Thursday, 13 July 2017
MAR 5 प्राणायाम के प्रकार Types Of Pranayam योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं। (1)पूरक:- अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है। (2)कुम्भक:- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है। (3)रेचक:- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है। प्राणायाम के प्रमुख प्रकार (kind of pranayama) : 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्त्रिका, 3.उज्जाई, 4.भ्रामरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कुंभक, 8.दीर्घ, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.मूर्छा, 12.सूर्यभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ, 17.नासाग्र, 18.प्लावनी, 19.शितायु (shitau) आदि। इसके अलावा भी योग में प्राणायाम के अनेक प्रकारो वर्णन मिलता है जैसे- 1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम 2.अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम 3.अग्नि प्रसारण प्राणायाम 4.एकांड स्तम्भ प्राणायाम 5.सीत्कारी प्राणायाम 6.सर्वद्वारबद्व प्राणायाम 7.सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम 8.सम्त व्याहृति प्राणायाम 9.चतुर्मुखी प्राणायाम, 10.प्रच्छर्दन प्राणायाम 11.चन्द्रभेदन प्राणायाम 12.यन्त्रगमन प्राणायाम 13.वामरेचन प्राणायाम 14.दक्षिण रेचन प्राणायाम 15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम 16.त्रिबन्धरेचक प्राणायाम 17.कपाल भाति प्राणायाम 18.हृदय स्तम्भ प्राणायाम 19.मध्य रेचन प्राणायाम 20.त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम 21.ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम 22.मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम 23.वायुवीय कुम्भक प्राणायाम 24.वक्षस्थल रेचन प्राणायाम 25.दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम 26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम 27.षन्मुखी रेचन प्राणायाम 28.कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम 29.सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम 30.नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम इसके लाभ : तनाव घटाकर शांति प्रयान करने वाले इस प्राणायम से सभी प्रकार की नाड़ियों को भी स्वास्थ लाभ मिलता है। नेत्र ज्योति बढ़ती है और रक्त संचालन सही रहता है। अनिद्रा रोग में यह लाभदायक है। इसके नियमित अभ्यास से फेंफड़े और हृदय भी स्वस्थ्य बने रहते हैं। भीतर की शक्ति से ही जीवन चलता है। इस शक्ति का पतन तीन कारणों से होता है- पहला ऐसा सोचना जिससे चिंता होने लगे। दूसरा ऐसा खाना जिससे अपच होने लगे और तीसरा ऐसी अनियमित जीवन शैली मानो जिंदगी बीत जाए जीवन को संभालने में। सोचो मगर जरा ध्यान से : व्यक्ति विचारों में खोकर खुद को तो खो ही देता है, साथ ही वह मानसिक रूप से कमजोर भी होने लगता है। सोच पर नियंत्रण जरूरी है। कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का और भरा दिमाग भूत का। तो सोचे समाधान के लिए चिंता के लिए नहीं। इसके लिए योग के प्राणायाम को अपनाएं, क्योंकि श्वास बदलेगी तो विचार भी बदल जाते हैं। प्राणायाम विचारों को सही दिशा देता है। आहार से बिगड़ता शरीर : कुछ तो भी खाते-पीते रहने से शरीर कुछ तो भी होने लगता है। इससे सर्वप्रथम स्नायु दुर्बलता पैदा हो जाती है। स्नायु दुर्बलता से भीतर की शक्ति जाती रहती है। स्नायु दुर्बलता के कारण हैं- अनियमित भोजन, मद्यपान, बाजारू भोजन, अश्लिल पढ़ना, देखना, सुनना और कहना। इससे शरीर किसी भी रोग की चपेट में आ सकता है। स्नायु कमजोरी के कारण अनावश्यक तनाव बना रहेगा और चिड़चिड़ापन रोगी को दिमागी द्वंद्व में उलझा देता है। दिमागी द्वंद्व के कारण रोगी झूठ बोलना, स्वार्थी व नीच बन जाना आदि बुरी आदतों का शिकार हो जाता है। इससे नपुंसकता और स्वप्नदोष जैसे रोगों का जन्म होता है। इस तरह की कमोजरी को भगाने के लिए पहले बदलें अपना आहार और इसका पालन करें कम से कम पूरे एक वर्ष तक। शुरुआत में एक माह तक सिर्फ फलाहार और दूध लें। दूध में शहद तथा भीगे हुए बादाम या किशमिश का प्रयोग कर सकते हैं। बाद में 8-10 बादाम, 25 दाने किशमिश तथा 7-8 मनुक्के भिगोकर नाश्ते में लें। फिर हरी सब्जी और छिलकों वाली दाल का उपयोग पतली चपाती के साथ करें। चपाती मक्खन या मलाई के साथ लें। भोजन में सलाद का भरपूर उपयोग और प्याज, लहसुन तथा अदरक का संतुलित सेवन करें। अनियमित जीवनशैली : खराब अन्न और मन का लाइफ स्टाइल पर प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति लापरवह और गैर-जिम्मेदार होने लगता है। स्कूल, ऑफिस या अन्य किसी भी जगह देर से पहुंचना। जीवन की प्रत्येक बातों को कल के लिए स्थगित करते रहना आदि सैकड़ों ऐसे व्यवहार है जिससे जीवन प्रभावित होता रहता है। अत्यधिक विचार से द्वंद्व, द्वंद्व से भ्रम और संशय की उत्पत्ति होती है। संशय से खुद पर और दूसरों पर विश्वास की कमी होती जाती है। अविश्वास से अच्छे-बुरे को परखने की समझ पर असर पड़ता है। निर्णय क्षमता कमजोर होती है। यह सब अनियमित जीव शैली के परिणाम हैं। अनियमित जीवन शैली को बदलने के लिए स्वाध्याय अर्थात स्वयं का अध्ययन करें। स्वयं की समीक्षा करें। स्वयं की बुरी आदतों और गलतियों को स्वीकार कर इसे बदलने के लिए छोटे-छोटे संकल्प लेकर आगे बढ़ें। संकल्प ही तप है।
धारणा
Dharana
चित्त को किसी एक विचार में बांध लेने की क्रिया को धारणा कहा जाता है। यह शब्द 'धृ' धातु से बना है। पतञ्जलि के अष्टांग योग का यह छठा अंग या चरण है। वूलफ मेसिंग नामक व्यक्ति ने धारणा के सम्बन्ध में प्रयोग किये थे।
परिचय
धारणा अष्टांग योग का छठा चरण है। इससे पहले पांच चरण यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार हैं जो योग में बाहरी साधन माने गए हैं। इसके बाद सातवें चरण में ध्यान और आठवें में समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। धारणा शब्द ‘धृ’ धातु से बना है। इसका अर्थ होता है संभालना, थामना या सहारा देना। योग दर्शन के अनुसार- देशबन्धश्चित्तस्य धारणा। (योगसूत्र 3/1) अर्थात्- किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है। आशय यह है कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार द्वारा इंद्रियों को उनके विषयों से हटाकर चित्त में स्थिर किया जाता है। स्थिर हुए चित्त को एक ‘स्थान’ पर रोक लेना ही धारणा है।
बाहरी कड़ियाँ
धारणा
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