ⓘ Optimized just nowView original https://neelvarna.wordpress.com/2013/11/08/%E0%A4%B8%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%9A%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AD%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%A8-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%9C-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%B2-%E0%A4%A4/?relatedposts_hit=1&relatedposts_origin=68&relatedposts_position=0 Menu Search  Search Neelvarna | A Desire to Learn ancient Indian knowledge Share Experience With Yoga, Meditation, Tantra & Mantra सप्त चक्र भेदन – एक सहज, सरल तथा सुरक्षित तांत्रिक योग विधि ज्ञानेंद्रियों के व्यापार को बंद करना—ज्ञानेंद्रिय शक्ति प्रदान क्रियाए…….. सीधा वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन मे ज्ञानमुद्रा लगाके बैठिए! अनामिका अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। कूटस्थ मे दृष्टि रखीए! मन जिस चक्र मे ध्यान कर रहे है उस चक्र मे रखिए और उस चक्र मे तनाव डालिए! पूरब दिशा अथवा उत्तर दिशा की और मुँह करके बैठिए! शरीर को थोडा ढीला रखीए! मूलाधार चक्र पर तनाव डालकर पृथ्वीमुद्रा लगाए! अनामिका अंगुलि को अंगुष्ठ से लगायें और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। मूलाधार चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मूलाधारचक्र मे तनाव डालिए! 4 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! यानि चार दीर्घ हंसा लीजिए! मूलाधारचक्र पृथ्वी तत्व का प्रतीक है! पृथ्वी तत्व गंध को प्रदर्शित करता है! इस का तात्पर्य है नाक बंद हो गई एवम मुलाधारचक्र का करंट उपसंहरण होकर सुषुम्ना द्वारा सहस्रार चक्र मे पहुंच जाता है! अब स्वाधिस्ठानचक्र मे जाए, वरुणमुद्रा लगाए! कनिष्ठा अंगुलि के आग्रभाग को अंगुष्ठ के आग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।स्वाधिस्ठानचक्र पर तनाव डालिये! छः बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब स्वाधिस्ठानचक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! स्वाधिस्ठानचक्र वरुण तत्व का प्रतीक है! वरुण तत्व रस या रुचि को प्रदर्शित करता है! इस का तात्पर्य है जीभ बंद हो गई एवम स्वाधिस्ठानचक्र का करंट उपसंहरण हो कर सुषुम्ना द्वारा सहस्रार चक्र मे पहुंच जाता है! अब मणिपुर चक्र मे चले! अग्नि या सुर्यमुद्रा मे बैठे! अनामिका अंगुलि को मोडकर अंगुष्ठ के मूल भाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।मणिपुरचक्र पर तनाव डालिये! 10 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब मणिपुरचक्र मे मन लगाकर कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मणिपुरचक्र अग्नि तत्व का प्रतीक है! अग्नि तत्व रूप या द्रष्टि को प्रदर्शित करता है! इस का तात्पर्य है आँख बंद हो गई एवम मणिपुरचक्र का करंट उपसंहरण होकर सुषुम्ना द्वारा सहस्रार चक्र मे पहुंच जाता है! अब अनाहतचक्र मे चले एवम वायुमुद्रा मे बैठे! तर्जनी अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।अनाहत चक्र मे तनाव डालिये! 12 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब अनाहतचक्र मे मन लगाकर कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अनाहतचक्र वायु तत्व का प्रतीक है! वायु तत्व स्पर्श या त्वचा को प्रदर्शित करता है! इस का तात्पर्य है त्वचा बंद हो गई एवम अनाहतचक्र का करंट उपसंहरण हो कर सुषुम्ना द्वारा सहस्रार चक्र मे पहुंच जाएगा! अब विशुद्ध चक्र मे चले और शून्य या आकाशमुद्रा मे बैठे!मध्यमा अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल भाग मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें।विशुद्धचक्र पर तनाव डाले! 16 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब विशुद्ध चक्र मे मन लगाकर कूटस्थ मे दृष्टि रखे! विशुद्धचक्र आकाश तत्व का प्रतीक है! आकाश तत्व शब्द या सुनने को प्रदर्शित करता है! इस का तात्पर्य है कान बंद हो गया और विशुद्धचक्र का करंट उपसंहरण हो केर सुषुम्ना द्वारा सहस्रारचक्र मे पहुंच जाएगा! अब विशुद्धचक्र मे ही मन लगाके इसी शून्य मुद्र मे बैठे! 16 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! विशुद्धचक्र पर से तनाव छोड देवे! इस का मतलब शब्द या कान फिर से चालू हो गया! अब अनाहत चक्र मे जाकर वायुमुद्र मे बैठीए! तर्जनी अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखे! अनाहत चक्र मे तनाव डालिये! 12 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब अनाहतचक्र मे मन लगाकर कूटस्थ मे दृष्टि रखे! अनाहतचक्र पर तनाव छोड देवे! इसका मतलब स्पर्श या त्वचा फिर से चालू हो गए! अब मणिपुर चक्र मे चले! अग्निमुद्रा मे बैठे! अनामिका अंगुली को मोडकर अंगुष्ठ के मूल मे लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। मणिपुर चक्र मे तनाव डालिये! 10 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब मणिपुरचक्र मे मन लगावे, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मणिपुरचक्र पर से तनाव छोड देवे! इसका मतलब रूप या आँख फिर से चालू हो गए! अब स्वाधिस्ठान चक्र मे जाए! वरुणमुद्र मे बैठे! कनिष्ठा अंगुलि को अंगुष्ठ से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। स्वाधिस्ठानचक्र मे तनाव डाले! 6 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब स्वाधिस्ठानचक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! स्वाधिस्ठानचक्र पर से तनाव छोड देवे! इसका मतलब रस या जीभ फिर चालू हो गए! अब मूलाधारचक्र मे जाए! पृथ्वीमुद्रा मे बैठे! अनामिका अंगुलि के अग्रभाग को अंगुष्ठ के अग्रभाग से लगाए और दबाए। शेष अंगुलिया सीधी रखें। मूलाधारचक्र पर तनाव डालिए! 4 बार लंबा श्वास लेवे और छोडे! अब मूलाधार चक्र मे मन लगाए, कूटस्थ मे दृष्टि रखे! मूलाधारचक्र पर से तनाव छोड देवे, इसका मतलब गंध या नाक फिर से चालू हो गए! शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध फिर से चालू हो गए! नियमित रुप से ये क्रियाए करने से समस्त इंद्रियों की शक्ति मे अभिवृद्धि होती है! ये प्राणायाम पद्धतियाँ इंद्रियो की समस्त नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मक क्रियाओ को फिर से चालु कर देती है! 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