Friday, 8 September 2017

एषां न विद्या न तपो न दानं..ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्मः.

satsang ganga rkdeo LIVE AND LET OTHERS LIVE IN PEACE..!! Tuesday, March 1, 2011 एषां न विद्या न तपो न दानं..ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्मः..?  सत्य ही कहा है.... "एषां न विद्या न तपो न दानं..ज्ञानं न शीलं न गुणों न धर्मः..? ते मर्त्यलोके भुविभारभुता....मनुष्यरुपेना मृगाश्चरन्ति..!!" ...अर्थात..ऐसे मनुष्य जिनके पास न विग्या है..न ताप है..न दान है .. न ज्ञान है..न गुन है ..और न धर्म है..वह इस मृत्युलोक में धरती पर भार-स्वरूप है..जो मानव-छोले में होकर भी पशुओ के सात रहते और उनके झुण्ड को चराते है..! हट-भाग्य है ऐसे मनुष्यों का...! मधुर बचन है औसधि..कटुक बचन है तीर..! श्रवण द्वार हवे संचरे ..साले सकल शरीर..!! सत्यम ब्रूयात..प्रियं ब्रूयात..न ब्रूयात सत्यमप्रियम..!..अर्थात..सत्य बोलो..प्रिय बोलो..किन्तु सत्य और अप्रिय ना बोलो...! आज के मानव-सभ्यता में व्यक्ति के अन्दर धैर्य--सहिष्णुता विलुप्त होती जा रही है..! बात-बात पर विवाद खड़े हो जाते है..! "सत्य" निर्विवाद है.."असत्य" विवाद-ग्रस्त है..! सत्य का खंडन नहीं होता..असत्य का मंडन नहीं होता..! हम चाहे जितना भी प्रयास कर ले..सत्य को झुठला नहीं सकते..! असत्य तभी तक महिमामंडित हो सकता है जब तक कि साक्षात् सत्य से उसका सामना नहीं होता..! " आदमो आइना नहीं होता..वक्त को कुछ मना नहीं होता..? झूठ कि जीत होती है तब तक..जब तक सच्चाई से सामना नहीं होत..! ...ऐसे ही का-पुरुष इस संसार में भरे हुए है..साक्षात--सत्य उनकी आँखों के सामने है..फिर भी उनकी आँखे उसमे केवल झूठ ही देख और खोज रही है..! यही दोष-दृष्टि उनकी अधोगति का कारण है..! rkpandey at 12:46 AM Share  No comments: Post a Comment ‹ › Home View web version About Me  rkpandey I M A SIMPLE MAN DEDICATED TO THE CAUSE OF HUMAN N MORAL VALUES.. mY MOTTO IS SIMPLE LIVING N HIGH THINKING. I BELIEVE IN UNIVERSAL BROTHERHOOD..AND SPIRITUAL UPLIFTMENT.. चार्ल्स डार्विन ने विकास वाद का सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए कहा ... "origin of species by natural selection and survival of the fittest..!!" ..अर्थात प्राकृतिक चयन के द्वारा योग्यतम ही अस्तित्व में आते है..बाकी सब नष्ट हो जाते है..! ..यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है..! भौतिक-जगत में आज इतनी प्रतिस्पर्धा है..कि..बहुत सारे लोग दौड़ में पीछे छूटते जा रहे है..और हताशा कि स्थिति में काल-लावालित भी हो रहे है..!! ..आध्यात्मिक जगत में भी..ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात साधक अपने मन-इन्द्रियों को वश में नहीं कर पाते और भटक जाते है..! ..जब प्रकृति अपने प्रभाव से ऐसी स्थिति ला देती है..कि जीव का कल्याण हो जाय..तब परिवेश बदल जाता है..और जीव स्थित-प्रज्ञा होकर इस लोक में रहते हुए आनंद-भोग करता है..! View my complete profile Powered by Blogger. 

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