मुख्य पृष्ठ परिचय पूर्वांक अन्य प्रकाशन उपक्रम पाठक बने लेखक संपर्क  Search  ध्यानियों का महान ग्रंथ विज्ञान भैरव तंत्र स्रोत: विवेक हिन्दी17-Jun-2015  सा. विवेक  ***प्रशांत बाजपेई*** ध्यानयोग के बारे में चर्चाएं तो बहुत हैं , लेकिन इसके बारे में विस्तार से समझने का अवसर बहुत कम ही मिलता है| फिर अनेक भ्रांतियां भी फ़ैली हुई हैं| महान योगी सद्गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित विज्ञान भैरव तंत्र हमें वास्तविक ध्यान में उतरने के लिए पूरा आकाश उपलब्ध करवाता है| इसका विस्तार ही ध्यान सम्बंधित अनेक भ्रांतियों को दूर कर देता है| विज्ञान भैरव तंत्र के रहस्य में प्रवेश करवाता यह लेख पाठकों के लिए प्रस्तुत है| शक्ति शिव से पूछ रही हैं कि ‘हे शिव,आपका सत्य क्या है? आप कौन हैं? विस्मय भरा ये विश्व क्या है? इसका बीज क्या है? विश्व चक्र की धुरी क्या है? रूपों पर छाया लेकिन रूप के परे यह जीवन क्या है? समय, स्थान और नाम के उस पार जो सत्य है उसको हम कैसे जानें? मेरे संशय निर्मूल करें|’ - ये विज्ञान भैरव तंत्र का प्रारम्भ है| ये शिव और शक्ति के बीच का संवाद है| शक्ति पूछती जाती हैं , शिव बतलाते जाते हैं| परन्तु शिव के उत्तर हमारी सामान्य अपेक्षाओं अथवा पूर्वग्रहों से अलग हैं| बिलकुल सरल शब्दों में कहें, तो शक्ति पूछती हैं कि ‘गुड़ क्या है?’ और शिव अपने उत्तर में गुड़ की व्याख्या नहीं करते| वे गुड़ तक पहुंचने का रास्ता बताते हैं| और कोई एक रास्ता नहीं बताते| वो तो हर प्रश्न की प्रकृति के हिसाब से हर बार एक नई राह सृजित करते हैं| अध्यात्म पथ का राही जहां चलता है वहीं राह बनती है| विज्ञान भैरव तंत्र ध्यानियों का ग्रंथ है| ये ध्यान मार्ग पर चलने वालों की गीता है| जिस प्रकार गीता में अर्जुन पूछते जाते हैं और कृष्ण साधना के अलग अलग मार्गों- कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग, प्रेम योग, राज योग इत्यादि की व्याख्या करते जाते हैं, उसी प्रकार इस ग्रंथ में शक्ति प्रश्न पूछती हैं और हर प्रश्न के उत्तर में शिव एक नई ध्यान विधि बतलाते हैं| यह सिद्धांतवादियों का, विचारकों का ग्रंथ नहीं है| यह अध्यात्म का विशुद्ध व्यावहारिक रास्ता है, जिसे बोलचाल की भाषा में ‘प्रैक्टिकल’ कहा जाता है| यहां ‘क्यों’ के स्थान पर ‘कैसे’ की चिंता की गई है| शिव का संदेश है कि आत्मा क्या है, इस बहस में मत उलझिए, अपने लिए एक ध्यान विधि का चयन कीजिये और स्वयं ही जान लीजिये| शास्त्रों के आधार पर ज्ञान की चर्चाएं मत कीजिए, बल्कि व्यावहारिकता के मार्ग पर चलते हुए ज्ञान को उपलब्ध हो जाइए| यही है विज्ञान भैरव तंत्र| जैसी कि आम धारणा है, तंत्र शब्द सुनते ही हमारे मन में जादू- टोने -टोटके की छवि उभर आती है| भारत के आत्मविस्मृति के काल में, भ्रम और संघर्षों से भरी उन सदियों में, हमारे अंदर जिन बुराइयों ने घर कर लिया, उपरोक्त धारणा भी उन्हीं में से एक है| तंत्र का सीधा सा अर्थ होता है-विधि| यह फिलॉसफी नहीं, दर्शन है| यह फिलॉसफी नहीं, विज्ञान है| फिलॉसफी यानी सोचा हुआ, दर्शन यानी देखा हुआ| अपने उत्तरों में शिव वो कह रहे हैं, जो उन्होंने स्वयं देखा है| वो चेतना के कैलाश पर बैठे हैं, इसलिए उसका रास्ता दिखा सकते हैं| ध्यान शब्द को लेकर भी हमारी कई फंतासियां हैं| बहुधा इसका अर्थ एकाग्रता से लिया जाता है| सामान्य सोच है कि आंख बंद करके कुछ विशेष प्रकार की कल्पनाएं करने को ध्यान कहते हैं| विज्ञान भैरव तंत्र बतलाता है कि ध्यान आपके आग्रहों और पूर्वग्रहों से परे है| जैसा कि कबीर कहते हैं - कबीरा खड़ा बजार में, लिए लुकाठी हाथ, जो घर बारै आपनो, चलै हमारे साथ|’ विज्ञान भैरव तंत्र आपके आग्रहों और पूर्वग्रहों को जलाने की बात करता है| इस अद्भुत ग्रंथ में वर्णित ११२ ध्यान विधियां, हम जहां हैं, वहीं पर, जिस तल पर खड़े हैं, उसी तल पर चेतना की गहराई में उतरने का मार्ग बतलाती हैं| ये विधियां कहती हैं कि देह का उपयोग करके देह के पार चले जाओ| कल्पना का उपयोग करके जो कल्पना से भी परे है, उसे जान लो| विचारों का उपयोग कर के निर्विचार हो जाओ, और मन को अपना मित्र बनाकर मन को विसर्जित कर दो| कुछ विधियां श्वास पर आधारित हैं, कुछ विधियां देह पर आधारित हैं| कुछ विधियां हमारी कल्पना का उपयोग करती हैं| यहां पर हमारे मन के लिए स्थान है| हमारे स्वप्नों के लिए स्थान है| हमारे सोने और जागने के लिए स्थान है| ये विधियां बतलाती हैं कि आंखें भी अनंत चेतना का दर्शन करवा सकती हैं| कान सृष्टि में व्याप्त ओंकार के मर्म को सुन सकते हैं| जीभ परम ज्ञान को चखने में मदद कर सकती है| और नासिका भी परम सत्य तक पहुंचा सकती है| शर्त एक ही है, कि इनके पीछे जुड़ा जो हमारा मन है, उसको हम समझ कर उसके पार चले जाएं| तंत्र हमारे अस्तित्व से जुड़ी हर चीज का उपयोग करना जानता है| कामना, भय, क्रोध - सबका| इसीलिए कुछ विधियां इतनी सहज हैं कि अधिकांश लोगों को ये कोई मज़ाक लगेगा| उदाहरण के लिए एक विधि में शिव कहते हैं- ‘जब छींक आने वाली हो, जब तुम डरे हुए हो, किसी खाई में झांक रहे हो, युद्ध से भाग रहे हो, बहुत गहरे कौतुहल में हो, भूख के आरम्भ में और भूख के अंत में सतत बोध को बनाए रखो|’ तंत्र किसी भी चीज का निषेध नहीं करता| तंत्र नहीं कहता कि क्रोध मत करो| तंत्र कहता है कि क्रोध को उठने दो और उस दौरान मन और शरीर में जो कुछ घट रहा है उसे चुपचाप देखो और तुम अपनी ऊर्जा के केंद्र में पहुंच जाओगे| तंत्र आपको उपदेश नहीं देता कि ‘डरो मत|’ तंत्र कहता है कि अपने डर से लड़ो मत, उसे दबाओ मत, बहादुर बनने की कोशिश मत करो| भय में शरीर कांपता हो तो कांपने दो और जो कुछ हो रहा है उसे होश के साथ देखो| शिव आपकी कल्पना को भी पूरा आकाश देते हैं| एक विधि कहती है-‘अपने शरीर, अस्थियां , मांस और रक्त को ब्रह्माण्डीय सार से भरा हुआ अनुभव करो|’ एक अन्य सूत्र में कहा गया है कि ‘कल्पना करो कि दाहिने अंगूठे से उठ रही अग्नि में तुम्हारा पूरा शरीर भस्म हो रहा है|’ कुछ विधियां केवल स्त्रियों के लिए हैं| यह स्वाभाविक भी है क्योंकि स्त्री और पुरुष में कुछ मूलभूत अंतर है| स्त्री केंद्रित यह सूत्र कहता है-‘अनुभव करो कि सृजन के शुद्ध गुण तुम्हारे स्तनों में प्रवेश करके सूक्ष्म रूप धारण कर रहे हैं|’ तंत्र ने स्त्री और पुरुष को बहुत गहरे में तत्व के रूप में देखा है| विज्ञान भैरव तंत्र की संवाद रचना भी इसी तत्व चिंतन का दर्शन कराती है| इस संवाद में शक्ति पूछती हैं और शिव बतलाते हैं| ऐसा भी तो हो सकता था कि शिव पूछते और शक्ति बतलाती| इसके पीछे कुछ तो बात होगी| बात यह है कि शक्ति स्त्री हैं| स्त्री पुरुष से अधिक ग्रहणशील हैं, अधिक धैर्यवान है- ये साधक के लक्षण हैं| स्त्री अथवा शक्ति यहां पर खुले मन और स्वीकार्यता का प्रतीक है| शिव की अर्धांगिनी शक्ति समर्पण का प्रतीक हैं| इसीलिए ग्रंथ के प्रारम्भ में ही जब शक्ति पूछती हैं कि ‘विश्व क्या है? इसका बीज क्या है?’ तब अंत में जोड़ती हैं कि ‘मेरे संशय निर्मूल करें|’ ये समर्पण है| शक्ति यहां कह रही हैं कि मेरे प्रश्नों का उत्तर मात्र मत दीजिए| मेरे संदेह ही मिट जाएं, ऐसा उपाय कीजिए| क्योंकि हर जवाब नए सवाल पैदा करता है| इसलिए ऐसा उपाय कीजिये, ऐसा रास्ता बतलाइये कि सवाल ही समाप्त हो जाएं और ज्ञान प्रकट हो जाए| यहां शिव चेतना का शिखर हैं तो पार्वती या शक्ति समर्पण की अथाह गहराई है| एक सवाल उठ सकता है कि इतनी विधियां क्यों? विधियों की विविधता वास्तव में मानव की विविधता की ओर इंगित करती है| सत्य की खोज व्यक्तिगत होती है| और हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है| आपको अपने लिए एक विधि चुननी होगी, चुनने के लिए एक एक विधि को लेकर प्रयोग करना होगा| आखिर ये ‘विज्ञान’ भैरव तंत्र है| ये विधियां आध्यात्मिक जगत का महासूर्य हैं| संसार की सारी ध्यान विधियां इस में समाहित हैं| इसके रचयिता ऋषि गोरखनाथ ने अपना नाम छिपा लिया है| वो वहां खड़े होकर बात कर रहे हैं जहां व्यक्तित्व गल जाता है और केवल शिवत्व शेष रहता है| योगी मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ मानव के मन का अध्ययन करते रहे और नित नई ध्यान विधियों का आविष्कार करते रहे| उनकी इस कृपा से साधना मार्ग पर निरंतर चलने वाले साधक तो धन्य हुए, लेकिन जिन्होंने उन विधियों का अभ्यास करने के स्थान पर बौद्धिक खुजली मिटाने मात्र तक स्वयं को सीमित रखा, उनके लिए गोरखनाथ एक पहेली बन गए| और इसलिए आज भी जब कहीं बुद्धि उलझ जाती है तो हम भी कह पड़ते हैं कि ‘क्या गोरखधंधा है|’ मो. : ९४७९८४५१५२  अन्य खबरें  पर्यावरण और अविष्कार  रोहा इंडस्ट्रियल एसोसिएशन  विद्यालय ,ग्राम मौसम वेदशाला  भगवान महावीर ने दी थी ग्लोबल वार्मिंग चेतावनी  दो महान विभूतियाँ विवेकानंद और सावरकर  आबा साहब पटवारी कार्यमग्नता ही जीवन हो  वेंचर्स की उड़ान  मुख्य पृष्ठ परिचय पूर्वांक अन्य प्रकाशन उपक्रम पाठक बने संपर्क © 2016 सर्वाधिकार सुरक्षित भारती वेब द्वारा संचालित
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