Skip to main content Vipra Varta विप्र वार्ता सामाजिक नेटवर्क Main menu About Us Contact Us Home मुफ्त प्रतिदिन विप्रवार्ता इमेल प्राप्ति साधन ब्राह्मणों में रामराज्य वाला संस्कार और आचरण जरूरी  Submitted by Ajay Tripathi on Sun, 02/26/2012 - 12:02 आज इस विषय में हमें विचार करना है कि हम ब्राह्मण क्या थे और आज क्या हो गये ? हम आज क्या हैं और हमारे ब्राह्मण के लड़के क्या करते हैं ? यह हम सभी जानते हैं और उसके लिये वे लड़के दोषी नहीं बल्कि हम उनके गार्जियन दोषी हैं। आप ख्याल करें कि हरेक जगह देहातों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर कस्बे है, जहां छोटी-छोटी दूकानें है। जहां प्रायः जरूरत के सभी सामान बिकते है। अगर वहां उन कस्बों पर संध्या समय जाकर आप देंखे और टीन उम्र के लड़कों तथा नवजवानों को भी देखें और मिलान करें तो पायेंगे कि बड़ी जाति में ब्राह्मण कहे जाने वाले हमारे ब्राह्मणों के लड़कों की संख्या शराब पीने और हुल्लड़बाजी करने में अधिक है। यह बात दिनों दिन सुधरती नहीं बल्कि बिगड़ती जा रही है क्योंकि मैनें स्वयं इसे बहुत नजदीक से देखा है और अपना अनुभव लिख रहा हुँ। मैं इसके भी विस्तार में जाना नहीं चाहता क्योंकि यह बात सबकी ऑखों के सामने है। अब हमें आज के विपरीत अपने पूराने संस्कार और आचरण को याद करना है कि हम पहले क्या थे ? सृष्टि की रचना भगवान ने की है। भगवान को तो कोई देखा नहीं है मगर शास्त्रों से प्रमाणित है कि समय-समय पर भगवान के अनेकानेक अवतार हुये हैं यानी भगवान ने पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी लीलायें की है। आदर्श पुरूष के रूप में रामावतार प्रमाणित है और हमारे शास्त्रों से यह प्रमाणित है कि तुलसीकृत रामचरितमानस के रामचन्द्र जी भगवान के अवतार ही थे। संक्षेप में मैं यहां अध्यात्मिक दृष्टि से अध्ययन के बाद शास्त्रों के आधार पर तुलनात्मक रूप से बताना चाहता हूँ कि रामचन्द्र जी का हम ब्राह्मणों के बारे में क्या ख्याल था और ऐसा क्यों था ? मैं यहां छोटा-मोटा रामचरितमानस से कुछ उधृतांश दे रहा हूँ कि उनका ब्राह्मणों के बारे में क्या ख्याल था ? उल्लेखों से मैं आपको बताना चाहता हूॅं कि ब्राह्मणों के बारे में रामचन्द्र जी की क्या धारणा थी ? .लंका में जब रावण के साथ युद्ध शुरू हुआ तो रावण को रथ की सवारी थी और रामचन्द्र जी को रथ नहीं था। देवताओं के आग्रह पर जब इन्द्र ने रथ भेजा और तो रावण के साथ युद्ध करने के लिये रथ पर सवार होना था तो रथ पर सवार होने के पहले रामचन्द्रजी ने ब्राह्मणों को स्मरण किया। द्रष्टब्य लंकाकाण्ड के दोहा 90 पहली चौपाई का प्रसंग है: अस कहि रथ रघुनाथ चलावा विप्र चरण पंकज सिर नावा। ं लंका विजय के बाद जब श्रीरामचन्द्र जी अयोध्या आते हैं और अयोध्या के राजा बनने के वक्त जब उन्हें सिंहासन पर बैठना है तो वहां भी उन्होनें ब्राह्मणें को स्मरण ही नहीं किया है बल्कि सामूहिक रूप से हम ब्राह्मणों को सिर झुकाकर प्रणाम करने के बाद वे सिंहासन पर बैठे हैं। उत्तरकाण्डका प्रसंग द्रष्टब्य-दोहा 12 की प्रथम दो चौपईयॉं प्रभु विलोकी मुनि मन अनुरागा। तुरत दिव्य सिंहासन मांगा।। रवि सम तेज सो वरनि ना जाई। बैठ राम द्विजन्ह सिर नाई।। यहां उन्होंनें सामूहिक रूप से हम द्विजो को सिर झुकाकर पहले प्रणाम किया है और उनका आशीर्वचन माँगा है और फिर उसके बाद सिंहासन पर बैठे है। तीसरा प्रमाण सुन्दरकाण्ड में विभीषण वार्त्ता का प्रसंग में श्री रामचन्द्र जी कहते है कि जिन अन्य लोगों को भी ब्राह्मणों के चरण के प्रति प्रेम है वैसे व्यक्ति उन्हें प्रण के समान प्रिय है। चौथा प्रसंग और अधिक महत्वपूर्ण है: अरण्यकाण्ड का प्रसंग है। चारो मुनियों - अत्री मुनी, सरभंग,सुतिक्षण और अगस्त मुनि से मिलने के बाद जब लक्ष्मण जी ने उनसे, ज्ञान, विरक्ति, माया, भक्ति तथा जीव और ब्रह्म का भेद पूछा तो विस्तार में चर्चा करते हुये और सबको अलग-अलग समझाते हुए भगवान ने यह बताया है कि भक्ति मार्ग सर्वोपरि है और भक्त उन्हें सबसे प्यारे हैं, तो वहाँ किस्किधां काण्ड 16 वें दोहे मेंविप्रचरण अति प्रीति भगति कि साधन कहु बखानी। सुगम पंच मोहि पावहि प्रानी। प्रथमहि विप्र चरन अति प्रीति। निज निज कर्म निरत श्रुति रीति।। यहां भक्ति मार्ग की व्याख्या करते वक्त भगवान ने बताया है कि भक्त होने का पहला गुण है कि ’’ विप्र चरन अति प्रीति’’ यहां प्रीति शब्द के पहले अति लगा हुआ है जिसका अर्थ होता है बहुत। यहां भगवान ने भक्तों के लिये कुल 10 गुणों की चर्चा की है मगर पहला गुण बताया है कि भक्तों को ब्राह्मणों के चरण में अति प्रेम हो। और स्वयं हम सभी यह मानते है और हमारे शास्त्रों से भी ऐसा प्रमाणित है कि आध्यात्मिक दृष्टि से पूजा-पाठ, लाभदायक होता है। मैं एक उदाहरण और देना चाहता हूॅं जो अध्योध्या के राजा होने के बाद श्री रामचन्द्र जी ने सभी अयोध्यावासियों को साथ बुलाकर उनसे मानव धर्म की चर्चा विस्तार से की है। उत्तर काण्ड के 43 वें से 47 दोहा में ऐसा प्रसंग है जो सबकों पढ़ना और समझना चाहिए: यथा एक बार रघुनाथ बुलाये, गुरू द्विज पुरवासी सब आये। कहा है , जो भक्त होने का साधन बताया है, उसमें पहला है - पुण्य एक जग नही कुछ दूजा, मन क्रम वचन विप्र पद पूजा। सानुकुल तेहिपर मुनि देव। जो तजि कपद करहि द्विज सेवा।। आप मानेंगे कि यह तो पराकाष्ठ है। दो चौपाइयाँ हैं जिसमें पहले में कहा है कि मानव के लिए पुण्य एक ही है और वह है मन-क्रम और वचन से विप्र की पूजा पद यानि पैर की पूजा करना और दूसरे में कहे है कि जो ब्यक्ति छल-कपट छोड़कर सही माने में ब्राह्मण की सेवा करता है उस पर सभी देवता और मुनि स्वाभाविक रूप से अनुकूल होते है। मैनें एक नहीं छः‘छः उदाहरण देकर यह बताने का प्रयास किया है कि हम विप्र पहले क्या थे और शास्त्रों के मुताबिक हमारा क्या कद थी और आज हम देखते है कि हम कहां से कहां आ गये है ? अतः हमें उन बातों का ख्याल करते हुये अपना संस्कार और आचरण बदलना है। जिसमें एक पैसा का खर्च भी नहीं और लाभ ही लाभ है। हरिद्वार पाण्डेय, पटना Tags: ब्राह्मणोंरामराज्यसंस्कारआचरणब्राह्मणपुण्यश्रीरामचन्द्र रावणभगवान User login Username *  Password *  Request new password Log in  Who's new munishsharma1996 hitraj29 psvkpatna खांडल ब्राह्मण Banmali Pandit संस्थापक एवं प्रथम प्रधान संपादक - स्व.शैलेन्द्र शर्मा अध्यक्ष - अजय त्रिपाठी मो.- 98271-35055 प्रधान संपादक - अरविन्द ओझा, मो. -94242-14658 प्रबंध संपादक - ओमप्रकाश मिश्रा, सुनील तिवारी संपादक - धनंजय त्रिपाठी - मो. -98274-05125 संपादक मंडल - श्रीमती ममता राय, श्रीमती संगीता शर्मा, अमित शर्मा, आलोक पाण्डेय, हेमंत तिवारी. उप संपादक - अनुराग मिश्रा, राजीव चक्रवर्ती, शिवाकांत त्रिपाठी, पी. भानू जी राव (भिलाई), विमलेश बाजपेयी, (बिलासपुर) सह-संपादक - राजकुमार दुबे, गुणनिधि मिश्रा, मुकेश शर्मा, रामकिशन शर्मा, श्रीमती सुनीता चंसौरिया, विवेक बाजपेयी (रायगढ़), ओम शर्मा (कुनकुरी), सूरज तिवारी (धमतरी), अजयकांत शुक्ला (भाटापारा)जयप्रकाश गौतम (कोरबा) विशेष संवाददाता - राकेश तिवारी (लोरमी), अनिल शर्मा (सतना), पद्मेश शर्मा (चांपा), सुरेश द्विवेदी (महासमुन्द), फाल्गोप्रसाद त्रिपाठी (मनेन्द्रगढ़), तरूण मिश्रा (कोरबा), वैभव तिवारी (पेण्ड्रा), गणेश तिवारी (कांकेर),अरविन्द तिवारी (चौकी), सुदेश दुबे (बिलासपुर), अनुराधा राव (भिलाई), लता बाजपेयी (गोंदिया), सौरभ कुमार दुबे (साजा), संतोष पाण्डेय (दल्ली), सुशील तिवारी, रायपुर राष्ट्रीय संपादकगण - डॉ. धर्मसिंग कौशिक (ब्राम्हण अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), गोविन्द त्रिपाठी क्रांतिकारी (दिल्ली), विनायक शर्मा (मण्डी, हिमाचल प्रदेश), भरत तिवारी (सागर म.प्र.), रजनी जानी (सूरत गुजरात), अजय अत्री (रेवाड़ी, हरियाणा) वित्तीय सलाहकार - संजय बिलथरे (सी.ए.) विधिक सलाहकार - श्रीमती करूणा तिवारी, आर.एन. व्यास प्रचार-प्रसार प्रभारी - राजेश सिंह, शैलेश मिश्रा, पुरूषोत्तम पाण्डेय विज्ञापन प्रभारी - प्रदीप पाण्डेय, विश्वनाथ चक्रवर्ती, सतीश शर्मा, नागेन्द्र वोरा. प्रतिनिधि - कृपाशंकर मिश्रा (धमतरी), हरे राम तिवारी (रायगढ़), ओमप्रकाश शर्मा (भिलाई-3), शेखर त्रिपाठी (जशपुर), प्रभाकर पाण्डेय (कबीरधाम), अमित पाण्डेय (बिलासपुर), निमेश कर्महे अधिवक्ता (जगदलपुर), राजेश तिवारी (नगरी, धमतरी), अविनाश तिवारी (बलौदाबाजार), राजेश बाजपेयी (दल्ली राजहरा), प्रेम गोस्वामी (डोंगरगांव), गुलराज शर्मा (सुकमा), बालकृष्ण मिश्रा (रतनपुर), स्वराज तिवारी (मुंगेली), बलराम त्रिपाठी (बिजुरी म.प्र.), संतोष शुक्ला (बांधाबाजार), अरूण शुक्ला (अंबागढ़ चौकी), संजय त्रिपाठी अधिवक्ता (लोरमी), विनय पाण्डेय (अमलीपदर, देवभोग), विमल कुमार शुक्ला (धर्मजयगढ़), सुनील शुक्ला (बस्ती बागबाहरा), अनिल पाण्डेय (डोंगरगढ़), अरूण त्रिवेदी (करगीरोड कोटा), मधुसूदन राव (नरसिंह पुर म.प्र.), अखिलेश्वरी शुक्ला (हथबंद), अर्जुन प्रसाद तिवारी (राजिम) & Vipra Varta Social Network Vipra Varta Calling Daily Email Update विप्रवार्ता दैनिक इमेल से Email Please: Get Latest Vipra Varta इमेल प्रतिदिन: जरूर प्राप्त करें Subscribe आपका धन्यवाद  विप्रवार्ता गूगल पेज मे आपका हार्दिक स्वागत है Please Visit Vipra Varta Google+ Page   Who's online There are currently 0 users online. 
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