[ मूंगा रत्न ]
यह मंगल का रत्न है। अंग्रेजी भाषा में इसे कोरल कहते हैं । यह समुद्र में वनस्पति के रूप में पाया जाता है। लता के समान होने के कारण प्राचीन काल में इसे लतामणि भी कहते थे।
इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि कई सौ साल पहले ही फ्रांसीसियों ने मूंगा निकालने का काम शुरू कर दिया था। इसके बाद १८वीं शताब्दी में इटली में भी यह व्यापार के रूप में निकाला व बेचा जाने लगा।
मूंगा रत्न की प्राकृतिक उपलब्धता
मोती की तरह यह भी समुद्र में ही पाया जाता है। प्राकृतिक रूप से यह जितनी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है उतनी ही तेजी से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है।
वास्तव में समुद्र में मूंगा का निर्माण एक विशेष प्रकार के जन्तुओं द्वारा किया जाता है। ये जन्तु अपने रहने के लिए स्वयं लाल रंग का लसलसा पदार्थ निकालते हैं और मूंगे की बड़ी-बड़ी कालोनी बनाते हैं। इसे अंग्रेजी में ‘कोरल रीफ’ कहते हैं।
मूंगा रत्न के गुण
यह चमकदार रत्न होता है और बहुत चिकना होता है। धनत्व अधिक होने के कारण इसका औसत वजन भी अधिक होता है। मंगल का रत्न प्रकाश पड़ने पर सिंदूरी रंग की आभा प्रकट करता है।
ज्योतिषीय तथ्य
मंगल ग्रह धैर्य, पराक्रम साहस, शत्रुपक्ष, शक्ति, क्रोध एवं हठवादिता का प्रतीक है। प्रकाश के सात रंगों में यह पीले एवं लाल तथा कुछ हद तक नारंगी रंगों का प्रतिनिधित्व करता है। मेरे विचार से यह केवल लाल रंग को ही स्पेक्ट्म में प्रदर्शित करता है। मंगल ग्रह का रत्न मूंगा है। मूंगा ताप का कुचालक है। इसमें मुख्य रूप से कैल्शियम कार्बोनेट होता है।
मूंगे की पहचान
विद्वानों के कथानुसार यदि रक्त में मूंगा रख दिया जाये तो मूंगे के चारों ओर गाढ़ा खून जमा हो जाता है। पहनने वाला मूंगा टेढ़ा मेढ़ा, कटा, चिटका, गड्ढेवाला धब्बों से युक्त या धूमिल नहीं होना चाहिए। यदि खून जैसे लाल रंग का निर्दोष मूंगा पहना जाये तो ज्यादा उत्तम है।
मूंगा रत्न द्वारा उपचार
कुछ विद्वानों का मत हैं कि मूंगा रत्न रश्मिमंडल से केवल मंगल की रश्मियों को सोखता है। मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं। जिसके लिए निम्नलिखित वैज्ञानिक कारण है।
मूंगा ताप का कुचालक तथा अपारदर्शी होता है। इसका उपरी तल यदि चिकना हो तो प्रकाश की किरणें इस पर पड़कर परावर्तित होंगी न कि आवर्तित जैसा कि नीलम, पुखराज में होता है।
अतः मूंगे द्वारा मंगल ग्रह की रश्मियां शरीर में पहुंचने के बजाय परावर्तित होती हैं। हां! वह बात और है कि मूंगे के तत्व शरीर की त्वचा को छूकर रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं। साथ ही लाल रंग आंखों के लिये हानिकारक माना गया है अतः मूंगा पहनने से मूंगा धारण करने वाले व्यक्ति के सामने जो व्यक्ति होगा उस पर मंगल की लाल रंग की किरणें परिवर्तित होकर पड़ेगी जो उसके शरीर और आंख के लिए हानिकारक होगा।
इस प्रकार मूंगा धारण करने वाला व्यक्ति सामने वाले शत्रु को परास्त कर देगा। यदि जन्म के समय मंगल ग्रह की ऐसी रश्मियां मनुष्य के शरीर में पहुंच गई हैं तो मंगल से सम्बन्धित रोग उसे अवश्य होंगे और जब मनुष्य मूंगा धारण कर लेता है तो मंगल ग्रह से प्राप्त होने वाली किरणें मूंगे से परिवर्तित हो जाती हैं और रोग बढ़ने नहीं पाता है।
ज्योतिष और मूंगा रत्न के लाभ
जन्मकुंडली में मंगल क्रूर होने, शुभ भाव का स्वामी होकर नीच का होने या फिर फलदायी होने पर उसके बुरे फल से बचने के लिए व १,५,९ भाव का स्वामी होकर अस्त होने पर मूंगा धारण करते हैं।
ज्योतिष में ऐसा माना जाता है यदि मूंगा शुद्ध हो और अच्छी जगह का हो तो इसको धारण करने वाले का मन प्रसन्न रहता है।
जन्मकुंडली में निम्न परिस्थितियां होने पर मूंगा धारण करने की सलाह दी जाती है।
मंगल अगर प्रथम भाव में हो तो भी मूंगा धारण करना बहुत लाभदायक होता है।
अगर कुंडली में धनेश मंगल नौवे भाव में, चतुर्थेश मंगल एकादश भाव में या पंचम भाव का स्वामी मंगल बारहवें भाव में हो तो मूंगा पहनना अत्यंत लाभकारी होता है।
अगर कुंडली में नौवे भाव का स्वामी मंगल चौथे स्थान में हो या दशवें भाव का स्वामी मंगल पांचवें तथा ग्यारवें भाव में हो तो ऐसे में मूंगा पहनना अच्छा होता है।
अगर मेष या वृश्चिक लग्न में मंगल छठे भाव में, पंचमेश मंगल दसवें भाव में, चतुर्थेश मंगल नौवे भाव में, नवमेश मंगल धन स्थान में, दशमेश मंगल बाहरवें भाव में या फिर एकादशेश मंगल चौथे भाव में हो तो मूंगा धारण करना अत्यंत लाभकरी होता है।
कुंडली में मंगल चंद्रमा के साथ हो तो यदि मूंगा धारण किया जाए तो आर्थिक स्थिति अच्छी होती है।
कुंडली में शुभ भावों का स्वामी होकर मंगल वक्री, अस्त या पहले भाव में हो तो मूंगा पहनकर इनके नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है।
जन्मकुंडली में मंगल शुभ भावों का स्वामी हो लेकिन खुद शत्रु ग्रहों या अशुभ ग्रहों के साथ बैठा हो तो इसके अच्छे प्रभावों को शक्ति देने के लिए मूंगा धारण करना चाहिए।
मूंगे का प्रयोग
मूंगे को सोने की अंगूठी में जड़वाकर धारण किया जाता है। यदि आर्थिक कारणों से सोने की अंगूठी खरीदना संभव न हो तो चांदी में थोड़ा सोना मिलाकर या तांबे की अंगूठी में इसे जड़वाकर धारण किया जा सकता है। मूंगे का कम से कम वजन ६ रत्ती होना चाहिए।
इसे मंगलवार के दिन खरीदकर उसी दिन इसकी अंगूठी बनवाकर पहनना चाहिए। अंगूठी में मूंगे को जागृत करने के लिए *प्रतिष्ठा-पूजन* कर यथा संभव
[ॐ अं अंगारकाय नम:] का जाप करके इसे पहनना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सूर्योदय से एक घंटे अंदर दाएं हाथ की अनामिका उंगली में पहनना चाहिए।
सावधानी
मूंगे के साथ हीरा, पन्ना, गोमेद, लहसुनिया और नीलम को कभी धारण नहीं करना चाहिए।
निर्देश
यहां रत्न धारण की मात्र सांकेतिक सामान्य जानकारी दी गई है अतः रत्न धारण करने से पहले किसी सुयोग्य ज्योतिषी से अपनी जन्मकुण्डली का अध्ययन अवश्य करवाकर ही रत्न धारण करें ।।
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