Friday, 25 August 2017

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विंध्याचल को उसके हाथीयों का क्या काम ? मलयाचल पर्वत ... बुधवार, 26 मई 2010  35. श्रीमान् जनानिंद्यश्च (सुभाषित/राजधर्म) श्रीमान् जनानिंद्यश्च शूरश्चाप्यविकत्थनः । समदृष्टिः प्रभुश्चैव दुर्लभाः पुरुषस्त्रयः ॥ तीन तरह के लोग दुर्लभ है; जननिंदा को पात्र न हुआ श्रीमान, आत्मप्रशंसा न करनेवाला शूर, और सर्वत्र समदृष्टि रखनेवाला ... बुधवार, 26 मई 2010  36. यत्रोत्साहसमारम्भो (सुभाषित/उद्यम) यत्रोत्साहसमारम्भो यत्रालस्य विहीनता । नयविक्रम संयोगस्तत्र श्रीरचला ध्रुवम् ॥ जहाँ उत्साह से कार्य का आरंभ होता है, जहाँ आलस्य नहि और जहाँ नीति और पराक्रम का संयोग है, वहाँ लक्ष्मी जरुर स्थिर रहती है ... बुधवार, 26 मई 2010  37. त्रिविधा भवति श्रद्धा (श्रीमद्भगवद्गीता /अ१७ श्रद्धात्रयविभागयोग ) श्री भगवानुवाच त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा । सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु ॥ २ ॥ मनुष्यॉ मॅ स्वभाव से हि उत्पन्न श्रद्धा तीन प्रकार की होती है , सात्त्विक, राजसी किंवा तामसी, ... मंगलवार, 25 मई 2010  38. ऊर्ध्वमूलमध: शाखमश्वतथं (श्रीमद्भगवद्गीता /अ१५ पुरुषोत्तमयोग ) श्रीभगवानुवाच ऊर्ध्वमूलमध: शाखमश्वतथं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥ १ ॥ श्री भगवान बोले – जिसके मूल (परमात्मा) उपर (उच्च, उन्नत) है, शाखाएँ नीचे (निम्न, अधम) हैं, तथा वेद ... मंगलवार, 25 मई 2010  39. परं भूयः प्रवक्ष्यामि (श्रीमद्भगवद्गीता /अ१४ गुणत्रयविभागयोग ) अर्जुन उवाच परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् । यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥ १ ॥ श्री भगवान् बोले - ज्ञानों में भी अति उत्तम उस परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर ... मंगलवार, 25 मई 2010  40. प्रकाशं च प्रवृत्तिं च (श्रीमद्भगवद्गीता /अ१४ गुणत्रयविभागयोग ) श्रीभगवानुवाच प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव । न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति ॥ २२ ॥ वह पुरुष गुणों के प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है और न निवृत्त होने पर उनकी आकाङ्क्षा ... मंगलवार, 25 मई 2010 << प्रारंभ करना < पीछे 1 2 3 अगला > अंत >> सदस्य मेनु पोस्ट करें रजिस्ट्रेशन और लेखन पाक्षिक चिंतन हिन्दी टाइपपॅड सम्पर्क करें Copyright © 2005 - 2017 SuSanskrit. 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