Monday, 28 August 2017

जनमेजय

मुख्य मेनू खोलें  खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखेंकिसी अन्य भाषा में पढ़ें जनमेजय यह लेख महाभारत के पात्र के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु, जनमेजय ३ देखें। जनमेजय महाभारत के अनुसार कुरुवंश का राजा था। महाभारत युद्ध में अर्जुनपुत्र अभिमन्यु जिस समय मारा गया, उसकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। उसके गर्भ से राजा परीक्षित का जन्म हुआ जो महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठा। जनमेजय इसी परीक्षित तथा मद्रावती का पुत्र था। महाभारत के अनुसार (१.९५.८५) मद्रावती उनकी जननी थीं, किन्तु भगवत् पुराण के अनुसार (१.१६.२), उनकी माता ईरावती थीं, जो कि उत्तर की पुत्री थीं।[1] जनमेजय  पिता परीक्षित महाभारत के संदर्भ में संपादित करें  जनमेजय और उनके भाई महाभारत में जनमेजय के छः और भाई बताये गये हैं। यह भाई हैं कक्षसेन, उग्रसेन, चित्रसेन, इन्द्रसेन, सुषेण तथा नख्यसेन।[2] महाकाव्य के आरम्भ के पर्वों में जनमेजय की तक्षशिला तथा सर्पराज तक्षक के ऊपर विजय के प्रसंग हैं। सम्राट जनमेजय अपने पिता परीक्षित की मृत्यु के पश्चात् हस्तिनापुर की राजगद्दी पर विराजमान हुये। पौराणिक कथा के अनुसार परीक्षित पाण्डु के एकमात्र वंशज थे। उनको शमीक ऋषि ने शाप दिया था कि वह सर्पदंश से मृत्यु को प्राप्त होंगे। ऐसा ही हुआ और सर्पराज तक्षक के ही कारण यह सम्भव हुआ। जनमेजय इस प्रकरण से बहुत आहत हुये। उन्होंने सारे सर्पवंश का समूल नाश करने का निश्चय किया। इसी उद्देश्य से उन्होंने सर्प सत्र या सर्प यज्ञ के आयोजन का निश्चय किया। यह यज्ञ इतना भयंकर था कि विश्व के सारे सर्पों का महाविनाश होने लगा। उस समय एक बाल ऋषि अस्तिक उस यज्ञ परिसर में आये। उनकी माता मानसा एक नाग थीं तथा उनके पिता एक ब्राह्मण थे। इस संदर्भ में यह बताना उचित होगा कि कुछ जातियों ने तो उनके रीति-रिवाज़ स्वीकार कर लिए किन्तु कुछ ने इससे साफ़ इनकार कर दिया। इन जन-जातियों को आर्य पृथक-पृथक नाम दे देते थे और क्योंकि उस युग में उनकी प्रभुता थी, इस कारण से उनके द्वारा लिखे या बोले गये ग्रन्थों में यही नाम आज भी उजागर होते हैं। आर्यों ने ऐसी जन-जातियों को, जो उनके वश में न आ सके ऐसे नाम दे डाले जिनसे वह स्वयं भयभीत होते हों। उदाहरण के लिए नाग, असुर, दानव इत्यादि। तो यदि जनमेजय नाग वंश का समूल नाश करने जा रहे थे, तो उसका अभिप्राय यह है कि आर्यों की दृष्टि में भारत की कोई जन-जाति, जो उनके वश में नहीं थी या जिसने उनका धर्म स्वीकारा नहीं था और जिसका उन्होंने नाग से नामकरण कर दिया था, उस जन-जाति का विनाश होने जा रहा था। अस्तिक के आग्रह के कारण जनमेजय ने सर्प सत्र या यज्ञ समाप्त कर दिया। तब वेद व्यास के सबसे प्रिय शिष्य वैशम्पायन वहाँ पधारे। जनमेजय ने उनसे अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी लेनी चाही। तब ऋषि वैशम्पायन ने जनमेजय को भरत से लेकर कुरुक्षेत्र युद्ध तक कुरु वंश का सारा वृत्तांत सुनाया। और इसे उग्रश्रव सौती ने भी सुना और नैमिषारण्य में जाकर सारे ऋषि समूह, जिनके प्रमुख शौनक ऋषि थे, को सुनाया। इन्हें भी देखें संपादित करें महाभारत सन्दर्भ संपादित करें ↑ Raychaudhuri, H.C. (1972). Political History of Ancient India: From the Accession of Parikshit to the Extinction of the Gupta Dynasty. University of Calcutta. ↑ University of Calcutta (Dept. of Letters), सं (1923). Journal of the Department of Letters. Last edited 8 days ago by Hindustanilanguage RELATED PAGES परीक्षित जन्‍मेजय तक्षक  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

No comments:

Post a Comment