Thursday, 17 August 2017

चार श्लोकों में है पूरी भागवत कथा

ⓘ Optimized 11 hours agoView original https://m.patrika.com/news/lucknow/4-verses-narrates-entire-bhagwat-katha-1200966/ Menu Top News Videos Photos Choose Location Todays Newspaper Duniya Ajab Gajab Dus Ka Dum Hot on web Topics Opinion Jobs / HOME / INDIA / UTTAR PRADESH LUCKNOW  इन चार श्लोकों में है पूरी भागवत कथा, आप भी पढ़िए HARIOM DWIVEDI LUCKNOW, UTTAR PRADESH, INDIA पुराणों के मुताबिक, इस चतु:श्लोकी भागवत के पाठ करने या फिर सुनने से मनुष्य के अज्ञान जनित मोह और मदरूप अंधकार का नाश हो जाता है और वास्तविक ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है। लखनऊ. अगर आपके पास इतना समय नहीं है कि पूरी भागवत का पाठ कर सकें और आप करना चाहते हैं। परेशान मत होइये ये चार ऐसे श्लोक हैं जिनमें संपूर्ण भागवत-तत्व का उपदेश समाहित है। यही मूल चतु:श्लोकी भागवत है। पुराणों के मुताबिक, ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था। आइये जानते हैं कौन हैं वे चार श्लोक, जिनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलेगा। श्लोक- 1 अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम। पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सोSस्म्यहम अर्थ- सृष्टि से पूर्व केवल मैं ही था। सत्, असत या उससे परे मुझसे भिन्न कुछ नहीं था। सृष्टी न रहने पर (प्रलयकाल में) भी मैं ही रहता हूं। यह सब सृष्टीरूप भी मैं ही हूँ और जो कुछ इस सृष्टी, स्थिति तथा प्रलय से बचा रहता है, वह भी मैं ही हूं। श्लोक-2 ऋतेSर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि। तद्विद्यादात्मनो माया यथाSSभासो यथा तम: अर्थ- जो मुझ मूल तत्त्व को छोड़कर प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीं होता, उसे आत्मा की माया समझो। जैसे (वस्तु का) प्रतिबिम्ब अथवा अंधकार (छाया) होता है। श्लोक-3 यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु। प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥ अर्थ- जैसे पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) संसार के छोटे-बड़े सभी पदार्थों में प्रविष्ट होते हुए भी उनमें प्रविष्ट नहीं हैं, वैसे ही मैं भी विश्व में व्यापक होने पर भी उससे संपृक्त हूं। श्लोक-4 एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनाSSत्मन:। अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥ अर्थ- आत्मतत्त्व को जानने की इच्छा रखनेवाले के लिए इतना ही जानने योग्य है की अन्वय (सृष्टी) अथवा व्यतिरेक (प्रलय) क्रम में जो तत्त्व सर्वत्र एवं सर्वदा रहता है, वही आत्मतत्व है। पुराणों के मुताबिक, इस चतु:श्लोकी भागवत के पाठ करने या फिर सुनने से मनुष्य के अज्ञान जनित मोह और मदरूप अंधकार का नाश हो जाता है और वास्तविक ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है। विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं ? भारत मॅट्रिमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें ! Advertisement Advertisement verses narrates Bhagwat Kathareligious news Uttar Pradesh Shri Krishna SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER Never miss any news  Email Address NEXT NEWS  मशहूर Book seller राम आडवाणी का निधन Rajasthan Patrika Live TV मॉनसून ने पकड़ी रफ़्तार , अगले 48 घंटे में बारिश से मिलेगी राहत  बोले यूपी सरकार के मंत्री, नहीं सुन रहे अधिकारी  सीएम योगी का बड़ा बयान, कहा सड़क पर नमाज पढ़ना सही तो थाने में जन्‍माष्‍टमी मनाना भी उचित  भाजपा की राजकुमारी के विरोध में सपा से ज्ञान देवी ने भरा परचा  नवंबर में निकाय चुनाव संपन्न कराए यूपी सरकार: हाईकोर्ट  Home About Us Advertise Careers Newsroom Archive Privacy Policy Sitemap © 2017 Patrika Group VideosToday's ePaperIndiaStateEntertainment SportsWorldAutoGadgetsBusinessEmployeeHealthAstrologyTopics

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