में 'प्रैक्टिकल' कहा जाता है। यहां 'क्यों' के स्थान पर कैसे की 'चिंता' की गई है। शिव का साधकों को सन्देश है कि आत्मा क्या है, इस बहस में मत उलझो, अपने लिए एक ध्यान विधि का चयन करो और स्वयं ही जान लो। यहां चार्वाक और कबीर दोनों के लिए स्थान है। यहां बोधि वृक्ष के नीचे बैठे बुद्ध और वृन्दावन की गलियों में नाचती मीरा दोनों के दर्शन होते हैं। शंकर की प्रतिभा और रैदास की सरलता दोनों साथ मिलते हैं। इन एक सौ बारह विधियों में मानव चेतना के हर आयाम को स्पर्श किया गया है। ओशो कहते हैं, 'ये एक सौ बारह विधियां समस्त मानवजाति के लिए हैं। ये उन सभी युगों के लिए हैं जो गुजर गए हैं और जो आने वाले हैं। किसी भी युग में एक भी आदमी ऐसा नहीं हुआ और न होने वाला है जो कह सके कि ये सभी एक सौ बारह विधियां मेरे लिए व्यर्थ हैं। यह असंभव है।़ प्रत्येक ढंग के चित्त के लिए यहां गुंजाइश है। हर एक के लिए कोई विधि है।' ये विधियां मानव मन की सकारात्मकता और नकारात्मकता दोनों का उपयोग करती हैं। एक विधि कहती है-'भोजन और पान ( पेय ) से उत्पन्न उल्लास, रस और आनंद से पूर्णता की अवस्था की भावना भरें़, उससे महान आनंद होगा।' या 'अचानक किसी महान आनंद की प्राप्ति होने पर या लम्बे समय बाद बंधु-बांधव के मिलन से उत्पन्न होने वाले आनंद का ध्यान कर तल्लीन और तन्मय हो जाएं।' वहीं दूसरी ओर एक अन्य विधि कहती है, 'पूरी तरह निराश हो जाओ'। यहां जीवन के किसी आयाम के लिए नकार नहीं है। विज्ञान भैरव तंत्र हम जहां हैं, वहीं पर, जिस तल पर खड़े हैं, उसी तल पर चेतना की गहराई में उतरने का मार्ग बतलाता है। ये विधियां कहती हैं कि देह का उपयोग करके देह के पार चले जाओ। कल्पना का उपयोग करके जो कल्पना से भी परे है, उसे जान लो। विचारों का उपयोग कर के निर्विचार हो जाओ, और मन को अपना मित्र बनाकर मन को विसर्जित कर दो। कुछ विधियां श्वास पर आधारित हैं, कुछ विधियां देह पर आधारित हैं। कुछ विधियां हमारी कल्पना का उपयोग करती हैं। यहां पर हमारे मन के लिए स्थान है। हमारे स्वप्नों के लिए स्थान है। हमारे सोने और जागने के लिए स्थान है। ये विधियां बतलाती हैं कि आंखें भी अनंत चेतना का दर्शन करवा सकती हैं। कान सृष्टि में व्याप्त ओंकार के मर्मर को सुन सकते हैं। जीभ परम-ज्ञान को चखने में मदद कर सकती है। और नासिका भी परम सत्य तक पंहुचा सकती है। शर्त एक ही है, कि इनके पीछे जुड़ा जो हमारा मन है, उसको हम समझकर उसके पार चले जाएं। एक विधि है-'तीव्र कामना की मनोदशा में अनुद्विग्न रहो' अर्थात अपने क्रोध, वासना, विकार आदि के समय सजग हो जाओ। धीरे-धीरे अपने शांत केंद्र पर पहुंच जाओगे। तंत्र किसी भी चीज का निषेध नहीं करता। तंत्र नहीं कहता कि क्रोध मत करो। तंत्र कहता है कि क्रोध को उठने दो और उस दौरान मन और शरीर में जो कुछ घट रहा है उसे चुपचाप देखो, तुम अपनी ऊर्जा के केंद्र में पहुंच जाओगे। तंत्र आपको उपदेश नहीं देता कि 'डरो मत'। तंत्र कहता है कि अपने डर से लड़ो मत, उसे दबाओ मत, बहादुर बनने की कोशिश मत करो। भय में शरीर कांपता हो तो कांपने दो और जो कुछ हो रहा है उसे होश के साथ देखो। किसी विषय या व्यक्ति के बारे में हमारी पूर्व धारणा हमारे दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। दूसरे शब्दों में कहें कि हमारी कल्पना सत्य को ढक लेती है, क्योंकि कल्पना पूर्व के अनुभवों पर आधारित होती है। शिव का सन्देश है कि कल्पना का उपयोग करके उस तक पहुंच जाओ जहां कल्पना कभी नहीं पहुंच सकती। एक ध्यान सूत्र कहता है-'अपने शरीर, अस्थियों, मांस और रक्त को ब्रह्माण्डीय सार से भरा हुआ अनुभव करो।' एक अन्य सूत्र में कहा गया है कि 'कल्पना करो कि दाहिने अंगूठे से उठ रही अग्नि में तुम्हारा पूरा शरीर भस्म हो रहा है।' ये धारणा से धारणा को निर्मूल करने की युक्ति है। असीमित के सामने हमारा सीमित मन हथियार डाल देता है। गोरखनाथ की एक विधि कहती है-'किसी वृक्ष पहाड़ विहीन अनंत रूप से विस्तृत स्थान में रहो।' कुछ विधियां केवल स्त्रियों के लिए हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि स्त्री और पुरुष में कुछ मूलभूत अंतर हैं। स्त्री केंद्रित यह सूत्र कहता है-'अनुभव करो कि सृजन के शुद्ध गुण तुम्हारे स्तनों में प्रवेश करके सूक्ष्म रूप धारण कर रहे हैं।' तंत्र ने स्त्री और पुरुष को बहुत गहरे में तत्व के रूप में देखा है। विज्ञान भैरव तंत्र की संवाद रचना भी इसी तत्व चिंतन का दर्शन कराती है। इस संवाद में शक्ति पूछती हैं और शिव बतलाते हैं। ऐसा भी तो हो सकता था कि शिव पूछते और शक्ति बतलातीं। बात यह है कि शक्ति स्त्री हैं। स्त्री पुरुष से अधिक ग्रहणशील है, अधिक धैर्यवान है-ये साधक के लक्षण हैं। स्त्री अथवा शक्ति यहां पर खुले मन और स्वीकार्यता का प्रतीक हैं। शिव की अधांर्िगनी शक्ति समर्पण का प्रतीक हैं। इसीलिए ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही जब शक्ति पूछती हैं कि 'विश्व क्या है? इसका बीज क्या है?' तब अंत में जोड़ती हैं कि 'मेरे संशय निर्मूल करें।' ये समर्पण है। शक्ति यहां कह रही हैं कि मेरे प्रश्नों का उत्तर मात्र मत दीजिए। मेरे संदेह ही मिट जाएं, ऐसा उपाय कीजिए। क्योंकि हर जवाब नए सवाल पैदा करता है। इसलिए ऐसा उपाय कीजिये, ऐसा रास्ता बतलाइये कि सवाल ही समाप्त हो जाएं और ज्ञान प्रकट हो जाए। यहां शिव चेतना का कैलाश शिखर हैं तो पार्वती या शक्ति समर्पण की अथाह गहराई हैं। नींद और स्वप्न योगियों का प्रिय विषय रहे हैं। नींद वह समय है जब हमारा अचेतन मन पूर्ण रूप से सक्रिय होता है। जब हमारी आंख लगने लगती है तब एक क्षण आता है जब हम न तो जागे हुए होते हैं और न सोये हुए। ये संक्रमण का बिंदु है। ये हमारी चेतना के संक्रमण का बिंदु बन सकता है। ध्यान सूत्र कहता है-'जब नींद न आयी हो और बाह्य जागरण विदा हो गया हो, उस मध्य बिंदु पर बोधपूर्ण रहने से आत्मा प्रकाशित होती है।' हम सुबह उठकर आंखें मलते हैं। नींद भगाने के लिए। गोरखनाथ चेतना के जगत में जगाने के लिए कहते हैं-'आंख की पुतलियों को (अपनी हथेलियों से) पंख की भांति छूने से उनके बीच का हल्कापन ह्रदय में खुलता है और वहां ब्रह्माण्ड व्याप जाता है।' भारतीय मनीषा कहती है कि यदि हम तैयार हंै तो अवसर हर पल उपलब्ध है। शारीरिक पीड़ा भी ध्यान का अवसर बन सकती है। शिव कहते हैं कि शारीरिक पीड़ा पर एकाग्र करो। पीड़ा से लड़ो मत। उसे स्वीकार करो। लेकिन ये एकाएक सम्भव नहीं इसलिए एक अभ्यास बताते हैं-'अपने अमृत भरे शरीर के किसी अंग को सुई से भेदो और भद्रता के साथ उस भेदन में प्रवेश करो और आंतरिक शुद्धि को उपलब्ध हो जाओ।' कुछ विधियां श्वास पर आधारित हैं। जैसे कि श्वास पर ध्यान दें। सांस लेने और छोड़ने एवं छोड़ने और लेने के बीच एक हल्का सा विराम आता है। उस विराम पर जब सांस सेकंड के एक हिस्से में थमती है, उस पर ध्यान दें। सवाल उठ सकता है कि इतनी विधियां क्यों? विधियों की विविधता वास्तव में मानव की विविधता की ओर इंगित करती है। सत्य की खोज व्यक्तिगत होती है। हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है। इसलिए विधियों की विविधता हमारी आध्यात्मिक समृद्धि का ही प्रतीक है। ये मानव का ऐश्वर्य है। यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी हो सकता है। जो लोग इस बहस में उलझे हैं कि योग किसको करना चाहिए? मुस्लिमों अथवा ईसाइयों को करना चाहिए या नहीं, उनको सबसे पहले विज्ञान भैरव तंत्र के इस सूत्र को ध्यान से पड़ना चाहिए-'हर मनुष्य की चेतना को अपनी ही चेतना जानो। अत: आत्मचिन्ता को त्यागकर प्रत्येक प्राणी हो जाओ। यह चेतना ही प्रत्येक प्राणी के रूप में है, अन्य कुछ नहीं है।' ये मनुष्य के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का राजमार्ग है। सांस तो श्याम और सलीम दोनों ले रहे हैं न? गोरखनाथ उनसे सांस पर अपना अवधान टिकाने के लिए कह रहे हैं। वे दोनों से अपने भय, अपने क्रोध, अपनी वासनाओं के प्रति सजग होने को कह रहे हैं। यहां मानव मात्र को सम्बोधित किया गया है। चेतना के कैलाश शिखर से शिव सारी मानव जाति को पुकार रहे हैं। प्रशांत बाजपेई   प्रथम ५०० खबरे Terms of use Privacy Policy Image Gallery       Copyright © by Panchjanya All Right Reserved.
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