Tuesday, 29 August 2017

आर्यावर्त में अंबावती नाम का राज्य था। वहां पर राजा गंधर्व सेन रहते थे।

 1 ट्रेंडिंग देश बॉलीवुड वीडियो नो फेक न्यूज़ जीवन मंत्र स्पोर्ट्स क्विज़ नया विदेश खबरें जरा हटके गैजेट्स मूवी रिव्यु ऑटो हेल्थ खाना खज़ाना Advertisement  एक राजा को मिला अजीब सिंहासन, जो करता था बातें... Mar 07,2015 02:05:00 PM IST  भारत की धरती पर कई ऐसी जगह है, जिन्हें उनकी पवित्रता के लिए जाना जाता है। काशी, मथुरा, हरिद्वार, हिमाचल, उज्जैन आदि ऐसे स्थान है, जहां कि ज़मीन पर पैर रखना ही हमारे धर्म ग्रंथों में पुण्य देने वाला माना गया है। इनमें से भी उज्जैन, जिसे प्राचीन समय में अवंतिका या उज्जैनी कहा जाता था, तीर्थों में सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है। लगभग 2100 वर्ष पहले अवंतिका नगरी (वर्तमान में मध्यप्रदेश का उज्जैन शहर) पर राजा विक्रमादित्य का शासन था। विक्रमादित्य को उनकी न्यायप्रियता और सयंम जैसे गुणों के लिए आज भी जाना जाता है। कहा जाता है कि विक्रमादित्य के शासनकाल के 1100 वर्ष बाद अवंतिका पर राजा भोज का शासन हुआ। इन्हीं दोनों राजाओं से जुड़ी एक अनूठी रचना मिलती है जिसका नाम है सिंहासन बत्तीसी। दैनिक भास्कर डॉट काॅम के जीवनमंत्र जूनियर पर हम आपके लिए लाए हैं सिंहासन बत्तीसी की शिक्षाप्रद रोचक कहानियों की एक श्रृंखला। आइए जानते हैं सिंहासन बत्तीसी की कहानियों को.... क्या है सिंहासन बत्तीसी सिंहासन बत्तीसी राजा भोज के समय की एक रचना है। जिसमें राजा विक्रमादित्य के सिंहासन की बत्तीस पुतलियों द्वारा राजा भोज को सुनाई गई कहानियां हैं। ये कहानियां विक्रमादित्य की बुद्धिमता और न्ययाप्रियता से जुड़ी हैं। राजा भोज व बत्तीस पुतलियों वाला सिंहासन कहते हैं प्राचीन समय में राजा भोज राज करते थे। वो बहुत न्यायप्रिय, नीति-निपुण और धर्मपरायण राजा थे। उनके राज्य में एक बृजभान नाम का चरवाहा रहता था। उसका पुत्र चंद्रभान जो कि देखने में बहुत ही मूर्ख दिखाई पड़ता था, उसने अपने पिता का काम संभाल लिया। वह गायों को चराने जंगल जाने लगा। एक दिन जंगल में यहां-वहां बहुत से टीले थे। उनमें से एक सबसे ऊंचे टीले पर जाकर बैठ गया। उस टीले पर बैठते ही उसमें अचानक ज्ञान का संचार हुआ। उसी समय चंद्रभान ने देखा कि दो लोग आपस में झगड़ रहे हैं। उसने दोनों को अपने पास बुलाया और चुटकियों में उन दोनों की समस्या हल कर दी। इसके बाद तो चंद्रभान के पास एक से बढ़कर एक मामले आने लगा। होते-होते चंद्रभान के न्याय की चर्चा राजा भोज तक जा पहुंची। राजा भोज ने उस चरवाहे चंद्रभान को बुलवाया और उससे पूछा कि वह यह न्याय किस तरह करता है। साथ ही, उससे यह भी कहा कि आप इतने ज्ञानी हैं तो हम आपको राज दरबार में शामिल करना चाहते हैं। यह सुनकर चरवाहा घबरा गया। उसने टीले की सारी सच्चाई राजा को बता दी। उसके बाद राजा भोज उस टीले पर पहुंचे। वहां पहुंचकर जब वे टीले पर चढ़े तो उन्हें कुछ चमकता सा दिखाई दिया। उन्होंने ने उस टीले की खुदाई करवाई तो एक दिव्य सिंहासन निकला। जिसमें चारों तरफ 32 पुतलियां बनी थी। राजा जैसे ही उस सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़े तो जैसे चमत्कार हो गया। बत्तीस पुतलियां हंस पड़ीं। फिर उनमें से एक पुतली राजा से बोली- राजन आप इस सिंहासन पर नहीं बैठ सकते। रत्न मंजरी की कहानी सिंहासन में जड़ी पुतलियों को जीवित होते देख राजा भोज को बहुत आश्चर्य हुआ। फिर वे सिंहासन पर बैठने से रोकने वाली पुतली से बोले- देवी मैं इस सिंहासन पर क्यों नहीं बैठ सकता अौर कृपा करके ये भी बताएं कि आप कौन हैं। वह पुतली बोली- राजन् मेरा नाम रत्नमंजरी है। मेरा परिचय आपको आगे मिलेगा। अब रही बात सिंहासन की तो यह सिंहासन महाराजा विक्रमादित्य का है। यदि आप महाराजा विक्रमादित्य की तरह तेजस्वी, बुद्धिमान और बलवान हैं तो जरूर इस सिंहासन पर बैठ सकते हैं, वरना नहीं। राजा भोज बोले यह निर्णय मैं कैसे कर सकता हूं देवी। तब वह पुतली बोली ठीक है। मैं आपको एक कहानी सुनाती हूं, उसके आधार पर आप खुद को परखिए। कहानी इस तरह है बहुत समय पहले आर्यावर्त में अंबावती नाम का राज्य था। वहां पर राजा गंधर्व सेन रहते थे। उनके ब्रह्मजीत, शंख, विक्रमादित्य, भतृहरि, चंद्र और धनवंतरि नाम के छ: पुत्र थे। युवा होने पर राजकुमार शंख ने धोखे से अपने पिता की हत्या कर दी और खुद राजा बन गया। बड़े बेटे ब्रह्मजीत की पहले ही मृत्यु हो गई थी। राजगद्दी पर बैठते ही शंख, भतृहरी, चंद्र आैर धनवंतरि को मरवा डाला, लेकिन विक्रमादित्य शंख के षडयंत्र को समझ गया था। इसलिए वह चुपचाप वहां से निकल गया। शंख विक्रमादित्य को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहा था। इसलिए उसने विक्रमादित्य की खोज में चारों ओर गुप्तचर फैला दिए। बहुत समय बाद शंख को पता चला कि घने जंगल में विक्रमादित्य कुटिया बनाकर रह रहा है। उसने योगाभ्यास और जप-तप से अपने शरीर को सशक्त आैर मजबूत बना लिया है। राजा शंख ने योजना बनाकर एक तांत्रि को विक्रमादित्य के पास भेजा। योजना के अनुसार विक्रमादित्य को काली देवी की साधना के लिए तैयार करना था। जब विक्रमादित्य तांत्रिक के बोलने पर तैयार हो गया तो विक्रमादित्य ने पहले उसे सिर झुकाने को कहा, राजा शंख ने गलती से तांत्रिक पर हमला कर दिया। उसी समय राजा विक्रमादित्य ने बिना समय गवाए शंख से तलवार छीन ली और एक ही वार से शंख को गिरा दिया। इस प्रकार अपने पिता और भाईयों के हत्यारे शंख का वध कर विक्रमादित्य के अन्याय का अंत कर दिया। उसके बाद प्रजा ने विक्रमादित्य से फिर अपना राज्य संभालने का आग्रह किया।  RECOMMENDED FB पर लालू से ज्यादा फेमस है ये लड़की, राम रहीम की सजा पर कही ये बात Bihar रूठी पत्नी को मनाने ससुराल पहुंचा पति, हाथ-पैर बांध किया ऐसा हाल Uttar Pradesh Play QuizImage Puzzle: दी गयी फोटो में, कितने चेहरे आपको नजर आ रहे है? 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