Friday, 4 August 2017

क्या है विज्ञान भैरव तंत्र

  क्या है विज्ञान भैरव तंत्र By: अमृत साधना भारतीय दर्शनों में एक दर्शन अद्भुत है- वह है रहस्यमय तंत्र मार्ग। यदि ओशो इसे उठाकर बीच बाजार स्थापित न करते तो यह विस्मृत ही रहता। इस तंत्र की शुरुआत ही प्रेम से होती है- शिव और पार्वती के अंतरंग संवाद के रूप में। प्रेम की गहराई में हर प्रेमी को यही लगता है कि अपने प्रिय के साथ बिल्कुल एकाकार हो जाए, कोई दूरी न रहे। अनुभूति की इस गहनता में पार्वती पूछती हैं, हे शिव! मैं आपको कैसे पाऊं? आप इतने विराट, अमूर्त, अगम्य हैं -आप तक पहुंचने का क्या उपाय है? शिव देवी को समझाते हैं कि आप मेरा जो बाह्य रूप देख रही हैं, वह मैं नहीं हूं। न तो मैं कोई वर्ण हूं, न नाद हूं, न शब्द हूं -मैं हूं वह शून्य फैलाव जो इस सृष्टि को घेरे हुए है। और मुझे खोजने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। जो दैनंदिन अनुभूतियां हैं -शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध की, आप इन्हीं में गहरे प्रवेश करें और आप मुझे पा लेंगी। इंद्रियों का निषेध नहीं, उन को स्वीकार करके, क्योंकि प्रत्येक इंद्रि द्वार है आत्मा का। इसके बाद शिव एक-एक इंद्रिय की अनुभूति को लेकर उसी को ध्यान की विधि में परिवर्तित करने का गुर बताते चले जाते हैं। जैसे, यदि आपका प्रियजन दीर्घकाल के बाद मिल रहा है और उसे देखकर आपको जो आनंद होता है, उस आनंद पर ध्यान करें, मित्र पर नहीं। क्योंकि जिसे आनंद हो रहा है वह आपके भीतर है। यदि आप सौंदर्य देख कर तरंगायित होते हैं तो शुभ है। उस सुंदरता को देखने और उसका रसास्वादन करने वाली आंखों द्वारा ध्यान करने की विधियां हैं, जो आपको तीसरी आंख की अनुभूति करा देंगी। मृत्यु से डर लगता है? कोई हर्ज नहीं, जहां-जहां मृत्यु है, उस पर ध्यान करिए और आप उनके पीछे छिपे हुए अमर्त्य को देख लेंगी। इस तरह शिव सांसारिक जीवन के एक-एक अनुभव को लेकर उसमें गहरे प्रवेश करने की विधियां बताते हैं। विज्ञान भैरव तंत्र में इस तरह कुल एक सौ बारह विधियां बताई गई हैं, जिन्हें पढ़ कर आश्चर्य होता है कि कितनी सुगमता से हम परम को पा सकते हैं। विज्ञान भैरव तंत्र का चिंतन आधुनिक मनोविज्ञान की खोज एनएलपी (न्यूरो लिंग्विस्टिक प्रोसेस) से मिलती-जुलती है। एनएलपी का मूल विचार यह है कि सभी की पांच इंद्रियों होती हैं, लेकिन हर व्यक्ति में उनमें से कोई एक इंद्रिय ज्यादा सक्रिय होती है। किसी की आंख अधिक तेज होती है तो किसी के कान। कोई स्पर्श के प्रति अधिक संवेदनशील होता है, तो कोई स्वाद के प्रति। जिस व्यक्ति की जो इंद्रिय अधिक संवेदनशील या जाग्रत होती है, उससे संबंधित अभिव्यक्ति का उपयोग कर उसे कोई बात जल्दी समझाई जा सकती है। इस तकनीक का प्रयोग सम्मोहन शास्त्र में भी किया जाता है। उदाहरण के लिए कोई आंख प्रधान व्यक्ति पहाड़ों में घूमकर आएगा तो वह बताएगा कि 'वहां का नजारा इतना खूबसूरत था, चारों ओर हरियाली छायी थी और आसमान का गहरा नीला रंग आंखों को बड़ा सुकून देता था। दूर-दूर तक खिले रंगबिरंगे फूल पूरे परिवेश को सजा रहे थे।' इस आदमी ने पूरा अनुभव और आनंद आंखों के माध्यम से लिया। वहीं श्रवण के प्रति संवेदनशील व्यक्ति कहेगा, 'शोरगुल से ऊबे मन को वहां का सन्नाटा बहुत राहत देता था। हवा की सरसराहट, पक्षियों की चहचहाहट और नदियों की कल-कल ध्वनि पूरे परिवेश को संगीतमय बना रही थी।' ये दोनों व्यक्ति एक ही स्थान का विवरण दे रहे हैं, लेकिन उनका नजरिया बिल्कुल अलग है। इंद्रियां अनुभव का द्वार हैं, इसलिए उनका उचित सम्मान कर ही कोई मनुष्य विभिन्न अनुभवों में प्रवेश कर सकता है। तंत्र के चिंतन में और अन्य आध्यात्मिक दर्शनों में फर्क यह है कि अन्य दर्शन इंद्रियों का दमन सिखाते हैं, और तंत्र इंद्रिय जनित अनुभवों में गहरे उतरना सिखाते हैं। इसका अंत अत्यंत हृदयस्पर्शी है। इन ध्यान विधियों को समझने के बाद अंतत: पार्वती शिव का आलिंगन करती हैं। इसके बाद उनका द्वैत शेष नहीं रहता, दोनों एकाकार यानी अर्धनारीश्वर हो जाते हैं। Share     Recommended section मनुष्य को ही नवीन कर्म करने की स्वतंत्रता है .. उन्नति का मूल मंत्र! ज्योतिष का ज्ञान – भ्रम या विज्ञान? ना ऐसा प्रणाम उचित है, ना ऐसी प्रशंसा! सफलता का अचूक मंत्र हैं 7 दिनों की ये सात ऊर्जाएं Popular section  पेट होगा अंदर, कमर होगी छरहरी अगर अपनायेंगे ये सिंपल नुस्खे  किन्नरों की शव यात्रा के बारे मे जानकर हैरान हो जायेंगे आप  एक ऋषि की रहस्यमय कहानी जिसने किसी स्त्री को नहीं देखा  कामशास्त्र के अनुसार अगर आपकी पत्नी में हैं ये 11 लक्षण तो आप वाकई सौभाग्यशाली हैं  ये चार राशियां होती हैं सबसे ताकतवर, बचके रहना चाहिए इनसे Go to hindi.speakingtree.in

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