Friday, 13 October 2017

स्वामी विरजानंद (दंडी स्वामी)

हिन्दी / Hindi खबर-संसारज्योतिषबॉलीवुडदीपावलीधर्म-संसारक्रिकेटवीडियोसामयिकफोटो गैलरीअन्यProfessional Courses महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म गुजरात के मोरवी के टंकारा गांव में हुआ था। मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण उनका नाम मूलशंकर रखा गया था। उनके पिता का नाम अम्बाशंकर था। माता का नाम अमृतबाई था। उन्होंने वेदों के प्रकांड विद्वान स्वामी विरजानंद जी से शिक्षा ग्रहण की थी।    एक समय की बात है। स्वामी विरजानंद (दंडी स्वामी) की पाठशाला में कई शिष्य आते, कुछ समय तक रहते मगर उनके क्रोध, उनकी प्रताड़ना को सहन न कर सकने के कारण भाग जाते। कोई-कोई शिष्य ऐसा निकलता, जो उनके पास पूरा समय रहकर पूरी शिक्षा पा सकता। यह दंडी स्वामी (स्वामी विरजानंद) की एक बड़ी कमजोरी थी। दयानंद सरस्वती को भी उनसे कई बार दंड मिला, मगर वह दृढ़ निश्चयी थे अत: पूरी शिक्षा प्राप्त करने का संकल्प किए, डटे रहे।   एक दिन दंडी स्वामी को क्रोध आया और उन्होंने अपने हाथ के सहारे ली हुई छड़ी से दयानंद की खूब पिटाई करते हुए उसकी खूब भर्त्सना कर दी। मूर्ख, नालायक, धूर्त... पता नहीं क्या-क्या कह कहते चले गए।   दयानंद के हाथ में चोट लग गई, काफी दर्द हो रहा था, मगर दयानंद ने बिलकुल भी बुरा नहीं माना बल्कि उठकर गुरुजी के हाथ को अपने हाथ में ले लिया और सहलाते हुए बोले- 'आपके कोमल हाथों को कष्ट हुआ होगा। इसके लिए मुझे खेद है।'   दंडी स्वामी ने दयानंद का हाथ झटकते हुए कहा- 'पहले तो मूर्खता करता है, फिर चमचागिरी। यह मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं।' पाठशाला के सब विद्यार्थियों ने यह दृश्य देखा। उनमें एक नयनसुख था, जो गुरुजी का सबसे चहेता विद्यार्थी था। नयनसुख को दयानंद से सहानुभूति हो आई, वह उठा और गुरुजी के पास गया तथा बड़े ही संयम से बोला- 'गुरुजी! यह तो आप भी जानते हैं कि दयानंद मेधावी छात्र है, परिश्रम भी बहुत करता है।'   दंडी स्वामी को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। अब उन्होंने दयानंद को अपने करीब बुलाया। उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले- 'भविष्य में हम तुम्हारा पूरा ध्यान रखेंगे और तुम्हें पूरा सम्मान देंगे।' जैसे ही छुट्टी हुई, दयानंद ने नयनसुख के पास जाकर कहा- 'मेरी सिफारिश करके तुमने अच्‍छा नहीं किया, गुरुजी तो हमारे हितैषी हैं। दंड देते हैं तो हमारी भलाई के लिए ही। हम कहीं बिगड़ न जाएं, उनको यही चिंता रहती है।'    यही दयानंद आगे चलकर महर्षि दयानंद बने और ‍वैदिक धर्म की स्थापना हेतु 'आर्य समाज' के संस्थापन के रूप में विश्वविख्यात हुए। आर्य समाज की स्थापना के साथ ही भारत में डूब चुकी वैदिक परंपराओं को पुनर्स्थापित करके विश्व में हिन्दू धर्म की पहचान करवाई। उन्होंने हिन्दी में ग्रंथ रचना आरंभ की तथा पहले के संस्कृत में लिखित ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद भी किया। महर्षि दयानंद सरस्वती का भारतीय स्वतंत्रता अभियान में भी बहुत बड़ा योगदान था।  विज्ञापन विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें!   by Taboola Sponsored Links You May Like Is it a Migraine or Headache? Find Info - Search for Migraine treatments. Health Living Today Melissa Gilbert Hated The One Person She Had To Work Most With IcePop 11 Cheapest Places in the US to Buy a Home TheFinancialWord.com 20 Pictures of Cartoon Logic That People Think Are Extremely Ridiculous Appurse Check Out The 15 Most Generous Billionaires In The World WikiPuppet What Jennifer Grey Looks Like Now Doesn't Make Any Sense LawyersFavorite मुख पृष्ठ | हमारे बारे में | विज्ञापन दें | अस्वीकरण | हमसे संपर्क करें Copyright 2016, Webdunia.com

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